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शनिवार, 12 मई 2012

Parwarish

चुनौतीपूर्ण हुई परवरिश

Aishwarya Rai Bachchan With her Child


बच्चे सचमुच बडे हो रहे हैं। उनके साथ बडी हो रही हैं पेरेंट्स की परेशानियां। पिछले दशक में एकल परिवारों की तादाद में तेजी से वृद्धि हुई है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आगमन के बाद लोग छोटे शहरों से महानगरों की ओर पलायन कर रहे हैं। ज्यादातर परिवारों में स्त्रियां भी जॉब करने लगी हैं। ऐसे में माता-पिता के पास बच्चों के लिए समय नहीं होता। वन फेमिली वन चाइल्ड का फंडा तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। टीवी, इंटरनेट और मोबाइल के कारण आज के बच्चे छोटी उम्र में ही बाहरी दुनिया की उन सच्चाइयों को भी जान लेते हैं, जो उन्हें नहीं जाननी चाहिए। ऐसे में पेरेंट्स के लिए उन्हें संभालना मुश्किल होता जा रहा है। लिहाजा अब पेरेंटिंग के तरीके में भी तेजी से बदलाव आ रहा है।
पॉजिटिव हुई पेरेंटिंग
आज से दस साल पहले तक हम यह सोच नहीं पाते थे कि बच्चे को डांटे बिना भी पढाया जा सकता है। पहले लोगों के मन में यह धारणा बनी हुई थी सजा के डर के बिना बच्चे को सुधारा नहीं जा सकता। तब अभिभावक बडी सख्ती से बच्चों को नियंत्रित करने की कोशिश करते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। आज हम बच्चों से यह उम्मीद करते हैं कि वे केवल पढाई ही नहीं बल्कि स्पो‌र्ट्स, डांस, म्यूजिक.हर क्षेत्र में अव्वल हों। आज के माता-पिता उन पर इस बढते दबाव को महसूस करते हैं और उन्हें यह मालूम है कि अगर बच्चों के साथ ज्यादा सख्ती बरती गई तो इससे उनका मानसिक संतुलन बिगड सकता है। परीक्षा में कम अंक लाने की वजह से बच्चों में आत्महत्या की घटनाएं भी बढ रही हैं। इसीलिए अब पॉजिटिव पेरेंटिंग की अवधारणा सामने आई है। इसके अनुसार बच्चों को निर्देश देते समय नकारात्मक के बजाय सकारात्मक वाक्यों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, जैसे-पढो, नहीं तो फेल हो जाओगे. के बजाय अब बच्चों से यह कहना ज्यादा कारगर साबित होता है कि मन लगाकर पढो तो क्लास में फ‌र्स्ट आओगे। अब पेरेंट्स को यह बात समझ में आने लगी है कि डांटना हर मर्ज की दवा नहीं है। बच्चे पर इसका उल्टा असर होता है। डर की वजह से उसका आत्मविश्वास कमजोर पड जाता है और वह घबरा कर ज्यादा गलतियां करने लगता है। ऐसे में अब बच्चे को प्यार से समझाने का फॉम्र्युला ज्यादा फायदेमंद साबित हो रहा है।
दूर हुई गैर बराबरी
पिछले दशक में आने वाला दूसरा बडा बदलाव यह है कि अब माता-पिता बेटे और बेटी की परवरिश में कोई भेदभाव नहीं बरतते। वे अपनी बेटी को भी बेटे की तरह हर क्षेत्र में आगे बढने के लिए सारी सुविधाएं उपलब्ध करवाते हैं। आज के माता-पिता शुरू से यह मानकर चलते हैं कि बेटी के लिए भी उसका करियर उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना कि बेटे का। अब कोई मां अपनी बेटी को कुशल गृहिणी बनाने का सपना नहीं देखती, बल्कि वह उसे भविष्य में सफलता की नई ऊंचाइयों पर देखना चाहती है। मध्यवर्गीय परिवारों की लडकियां भी उच्चशिक्षा के लिए विदेश जा रही हैं। आज के अभिभावकों को अपनी बेटियों पर पूरा भरोसा है कि वे खुद अपना भला-बुरा समझते हुए सही निर्णय लेने में सक्षम हैं।
मिला पर्सनल स्पेस
हम सबने यह महसूस कि किया है कि पिछले दस वर्षो में बच्चों का बौद्धिक विकास ज्यादा तेजी से हो रहा है। आज के बच्चे अपने स्व को लेकर ज्यादा सजग हैं। ग्यारह-बारह वर्ष की उम्र से ही उनमें इतनी परिपक्वता आ जाती है कि वे दुनिया को अपने ढंग से समझने की कोशिश करते हैं। ऐसे में उन्हें पर्सनल स्पेस की जरूरत महसूस होती है और अभिभावक भी इसका पूरा खयाल रखते हैं। महानगरों के छोटे से फ्लैट में भी बच्चों का एक कोना जरूर होता है, ताकि वे एकाग्रचित्त होकर पढाई करें, दोस्तों को घर पर बुलाएं और उनके साथ अपने मन की बातें शेयर करें। इस संबंध में दिल्ली की बाल मनोवैज्ञानिक पूनम कामदार कहती हैं, बच्चों के संतुलित विकास के लिए उन्हें पर्सनल स्पेस देना अच्छा रहता है, लेकिन उन पर थोडी निगरानी भी रखनी चाहिए। ताकि वे इस छूट का गलत फायदा न उठाएं।
दोस्ताना हुआ रिश्ता
पुरानी कहावत है कि जब बच्चे का जूता आपके पैरों में आने लगे तब आप उसे अपना दोस्त समझें। इस पुरानी कहावत का मर्म नए जमाने के पेरेंट्स ने बखूबी समझ लिया है और वे अपने बच्चों के साथ दोस्ताना रिश्ता कायम करने की कोशिश कर रहे हैं। आजकल ज्यादातर परिवारों में एक या दो ही बच्चे होते हैं। ऐसे में माता-पिता को उनके दोस्त और भाई-बहन की भूमिका भी निभानी पडती है। इस मुद्दे पर दिल्ली स्थित एक निजी कंपनी में कार्यरत मार्केटिंग एग्जिक्यूटिव आकाश सक्सेना कहते हैं, मैं हर संडे को अपने 19 वर्षीय बेटे के साथ क्रिकेट जरूर खेलता हूं। जब वह चार साल का था, तभी से यह सिलसिला जारी है। उसके साथ मेरा रिश्ता बेहद दोस्ताना है। वह अपने दिल की सारी बातें मुझसे शेयर करता है। इस बार उसकी बर्थडे पर मैंने उसे अपने हाथों से ड्रिंक ऑफर किया। मेरा मानना है कि अगर मैं उसे हार्ड ड्रिंक लेने से रोकूंगा तो वह चोरी-छिपे पीने की कोशिश करेगा।

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