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मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

जुलाहे को भारी पड़ी मूर्खों की सीख

(भारतीय साहित्य की नीति कथाओं का विश्व में महत्वपूर्ण स्थान है। पंचतंत्र उनमें प्रमुख है। पंचतंत्र की रचना विष्णु शर्मा नामक व्यक्ति ने की थी। उन्होंने एक राजा के मूर्ख बेटों को शिक्षित करने के लिए इस पुस्तक की रचना की थी। पांच अध्याय में लिखे जाने के कारण इस पुस्तक का नाम पंचतंत्र रखा गया। इस किताब में जानवरों को पात्र बना कर शिक्षाप्रद बातें लिखी गई हैं। इसमें मुख्यत: पिंगलक नामक शेर के सियार मंत्री के दो बेटों दमनक और करटक के बीच के संवादों और कथाओं के जरिए व्यावहारिक ज्ञान की शिक्षा दी गई है। सभी कहानियां प्राय: करटक और दमनक के मुंह से सुनाई गई हैं।)

कहानी : मूर्ख की सीख बड़ी दुःखदायी


किसी नगर में मन्थर नाम का एक जुलाहा रहता था। एक दिन जब वह कपड़ा बना रहा था तो उसी समय खड्डी आदि उसके सारे उपकरण टूट गए। तब उसने कुल्हाड़ी उठाई और लकड़ी काटने के लिए घर से निकल पड़ा। घूमता हुआ वह समुद्र के किनारे पहुंच गया। वहां उसे शीशम का वृक्ष दिखाई दिया।

जुलाहा उसकी लकड़ी काटने के लिए उस वृक्ष पर चढ़ गया। उस वृक्ष पर एक यक्ष रहता था। जुलाहे ने काटने के लिए ज्योंही कुल्हाड़ी उठाई कि तभी वह बोला, “मैं इस वृक्ष पर रहता हूं, तुम इसको नहीं काट सकते।” जुलाहा बोला, “मैं क्या करूं, विवश हूं। मेरे सारे उपकरण टूट गए हैं। मुझे उसके लिए लकड़ी चाहिए। उपकरणों के अभाव में मेरा सारा परिवार भूखों मर रहा है। आप तो किसी भी अन्य वृक्ष पर जाकर निवास कर सकते हैं।” यक्ष बोला, “मैं तुम पर प्रसन्न हूं। तुम मुझसे कोई वरदान मांग लो किन्तु इस वृक्ष को काटो नहीं।” जुलाहा बोला, “यदि यही बात है तो फिर मैं जाकर अपनी पत्नी और मित्रों आदि से पूछकर आता हूं, उसके बाद ही आप वर दीजिए।”

जुलाहा घर गया तो मार्ग से उसको अपना मित्र नाई मिल गया। उसको उसने सारी कथा सुनाई और फिर उसने पूछने लगा, “बोलो, मुझे उससे क्या वरदान मांगना चाहिए।” नाई बोला, “यदि यही बात है तो फिर राज्य की मांगो, तुम राजा बन जाना और मैं तुम्हारा मंत्री बन जाऊंगा।” “तुम्हारा कहना ठीक है।

मैं अपनी पत्नी से पूछ लेता हूं।” नाई बोला, “क्या बात करते हो! स्त्री से परामर्श करना शास्त्रविरुद्ध है। स्त्रियों में बुद्धि ही कितनी होती है? कहा भी है जिस घर में स्त्री का प्राधान्य होता है, जिस घर का स्वामी धूर्त, जुआरी या बालक होता है, वह घर शीघ्र ही विनष्ट हो जाता है।” जुलाहा बोला, “फिर भी मैं अपनी पत्नी से अवश्य पूछूंगा। वह बड़ी ही नेक पतिव्रता स्त्री है।”

जुलाहा नाई के पास से चलकर अपनी पत्नी के पास आया। उसने सारा वृत्तान्त सुना दिया और यह भी कहा कि उसके मित्र नाई ने तो राज्य की बात कही है।

उसकी पत्नी बोली, “छिः! नाई की भी कोई बुद्धि होती है। कहा गया है कि नाई, भाट, जैसे चतुर व्यक्ति से तो कभी कोई परामर्श करना ही नहीं चाहिए। और फिर राज्य बड़ा कष्टकारक होता है। देखो न, राज्य के लिए राम को वन जाना पड़ा। राज्य के लिए यदुवंशियों का विनाश हुआ। राजा नल ने राज्य के लिए ही कष्ट झेले। सौदास राजा को शाप मिला। राज्य के लिए परशुराम ने कार्तवीर्य को मार डाला। राज्य के लिए रावण की क्या दुर्दशा हुई।

समझदार व्यक्ति को कभी राज्य की इच्छा नहीं करनी चाहिए।” “यह तो ठीक है। तब मैं उनसे क्या मांगू?” “तुम नित्य एक कपड़ा बुनते हो, उससे हमारा घर का खर्च चलता है। तुम यक्ष से दो हाथ तथा एक सिर और मांग लो, इससे दुगुना काम होगा। बस एक के मूल्य से घर का खर्च चलेगा और दूसरे के मूल्य से अन्य खर्च चलेंगे। तब हम अपनी जाति के लोगों में प्रतिष्ठापूर्वक रह सकेंगे।”

जुलाहे को यह बात भा गई और वह यक्ष के पास जाकर विनीत भाव से बोला, “यदि आप मुझे वरदान देना ही चाहते हैं तो मुझे दो भुजाएं तथा एक सिर और दे दीजिए।” यक्ष ने कहा, “तथास्तु।”

तुरन्त ही जुलाहा दो सिर और चार हाथ वाला हो गया। उस रूप में जब वह घर के लिए चला तो लोगों ने उसको राक्षस समझकर मारना आरम्भ कर दिया। उनकी मार खाकर वह वहीं गिरकर मर गया।

यह कथा सुनाकर चक्रधर ने कहा, “आप ठीक ही कहते हैं। जो व्यक्ति असम्भव की आशा और अनागत की चिन्ता करता है वह मुसीबत में पड़ता है।”

(साभारः पंचतंत्र की कहानियां, डायमंड प्रकाशन, सर्वाधिकार सुरक्षित।)

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