Baba Bholenath in Shivkhori |
शिव खोड़ी: महादेव की तपोभूमि
Shivkhri Baba Bholenath ke darshan ke liye isi Gufa se jaya jata hai... |
Andar aise hi Sankare Pathrile Pathharon ke bich se jana padta hai... |
पराद्वैत सिध्दांत
कश्मीर शैव दर्शन के एक मूल सिध्दांत को आचार्य अभिनव गुप्त ने पराद्वैत सिध्दांत नाम दिया है। इस पराद्वैत सिध्दांत के अनुसार जो कुछ भी है, वह सब कुछ स्वयं शिव ही है। वही अपनी इच्छा के अनुसार अपनी पारमेश्वरी लीला का अभिनय करता हुआ आपेक्षिक ईश्वरों के रूप में, जीवों के रूप में और जगत के रूप में प्रकट होता रहता है।
भारत की पुण्य धरा पर जम्मू-कश्मीर प्रांत विश्वप्रसिध्द प्राकृतिक सौंदर्य का धनी प्रदेश है। इसे घाटी प्रदेश भी कहते हैं। इस प्रदेश का एक महत्वपूर्ण संभाग है जम्मू-संभाग। यह संभाग डुग्गर प्रदेश के रूप में विख्यात है। डुग्गर प्रांत में भगवान शिव को महादेव कहा जाता है। यह प्रदेश आदिकाल से ही आदि-शक्ति और आदि देव महादेव की तपोभूमि के नाम से जाना जाता रहा है। इस आधार पर उनकी स्तुति-गान और आराधना-स्थल दोनों साकार होकर यहां के शिवालिक पर्वत शृंखलाओं की गोद में स्थित गुफा-कंदराओं में विमान हैं।
शिव खोडी में प्राकृतिक गुफा
शिव खोड़ी शिवालिक पर्वत शृंखला में एक प्राकृतिक गुफा है, जिसमें प्रकृति-निमत शिव-लिंग विद्यमान है। इस गुफा में दो कक्ष हैं। बाहरी कक्ष कुछ बड़ा है, लेकिन भीतरी कक्ष छोटा है। बाहर वाले कक्ष से भीतरी कक्ष में जाने का रास्ता कुछ तंग और कम ऊंचाई वाला है जहां से झुक कर गुजरना पड़ता है। आगे चलकर यह रास्ता दो हिस्सों में बंट जाता है, जिसमें से एक के विषय में ऐसा विश्वास है कि यह कश्मीर जाता है। यह रास्ता अब बंद कर दिया गया है। दूसरा मार्ग गुफा की ओर जाता है, जहां स्वयंभू शिव की मूत है। गुफा की छत पर सर्पाकृति चित्रकला है, जहां से दूध युक्त जल शिवलिंग पर टपकता रहता है।
यह स्थान रियासी-राजोरी सड़कमार्ग पर है, जो पौनी गांव से दस मील की दूरी पर स्थित है। शिवालिक पर्वत शृंखलाओं में अनेक गुफाएं हैं। ये गुफाएं प्राकृतिक हैं। कई गुफाओं के भीतर अनेक देवी-देवताओं के नाम की प्रतिमाएं अथवा पिंडियां हैं। उनमें कई प्रतिमाएं अथवा पिंडियां प्राकृतिक भी हैं। देव पिंडियों से संबंधित होने के कारण ये गुफाएं भी पवित्र मानी जाती हैं। डुग्गर प्रांत की पवित्र गुफाओं में शिव खोड़ी का नाम अत्यंत प्रसिध्द है। यह गुफा तहसील रियासी के अंतर्गत पौनी भारख क्षेत्र के रणसू स्थान के नजदीक स्थित है। जम्मू से रणसू नामक स्थान लगभग एक सौ किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यहां पहुंचने के लिए जम्मू से बस मिल जाती है। यहां के लोग कटरा, रियासी, अखनूर, कालाकोट से भी बस द्वारा रणसू पहुंचते रहते हैं। रणसू से शिव खोड़ी छह किलोमीटर दूरी पर है। यह एक छोटा-सा पर्वतीय आंचलिक गांव है। इस गांव की आबादी तीन सौ के करीब है। यहां कई जलकुंड भी हैं। यहां यात्री जलकुंडों में स्नान के बाद देव स्थान की ओर आगे बढ़ते हैं। देव स्थान तक सड़क बनाने की परियोजना चल रही है।
रणसू से दो किलोमीटर सड़क मार्ग तैयार है।
रोमांचक यात्रा
यात्री सड़क को छोड़ कर आगे पर्वतीय पगडंडी की ओर बढ़ते हैं। पर्वतीय यात्रा अत्यधिक हृदयाकर्षक होती है। यहां का मार्ग समृध्द प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर है। सहजगति से बहते जलस्रोत, छायादार वृक्ष, बहुरंगी पक्षी समूह पर्यटक यात्रियों का मन बरबस अपनी ओर खींच लेते हैं। चार किलोमीटर टेढ़ी-मेढ़ी पर्वतीय पगडंडी पर चलते हुए यात्री गुफा के बाहरी भाग में पहुंचते हैं। गुफा का बाह्य भाग बड़ा ही विस्तृत है। इस भाग में हजारों यात्री एक साथ खड़े हो सकते हैं। बाह्य भाग के बाद गुफा का भीतरी भाग आरंभ होता है। यह बड़ा ही संकीर्ण है। यात्री सरक-सरक कर आगे बढ़ते जाते हैं। कई स्थानों पर घुटनों के बल भी चलना पड़ता है। गुफा के भीतर भी गुफाएं हैं, इसलिए पथ प्रदर्शक के बिना गुफा के भीतर प्रवेश करना उचित नहीं है। गुफा के भीतर दिन के समय भी अंधकार रहता है। अत: यात्री अपने साथ टॉर्च या मोमब8ाी जलाकर ले जाते हैं। गुफा के भीतर एक स्थान पर सीढ़ियां भी चढ़नी पड़ती हैं, तदुपरांत थोड़ी सी चढ़ाई के बाद शिवलिंग के दर्शन होते हैं। शिवलिंग गुफा की प्राचीर के साथ ही बना है। यह प्राकृतिक लिंग है। इसकी ऊंचाई लगभग एक मीटर है। शिवलिंग के आसपास गुफा की छत से पानी टपकता रहता है। यह पानी दुधिया रंग का है। उस दुधिया पानी के जम जाने से गुफा के भीतर तथा बाहर सर्पाकार कई छोटी-मोटी रेखाएं बनी हुई हैं, जो बड़ी ही विलक्षण किंतु बेहद आकर्षक लगती हैं। गुफा की छत पर एक स्थान पर गाय के स्तन जैसे बने हैं, जिनसे दुधिया पानी टपक कर शिवलिंग पर गिरता है।
शिवलिंग के आगे एक और भी गुफा है। यह गुफा बड़ी लंबी है। इसके मार्ग में कई अवरोधक हैं। लोक श्रुति है कि यह गुफा अमरनाथ स्वामी तक जाती है। शिव खोड़ी तीर्थ स्थल पर महाशिवरात्रि के दिन बहुत बड़ा मेला आयोजित होता है जिसमें हजारों की संख्या में लोग दूर-दूर से यहां आकर अपनी श्रध्दा प्रकट करते हैं और आयोजित इस मेले में शामिल होते हैं। शिव खोड़ी की यात्रा बारह महीने चलती है।
शिव खोडी तीर्थ का इतिहास
शिव खोड़ी शिव तीर्थ का कोई प्रामाणिक इतिहास आज तक उपलब्ध नहीं हो पाया है। लोक श्रुतियों में कहा गया है कि स्यालकोट स्र। वर्तमान में यह स्थान पाकिस्तान में है। स्र के राजा सालवाहन ने शिव खोड़ी में शिवलिंग के दर्शन किए थे और इस क्षेत्र में कई मंदिर भी निर्माण करवाए थे, जो बाद में सालवाहन मंदिर के नाम से प्रसिध्द हुए। अति प्राचीन मंदिरों के कई अवशेष अब भी इस क्षेत्र में बिखरे पड़े हैं। शिव खोड़ी शिवभक्तों के लिए एक महान तीर्थ स्थल है। महाकवि कालिदास रघुवंश महाकाव्य में महादेव और शक्ति स्वरूपा पार्वती के बीच व्याप्त संबंध को शब्द तथा अर्थ संयोग के पश्चात् के अस्तित्व के विषय में निम्न श्लोक में अपनी अभिव्यक्ति प्रदान की है।
वागर्थाविव सम्पृक्तौ वागर्थ प्रतिपद्यये। जगत: पितरौ वन्दे पार्वती परमेश्वरौ॥
प्रकृतिक उपादानों से भी भक्ति के भाव जगत निर्माण को प्राप्त होते हैं।
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