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शनिवार, 22 अक्तूबर 2011

Paradise on earth: "Darjeeling"

सतरंगी किरणों की अटखेलियों
वाला शहर 'दार्जिलिंग'

TOY TRAIN

हिमाच्छादित मुकुट धारण किए, हर-भरे वन। दूर-दूर तक फैले हरी चाय के खेत मानो जमीन पर हरी चादर फैली हो। दार्जिलिंग की पहाड़ी वादियों की स्वच्छ हवा और निर्मल आसमान बरबस ही दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र की मनोरम छटा को देखकर सैलानी एक बार आह भरे बिना नहीं रह सकते। जब कोई सुबह उठकर अपने घर की खिड़की खोलता है तब हिमषिखर कंचनजंगा को छूकर आयी ठण्डी और ताजी बयार का झोंका उसके तन को छूकर आगे बढ़ता है और वह व्यक्ति अपने आपको ताजा महसूस करता है। इसके साथ ही दार्जिलिंग की गरम-गरम चाय की चुस्की हो तो क्या कहना। विष्व में शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति हो जो पर्यटन की दृष्टि से या यहाँ की विष्व प्रसिद्ध चाय से अवगत न हो। यहां जब रोडोडेन्ड्रन (स्यानिच नाम गुरांस) और मेग्नोलिया (चॉप) के फूल खिलते हैं तब यहां के प्राकृतिक दृश्य में चार चांद लग जाते हैं और पर्यटकों का ध्यान बरबस अपनी ओर खींच लेता है।

दार्जिलिंग, तिब्बती शब्द "दोर्जी'' से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ है अनमोल पत्थर। धार्मिक दृष्टि से "दोर्जी'' का अर्थ है इन्द्र देवता का "बज्र''। इसलिये इसे "थण्डा बोल्ट'' भी कहा जाता है। दार्जिलिंग जिले का दूसरा महकमा खरसांग (कर्सियांग) है जो कभी 'सफेद आर्किड' एक प्रकार का फूल जिसका स्थानीय नाम "सुनखरी'' के लिए प्रसिद्ध है। इसी पर इस जगह का नामकरण किया गया है। कर्सियांग शहर ऐतिहासिक दृष्टि से भी प्रसिद्ध है।

सन्‌ १९३६ में आजाद हिन्द फौज के जनक सुभाष चन्द्र बोस ने कर्सियांग शहर के नजदीक अपने पैतृक मकान गिद्ध पहाड़ में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ते हुए, ब्रिटिश सरकार द्वारा इनके गिरफ्‌तारी के आदेश निकाले जाने के बाद इन्होंने कुछ समय एकान्तवास में गुजारा था। इन्हीं दिनों फजलुल हक जो संगठित बंगाल के प्रधानमंत्री थे, ने भी इसी स्थान पर कुछ दिन गुजारे थे। सन्‌ १८८५ में मार्क टवेन ने भी कर्सियांग की इस हरी-भरी वादियों में कुछ समय के लिए ही सही अपना कुछ समय व्यतीत किया था। कवि गुरू रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कर्सियांग महकमे के कुछ इलाकों में वास कर कुछ अच्छी कविताओं की रचना की थी। इसके कुछ प्रसिद्ध गीतों और संगीत की रचना भी इसी महकमा के उनके मन पसंद इलाकों में की थी। कहा जाता है नोबेल पुरस्कार विजेता मदर टेरेसा को गरीबों की देखरेख करने की भावना भी कर्सियांग से दार्जिलिंग जाते हुए ही प्राप्त हुई थी।

दार्जिलिंग जिले का तीसरा महकमा कालेम्पोंग है जिसे भूटानी भाषा के शब्द में 'मंत्रियों का गढ़' और 'पर्वतमाला से निकला प्रक्षेपण' भी कहा जाता है। लेप्चा भाषा में इसका अर्थ है - पहाड़ों की संकरी समतल भूमि जहाँ हम खेलते कूदते हैं। कालेम्पोंग शहर से कुछ दूर दामसांग गढ़ी नामक स्थल है जिसे तिनताक लेप्चा राजा इसे दुर्ग के रूप में प्रयोग करते थे जो पहाड़ में बसा है। आल भी इसका भग्नावषेष मौजूद है जो अब पर्यटन केन्द्र बन गया है। कालेम्पोंग महकमा के अंतर्गत लाभा, लोले गांव और अन्य कई जगह है जिसे नया पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया है। लोग इन स्थलों को कुछ भी संज्ञा दें पर पर्यटन की दृष्टि से सभी महत्वपूर्ण और रमणीय हैं।

दार्जिलिंग और कर्सियांग को तीस्ता नदी कालेम्पोंग से अलग करती है। नदी के दोनों किनारों पर हरे-भरे घने जंगल है । कई स्थानों में इन जंगलों के बीच से निकलते हुए पहाड़ी झरने ऐसे लगते हैं मानों कामधेनु के थन से दूध निकल रहा हो। यहां के पहाड़ी झरने, बहुरंगी फूल, मनमोहक नागमणि के पौधे और कई ऐसे प्राकृतिक वनस्पतियां और वस्तुएं हैं जो स्थानीय लोगों के साथ-साथ सैलानियों को भी आनंद प्रदान करती रही हैं।

प्राप्त आंकड़ों के अनुसार सन्‌ १८२९ में अंग्रेजी हुकूमत के अधिकारियों एवं जवानों के विश्राम एवं स्वास्थ्य वर्धन के लिए बसाए गए इस पर्वतीय क्षेत्र ने बहुत ही उतार चढ़ाव का अनुभव किया है। सन्‌ १८६६ में हील कार्ट रोड का निर्माण और लगभग सन्‌ १८७८ में फ्रेकंलिन प्रेस्जेज के दिमाग में सिलीगुडी से दार्जिलिंग तक छोटी लाइन रेल स्थापित करने का ख्याल आया जो लगभग एक वर्ष बाद हकीकत में तबदील हुई और १८७९ से रेल लाइन बिछाने का काम शुरू हुआ। सन्‌ १८८१ में दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे जो ट्वॉय ट्रेन के नाम से प्रसिद्ध है के निर्माण के बाद इस क्षेत्र के विकास में कुछ तेज गतिविधियाँ दिखाई देने लगी और यह अपने स्वास्थ्य वर्धक जलवायु एवं प्राकृतिक मनोरम दृष्यों के कारण देष के सभी पहाड़ी स्थलों की रानी बन गई और इसे विष्व के पर्यटन स्थलों में से एक मुख्य पर्यटन स्थल माना जाने लगा। कार्ट रोड के निर्माण के बाद लगभग सन्‌ १८४१ में ब्रिटिश सेना के एक अधिकारी डाक्टर क्याम्पवेल दार्जिलिंग आए और उन्होंने ही यहां परीक्षण के तौर पर चाय की खेती शुरू की थी। लगभग सन्‌ १८६९से ही इस क्षेत्र में सिन्कोना की खेती शुरू हुई जिससे कुनाइन औषधि तैयार की जाने लगी। १८७८ में दार्जीलिंग में लायड वोटानिकल गार्डन स्थापित हुआ और बर्च हिल पार्क १८७९ में स्थापित किया गया। सतह मार्ग और रेल मार्ग स्थापित किए जाने के बाद अन्य कई ऐतिहासिक संसाधनों की स्थापना हुई जैसे १८९७ में दार्जिलिंग शहर के समीप सिद्रा बोंग में पनबिजली संयंत्र लगाया गया जो एषिया का पहला पनबिजली उत्पादन केन्द्र माना गया है। उसके बाद इस क्षेत्र में लगभग १९२० के दशक से अच्छे शैक्षिक संस्थानों को स्थापित करने का कार्य प्रारम्भ हुआ और आज भी स्कूली शिक्षा के लिए अच्छे शैक्षिक संस्थान मौजूद हैं जहां विदेशो से भी स्कूली शिक्षा अर्जन करने विद्यार्थी आते हैं।







दार्जिलिंग पर्वत क्षेत्र के इन तीनों महकमों (दार्जिलिंग, कर्सियांग और कालेम्पोंग) में पर्यटन की दृष्टि से सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करने वाले ऐसे बहुत से क्षेत्र हैं। आज इन क्षेत्रों को सड़क सुविधा उपलब्ध है। यहां ऐसे क्षेत्र भी हैं जहां पैदल यात्रा करनी पड़ती है। पैदल यात्रा करने वाले इच्छुक सैलानियों के लिए ऐसे दुर्गम क्षेत्रों की कमी भी नहीं है और वे इसका भरपूर आनंद उठाते हैं दार्जिलिंग कर्सियांग और कालेम्पोंग से सबसे नजदीकी बड़ी रेल लाइन वाला स्टेशन सिलीगुडी और न्यू जलपाईगुडी है और नजदीकी हवाई अड्डा बागडोगरा है। दार्जिलिंग, कर्सियांग, सिलीगुड़ी से विष्व की सबसे छोटी रेल लाइन 'ट्वॉय ट्रेन' से जुड़ा है। एन जे पी से दार्जिलिंग तक की ८२ किलोमीटी की दूरी यह छोटी ट्ववॉय ट्रेन जंगलों और चाय बगानों के बीच से होती हुई लगभग आठ घंटों में पूरी करती है। यहां ट्रेन ७४०८ फीट की ऊंचाई पर स्थित धूम स्टेषन से दार्जिलिंग स्टेशन पहुंचने से पहले विष्व प्रसिद्ध बतासिया लूप से बर्फ ढ़की पर्वतमाला कंचनजंगा का मनोरम दृश्य दिखाती हुई नीचे उतरती है। शायद इस रेल के सफर का रोमांचक एहसास पाने के बाद प्रसिद्ध अंग्रेजी साहित्यकार तथा लेखक मार्क टवेन ने १८९६ में लिखे अपने पुस्तक में उद्गार इस तरह व्यक्त किए थे कि यह यात्रा इतनी रोमांचक, उत्तेजना पूर्ण और मुग्ध करनेवाली है कि इसे आठ घंटे के बजाये हफ्तेभर कर दिया जाना चाहिए।'' यहाँ सभी क्षेत्रों में यातायात की अच्छी सुविधा भी है। बस और टैक्सियों से सिलीगुडी से दार्जिलिंग, और सिलीगुडी से कालेम्पोंग का सफर दोनों ही लगभग तीन-तीन घंटों का है जो अत्यंत मनमोहक और आनंददायक सिद्ध होता है।

दार्जिलिंग के दर्शनीय स्थानों में ८४८२ फीट पर स्थित टाइगर हिल है जहाँ से सूर्योदय का मनोरम दृश्य देखा जा सकता है। इसके साथ ही बर्फ की चादर से ढकी पर्वतमाला कंचनजंगा, पूर्वी हिमालयन पर्वत श्रृंखला और विश्व का सबसे ऊंचा पर्वत 'सागरमाथा' यानी माउंट एवरेस्ट की चोटी भी यहाँ से दिखाई देती है।



दार्जिलिंग के नजदीक स्थित विश्व प्रसिद्ध बतासिया का रेलवे लूप इंजीनियरिंग की जीती-जागती मिसाल है। बौद्ध मठ, जापानी पैगोड़ा, हिमालयन सोसायटी, पद्मा जानाइडु, जुलोजिकल पार्क, इसके साथ लगे हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, चट्टान आरोहण के लिए तेज्जींग और गम्बु चट्टान, लायड बोटानिकल उद्यान, दार्जीलिंग गोरखा पर्वतीय परिषद द्वारा नवनिर्मित गंगामाया पार्क, रॉक गार्डन, श्रवरी पार्क, राज भवन, वर्दमान महाराजा की कोठी आदि यहाँ के दर्शनीय स्थलों में से है। इसके अलावा मिरिक झील, सिन्जल झील जोर पोखरी सिंगला बाजार माजीटार विजनकारी, सन्दकपू, फालुट, भी पर्यटन की दृष्टिकोण से काफी लोकप्रिय हैं। कालेम्पोंग और कर्सियांग महकमा में कई ऐसे मन को लुभाने वाले स्थल है जो अक्षुण्ण है और इन्हें पर्यटन की दृष्टि से विकसित नहीं किया जा सका है। दार्जिलिंग पर्वतीय परिषद के पर्यटन विभाग दार्जिलिंग शहर में बढ़ती सैलानियों की भीड़ को देखते इन अक्षुण्ण क्षेत्रों को विकसित कर पर्यटकों को इन इलाकों की ओर आकर्षित करने पर विषेष ध्यान दे रहा है। परिषद द्वारा नव निर्मित गंगा माया पार्क, रॉक गार्डन और श्रवरी पार्क पर्यटकों का मुख्य आकर्षण केन्द्र बनता रहा है। बहुत से पर्यटक इन नये पर्यटन केन्दों को देखने जाते हैं एक समय था दार्जिलिंग शहर के समीप सिहामारी में स्थित रोप वे काफी लोकप्रिय था जो सिहामारी से सिंगला बाजार तक जाती थी। १९ अक्तूबर २००४ में हुई एक दुर्घटना में चार लोगों की घटना स्थल पर मृत्यु होने से इसे बंद कर दिया गया। राज्य सरकार के जनकार्य और वन विभाग इसे पुनः चालू करने के लिए प्रयास कर रह है। इसके खुल जाने के बाद इस क्षेत्र में पर्यटन क्षेत्र में और वृद्धि होने की आषा की जा रही है।

दार्जिलिंग के पहाड़ी अंचल में पैदल यात्रा की चाह रखने वाले सैलानियों के लिए यह स्वर्ग के समान है। यहां के हृद्य स्पर्षी दृष्यों का प्रकृति प्रेमी सैलानी लाभ उठाए बिना कैसे छोड़ सकते हैं। पैदल यात्री सैलानियों को भंज्यांग से १२,००० फीट ऊंचाई पर स्थित सन्दकपू फालुट सब से लोकप्रिय क्षेत्र माना जाता है। यहाँ पहुँच कर मानो ऐसा प्रतीत होता है जैसे बर्फ से ढकी पर्वत की गोद में बैठे हैं क्योंकि यहाँ से बिल्कुल सामने कंचनजंगा खड़ा दिखाई देता है साथ ही अन्य बहुत-सी बर्फीली पर्वत मालाएं। इसके मार्ग में रोडोडेन्ड्रम और मेग्नोलिया (गुंरास और चॉप ) के फूल खिलने के समय अगर कोई भी पर्यटक इस दृष्य को देखे तो उसे वह जन्नत की सैर महसूस होगी। इसके अलावा मार्ग में विभिन्न रंग-बिरंगे फूलों का नजारा भी दिखाई देगा। आप कल्पना मात्र कर सकते हैं कि यह स्थान कैसा होगा? पैदल यात्रा करते समय इस पहाड़ी इलाके में लगभग छः सौ विभिन्न प्रकार के पक्षी इन हरेभरे जगलों में उड़ते, चहचहाते दिखाई देंगे।

दार्जिलिंग से मानेभज्जयांग होकर संदकपू तक जिसकी दूरी लगभग ११८ किलोमीटर है पैदल यात्री सैलानी क्षेत्र के प्राकृतिक दृश्यों का भरपूर आनंद उठाते हुए इस यात्रा को चार दिन के अंदर पूरा करते हैं। अब इन जगहों पर जीप में सवार होकर भी यात्रा की जा सकती है। लेकिन पैदल यात्रा का आनंद ही और है। यहां कई स्थानों पर ठहरने के लिए इंतजाम भी किए गए हैं जिसमें सरकारी डाक बंगला और छोटे-मोटे निजी होटल शामिल हैं।

यह क्षेत्र धार्मिक दृष्टिकोण से भी सम्पन्न हैं। यहां बहुत सारे पुराने मन्दिर, बौद्ध मठ (गुम्फा) गिरिजाघर और मस्जिदें हैं जिसे धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित किया जा सकता है। यहाँ पर इस समय गाँव पर्यटन (Village Tourism ) पर विशेष जोर दिय जा रहा है इसे वे विदेशी पर्यटक जो एकान्त प्रिय हैं और पसंद करते हैं। वे स्थानीय खानपान, वातावरण, संस्कृति के बारे में जानकारी भी प्राप्त करना चाहते हैं। यहाँ पहाड़ों के बीच से उगता सूरज और शाम को पहाड़ों के बीच अस्त होता सूर्य भी एक अनोखा दृष्य प्रस्तुत करता प्रतीत होता है। इस समय का वातावरण ही कुछ अलग ही होता है।

कुछ भी हो जो पर्यटक व व्यक्ति विशेष एक बार इस क्षेत्र का भ्रमण कर जाता है उसका मन और हृद्य चाहता है कि पुनः इसका भ्रमण करें। यहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता बरबस उसे इस ओर खींचती रहती है। वे लोग जिन्हें इन क्षेत्रों के भ्रमण का अवसर प्राप्त नहीं हुआ और जो यहां आकर जाने के बाद उन्हें सुनाते हैं उनको भी एक बार भ्रमण करने की लालसा जागृत हो जाती है और इन हरी-भरी वादियों के मनोरम दृश्य को अपने कल्पना से सजाना शुरू करते हैं और भ्रमण के लिए लालायित हो जाते हैं।

किसी ने कहा है कि इस पृथ्वी व धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यही है,यहीं है, यहीं है।



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