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शनिवार, 28 दिसंबर 2013

किस दिन कौन सी दिशा में यात्रा न करें?


देव भक्ति में श्रद्धा और विश्वास होने के साथ-साथ शुद्धता का भी महत्व है। यह केवल धार्मिक नियम नहीं बल्कि इसके पीछे यही विज्ञान है कि पवित्रता, तन और वातावरण में ताजगी और ऊर्जा लाने के साथ ही मन और विचारों को भी भटकाव से बचाती है।

यही कारण है कि शास्त्रों में देव उपासना या कर्म के दौरान पवित्रता के लिए अनेक धार्मिक उपाय बताए गए हैं। किंतु अनेक लोगों को पवित्रता के विधि-विधान की जानकारी नहीं होती। धर्म और ईश्वर में आस्था रखने वाले अनेक लोग व्यस्त जीवन से समय निकालकर घर से बाहर या कार्यालय में किसी स्थान पर मंत्र या देव नाम लेना चाहते हैं, किंतु जगह या वातावरण की शुद्धता को लेकर मन में संशय की स्थिति में रहते हैं।

ऐसे ही लोगों की दुविधा को दूर करता है, शास्त्रों में बताया गया एक मंत्र जिसका स्मरण मात्र ही व्यक्ति को हर स्थिति में पवित्र करने वाला माना गया है। इस मंत्र में पुण्डरीकाक्ष के रूप में ब्रह्मशक्ति का ही ध्यान किया गया है। यह मंत्र बोल अपने ऊपर जल छिड़कें। मंत्र है -

ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: बाह्याभंतर: शुचि:।।

इस मंत्र का सरल अर्थ है - कोई पवित्र हो, अपवित्र हो या किसी भी स्थिति को प्राप्त क्यों न हो, जो भगवान पुण्डरीकाक्ष का स्मरण करता है, वह बाहर-भीतर से पवित्र हो जाता है। भगवान पुण्डरीकाक्ष पवित्र करें।

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