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गुरुवार, 19 नवंबर 2009

जूट मीलों की बदहाली और हड़ताल

एक बार फ़िर जूट मिलें हड़ताल की आगोश में जानेवाली हैं... नैहाटी से लेकर डनलप (बारानगर) तक नज़र दौराया जाए तो एक ही निस्कर्स निकलता है की जूट मीलों में हड़ताल का अंत बहुत ही बुरा रहा है... इन जगहों में अनगिनत जूट मिलें बंद पड़ी हैं जिसके लिए यूनियन को जिम्मेदार ठहराएँ या सरकार को आख़िर मरती तो जनता (श्रमिक) ही है... कल के फैसलें से येही साबित होता है की वर्ष 2007 में ऐतिहासिक 63 दिनों की हड़ताल के बाद फिर राज्य की सभी जूट मिल यूनियनों ने 14 दिसंबर से बड़े स्तर पर हड़ताल पर जाने वाले है.. हड़ताल में जूट मिलों की 19 यूनियनों ने शामिल होने का निर्णय किया है। श्रमिक यूनियन के नेताओं ने कहा है कि श्रमिकों के हितों के लिए एक जुट होकर प्रबंधन का मुकाबला किया जायेगा। बंगाल चटकल मजदूर यूनियन के महासचिव गोविंद गुहा ने कहा है कि दो वर्ष पहले 63 दिनों तक हड़ताल की गयी थी। अब फिर लंबी लड़ाई लड़ने का समय आ गया है क्योंकि प्रबंधन भविष्य निधि और ईएसआई की रकम नहीं दे रहा है। जूट मिलों में नियम-कानून नहीं माना जा रहा है जिससे श्रमिकों के हितों की रक्षा नहीं हो रही है। इस सिलसिले में प्रबंधन को जानकारी देने पर भी उसने समस्याओं पर गौर नहीं किया जिससे बाध्य होकर हड़ताल का आह्ववान किया गया है। मुझे नही लगता की इसका कोई सार्थक नतीजा सामने आएगा.... भगवन ही मालिक है इन यूनियन और जूट मालिको का.... जैहिंद.

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