ऑंखों में पानी नहीं साहस का तूफान समाया है इन महिलाओं में
इरादे यदि हो बुलंद
तो बीच तूफान में समंदर भी रास्ता देता है।
पल-पल की कहानी लिखने को
समय खुद अपने हाथों से रोशनाई देता है।
भारतीय नारी महान है, यह उक्ति अब धुँधली पड़ने लगी है। अब तो यह कहा जा सकता है कि भारतीय नारी महानतम होने लगी है। अब कोई भी ऐसा क्षेत्र नही। बचा, जिसमें उसका दखल न हो। फिर चाहे राजनीति हो या खेल, विज्ञान का क्षेत्र हो या फिर कोई अन्य क्षेत्र। भाारतीय नारियों की एक बड़ी श्रृंखला है, जिन्होंने कई ऐसे क्षेत्रों में कदम रखा है, जहाँ अब तक पुरुषों का ही वर्चस्व था।
आज इक्कसवीं सदी में जीते हुए जब हम संपूर्ण विश्व की ओर देखते हैं, तो पाते हैं कि नारी शक्ति पूरी तरह से जाग्रत हो चुकी है। अपने इस्पाती इरादों के साथ वह लक्ष्य सिद्धि की ओर आगे बढ़ रही है। कड़ी मेहनत, योग्यता का सदुपयोग और परिस्थितियों को अपने अनुकूल बना लेने की स्वस्फूर्त प्रेरणा के द्वारा आज वह इतनी आगे निकल चुकी है कि उसकी शारीरिक और भावनात्मक निर्बलता भी उसके मार्ग की बाधा नहीं बन पाई। इसका ताजा उदाहरण देखने को मिला महामहिम प्रतिभा पाटिल में।
राष्ट्रपति के सर्वोच्च पद पर आसीन श्रीमती प्रतिभा पाटिल देश की सर्वप्रथम महिला राष्ट्रपति हैं। इन्होंने इस जवाबदारी को सँभालते हुए देश की अन्य प्रथम पंक्ति की महिलाओं की याद ताजा कर दी, जिन पर केवल नारी जाति को ही नहीं, बल्कि संपूर्ण देश को गर्व है। राष्ट्र के सर्वोच्च पद पर विराजमान प्रतिभा पाटिल को इस उपलब्धि के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उन्हें हाशिए पर लाने के लिए टीकाकारों ने कई दावपेंच खेले, किन्तु जीत बुलंद इरादों की हुई और वे अपने लक्ष्य तक पहुँच ही गई। जब उन्होंने अपने पद की शपथ ली, तो हर कहीं उनकी जीत की ही चर्चा हो रही थी। हर नारी की जबान पर उनका नाम था। चर्चा करते समय प्रत्येक नारी के मुख की गर्वीली मुस्कान यही कह रही थी, मानों वे स्वयं ही उस पद पर विराजमान हो। ।
ऐसा नहीं है कि हमारे देश में महिलाएँ कभी किसी उच्च पद पर रही ही नही। प्रधानमंत्री के पद पर आसीन स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी भी प्रथम महिला प्रधानमंत्री थी, जो अपने दृढ़ निश्चय से ही शीर्ष तक पहुँची। आज नारी ने हर क्षेत्र में उन्नति की है। यही कारण है कि आज वह केवल रसोईघर की रानी न होकर प्रत्येक क्षेत्र में अपनी योग्यता का लोहा मनवा रही है। उसकी रसोईघर वाली छवि धीरे-धीरे धूमिल हो रही है, किन्तु इसकी शुरुआत वर्षों पहले हो चुकी है।
सरोजिनी नायडू की बात करें, तो वे हमारे देश की एक प्रतिभावान महिला थी, जो स्वतंत्रता के बाद प्रथम महिला गर्वनर बनी। 'स्वर कोकिला' के नाम से जानी जाने वाली सरोजिनी नायडू राजनीति में होने के बाद भी सरल हृदय कवयित्री थी। राजनीति पैंतरेबाजी उनके स्वभाव का हिस्सा कभी न बन पाई। भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जिस प्रकार राष्ट्रपति भवन के दरवाजे बच्चों के लिए खुले रखते थे, उसी प्रकार सरोजिनी नायडू ने भी राजभवन के द्वार सभी के लिए खुले रख दिए थे। प्रत्येक व्यक्ति के साथ अपनेपन से मिलना उनके स्वभाव में शामिल था। इसी कारण वह सामान्य लोगों में लोकप्रिय हो गई थी। पुरूष जहाँ अपने रूखे स्वभाव के कारण कई कामों में पीछे रह जाता है, वहीं नारी मेलजोल एवं अपनेपन के कारण कई कठिनाइयों को पार कर लेती है। यह बात सरोजिनी नायडू में थी। वे अपने सरल एवं मूदुल व्यवहार के कारण सभी को अपना बना लेती थी। ।
उत्तर प्रदेश की प्रथम मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी को कौन नहीं जानता? 1963 में जब इन्होंने अपना पदभार सँभाला तो किसे पता था कि उनकी इस सफलता के साथ ही उत्तरप्रदेश महिलाओं के मामले में एक भाग्यशाली राज्य बनने जा रहा है। राजनीति के क्षेत्र में या अन्य कई क्षेत्रों में इस बीच कई बदलाव आए और हमेशा यह प्रदेश अपनी महिला प्रतिभा का लोहा मनवाता रहा। सुचेता कृपलानी कभी भी 'नोट और वोट' के लिए काम नहीं किया। वे एक अच्छी प्रबंधक थीं। उनके साथ काम करने वालों की राय उनके बारे में यही थी कि वे अत्यंत बुध्दिशाली महिला थीं। केवल विधानसभा सदस्यों के साथ ही अपनेपन से नहीं मिलती थीं, बल्कि वे सामान्य लोगों से भी अपनापे के साथ बात करती थीं। छोटे से छोटे लोगों की परेशानियों की ओर ध्यान देती थीं। यही कारण है कि उन्होंने अपने यहाँ काम करने वाली एक स्त्री की बंध्यत्व की पीड़ा को समझा और उसका अच्छे से अच्छे डॉक्टर के पास इलाज करवाया। परिणाम स्वरूप उसे पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। अपनी व्यस्तताओं के बीच भी ऐसे सेवा कार्य के लिए समय निकाल लेना उनके स्वभाव में शामिल था।
अपने देश की प्रथम मुख्य न्यायाधीश, दिल्ली की प्रथम महिला जज लीला शेठ किसी परिचय की मोहताज नहीं। इस महिला पर केवल गुजराती भाई-बहनों को ही नहीं, संपूर्ण देशवासियों को गर्व अनुभव होता है। दिल्ली हाईकोर्ट में जब उन्होंने न्यायमूर्ति की कुर्सी पर बैठ कर अपना पदभार संभाला, तो अनेक व्यक्ति केवल समाज में आए इस परिवर्तन को देखने के लिए ही उमड़ पड़े थे। 1971 में हिमाचल प्रदेश की हाईकोर्ट में उन्हें मुख्य न्यायाधीश के रूप में चुना गया। उसके पहले उन्होंने पूरे बारह वर्षों तक जज के पद पर आसीन होकर अपना कार्यभार ईमानदारी पूर्वक संभाला था। इसलिए उन्हें यह मुख्य पद दिया जाना अपने आपमें कोई आश्चर्य न था, किंतु खुशी इस बात की थीं कि वे देश की प्रथम मुख्य न्यायाधीश बनीं। इस सफलता को प्राप्त करने में उन्हें कई चुनौतियाें का सामना करना पड़ा। वे इस बात को अच्छी तरह जानती थीं कि कई टीकाकारों की नजरें उन पर गड़ी हुई हैं। इसलिए वे इस मामले में हमेशा सतर्क एवं अपने इरादों में दृढ़ रहीं।
अब हम बात करते हैं इंग्लिश चैनल पर करने वाली प्रथम ऐशियन महिला आरती शाह की। जब उन्होंने इस उपलब्धि को प्राप्त किया, तब वे केवल 19 वर्ष और 5 दिन की थीं। कोलकाता की इस बंग्ला संस्कृति को करीब से जानने वाली गुजराती बाला ने अपने दृढ़ नि ्चय के बल पर केवल 16 धंटे और 20 मिनट में ही 42 मील तैर कर ईंग्लिश चैनल को पार कर लिया। 1960 में उन्हें इस साहसिक कार्य के लिए पद्मश्री से विभूशित किया गया। उनके द्वारा यह साहसिक कार्य करने के बाद इस क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए महिलाओं के लिए राह खुल गई। कितने ही राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करने के बाद आरती शाह ने ओलम्पिक में भी देश का नाम शीर्ष पर पहुँचाया। सन् 1952 में उनके साथ ओलम्पिक खेलों में हिस्सा लेने के लिए मुंबई की डॉली नजीर भी गई थीं। दोनों ने ही सेंडगेट में भारत की विजय पताका फहराई थी। ये भारत के खेल के इतिहास के सुनहरे क्षण थे, जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता।
कार रैली की बात करें, तो आमतौर पर यह पुरुषों का ही क्षेत्र माना जाता है। किंतु इस क्षेत्र में भी महिलाओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। सन् 2002 में हिमालय कार रैली मेें मारूति-800 कार में 18 पुरूषों के साथ स्पर्धा में आने वाली सारिका शेरावत ने आठवाँ स्थान प्राप्त किया। भारतीय कार रैली के भीष्म पितामह माने जाने वाले हरि सिंह से आशीर्वाद प्राप्त कर वे कभी पीछे नहीं रहीं। दोगुने जोश के साथ आगे बढ़ने वाली इस महिला ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और कार रैली में हमेशा साहसिकता के साथ भाग लिया। 2006 में स्पर्धा के दौरान उनकी जिप्सी पलट गई थी, तब वे गंभीर रूप से घायल हो गई थी, किंतु उनका मनोबल नहीं टूटा। ऐसी कई छोटी-मोटी दुर्घटनाओं को हँसते हुए झेलते ये महिला लगातार अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ती गई।
क्या आपने आग से जुड़ी हुई किसी दुर्घटना के समय अग्निशमन अधिकारी के रूप में किसी महिला को देखा है? आपको आश्चर्य होगा कि हर्शिनी कानेकर हमारे देश की प्रथम महिला अग्निशमन अधिकारी हैं। जब इंटरव्यू के दौरान बोर्ड के सदस्यों कहा कि वे अग्निशमन दल की ''किरण बेदी'' बनने जा रही हैं, तो उनके चेहरे पर साहस और उत्साह की मुस्कान खिल उठीं और दृढ़ संकल्प के साथ यह महिला अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ने को तत्पर हो उठी।
साहस की साकार मूर्ति बचेन्द्री पाल को कौन नहीं जानता! माउन्ट ऐवरेस्ट पर भारत की विजय पताका फहराने वाली यह प्रथम भारतीय महिला बनीं। एक ऐसी पर्वतारोही जिन्होंने 13 वर्ष की छोटी उम्र में ही कुछ अलग कर दिखाने का निश्चय कर लिया। उनकी प्रेरणा बनीं- ईंदिरा गांधी की वे तस्वीरें, जो वे बचपन में अखबारों में देखी थीं। इन तस्वीरों ने उन्हें जीवन में कुछ नया कर दिखाने का जोश भर दिया। एक ग्रामीण बाला के लिए जहाँ साक्शर होना भी अपने आपमें एक उपलब्धि होता है, वो यदि स्नातकोत्तर करने के बाद माउन्टेनियरींग का कोर्स भी कर ले, तो यह एक आश्चर्य होता है। इसी आश्चर्य के साथ वे उस सपने को पूरा करने में लग गईं जो उन्होेंने बचपन में देखा था। 23 मई 1984 में उन्होंने माउन्ट एवरेस्ट पर जब भारत की विजय पताका फहराई तो भारतीय इतिहास के स्वर्णिम पन्नों पर एक और नाम जुड़ गया।
भारतीय सफल महिलाओं की सूची इतनी लम्बी है कि उन्हें गिनाते हुए समय गुजर जाएगा, पर नामों की इतिश्री नहीं होगी। होनी भी नहीं चाहिए। आज महिलाएँ जिस साहस और उत्साह के साथ अपने लक्ष्य में आगे बढ़ रही है, उसमें कोई बाधा उन्हें डिगा नहीं सकती। किरण बेदी, कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स, अरूंधती रॉय, हरिता देओल, सानिया मिर्जा, झूलन गोस्वामी, मेधा पाटकरे के अलावा कार्पोरेट जगत में नित नए नाम आ रहे हैं, जो अपनी सूझबूझ से लगातार आगे बढ़ रही हैं। इन महिलाओं ने हर क्षेत्र में साहस का परिचय दिया है। इससे यह कहा जा सकता है कि अब किसी भी महिला को चारदीवारी के भीतर बाँधना मुश्किल है, क्योंकि उसने अब अपना आसमान बना लिया है। अब उसे आवश्यकता नहीं है पुरुषों के सहारे की, अपने हाथों से अपना भविष्य लिखने वाली भारतीय महिलाएँ एक दिन पूरे विश्व में छा जाएँगी देखते रहना।
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