
इस दीवाली पर आपके लिये मनोज भावुक की एक भोजपुरी ग़ज़ल ले कर आये हैं। हर साँस के दीपक की तरह जीवन को प्रकाशित करने की कामना से परिपूर्ण इस रचना के साथ ही सभी कों दीपोत्सव की ढेरों शुभकामनाएँ। भावुक जी और कल्पना से भिखारी ठाकुर फेस्टिवल कार्यक्रम के दौरान कोलकाता प्रेस क्लब में भेंट भइल रहे...
दीपावली हऽ जिन्दगी, हर साँस हऽ दिया
अर्पित हरेक सांस बा तहरे बदे पिया
सूरज त साथ छोड़ देवे सांझ होत ही
हमदर्द बन के मन के मुताबिक जरे दिया
आघात ना लगित त लिखाइत ना ई ग़ज़ल
ऐ दोस्त! जख्म देलऽ तू, अब लेलऽ शुक्रिया
भीतर जवन भरल बा, ऊ तऽ दुख हऽ, पीर हऽ
अब के तरे कहीं भला हम गजल इश्किया
तोहरा हिया में दर्द के सागर बसल बा का ?
कुछुओ कहेलऽ तू तऽ ऊ लागेला मर्सिया
कुछ बात एह गजल में समाइल ना, काहे कि
ओकरा मिलल ना भाव के अनुरूप काफिया
ठंड़ा पड़ल एह खून के खउले के देर बा
‘भावुक’ हो एक दिन में सुधर जाई भेडिया
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koi jhijhak nahi, kripya kuchh bhi jarur likhen....
or aage achha karne-likhne ka sahas badhayen.