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सोमवार, 12 जनवरी 2015

अकबर बीरबल के रोचक किस्से
(भाग-२)

बीरबल की विनोद-प्रियता और बुध्दिचातुर्य ने न केवल अकबर, बल्कि मुग़ल साम्राज्य की अधिकांश जनता का मन मोह लिया था। लोकप्रिय तो बीरबल इतने थे। कि अकबर के बाद उन्हीं की गणना होती थी। वे उच्च कोटि के प्रशासक, और तलवार के धनी थे। पर शायद जिस गुण के कारण वे अकबर को परम प्रिय थे, वह गुण था उनका उच्च कोटि का विनोदी होना। बहुत कम लोगों को पता होगा कि बीरबल एक कुशल कवि भी थे। वे ‘ब्रह्म’ उपनाम से लिखते थे। उनकी कविताओं का संग्रह आज भी भरतपुर-संग्रहालय में सुरक्षित है। वैसे तो बीरबल के नाम से प्रसिध्द थे, परन्तु उनका असली नाम महेशदास था। ऐसा विश्वास किया जाता है कि यमुना के तट पर बसे त्रिविक्रमपुर (अब तिकवाँपुर के नाम से प्रसिद्ध) एक निर्धन ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे। लेकिन अपनी प्रतिभा के बल पर उन्होंने अकबर के दरबार के नवरत्नों में स्थान प्राप्त किया था। उनकी इस अद्भुत सफलता के काऱण अनेक दरबारी उनसे ईर्ष्या करते थे। और उनके विरुध्द षङ्यंत्र रचते थे। बीरबल सेनानायक के रूप में अफगानिस्तान की लड़ाई में मारे गये। कहा जाता है कि उनकी मृत्यु ईर्ष्यालु विरोधियों का परिणाम थी। बीरबल की मृत्यु के समाचार से अकबर को कितना गहरा आघात पहुंचा था। इसका परिणाम है उनके मुँख से कविता के रूप में निकली ये पंक्तियाँ: दीन जान सब दीन, एक दुरायो दुसह दुःख, सो अब हम को दीन, कुछ नहीं ऱाख्यो बीरबल। अकबर के लिए बीरबल सच्चे सखा, सच्चे संगी थे। अकबर के नये धर्म दीन-ए-इलाही के मुख्य 17 अनुयायियों में यदि कोई हिन्दू था, तो वे अकेले बीरबल।

अंधों की संख्या

एक दिन अकबर ने बीरबल से पूछा, बीरबल ज़रा बताओ टू उस दुनिया मी किसकी संख्या अधिक है, जो देख सकते हैं या जो अंधे हैं ? बीरबल बोले, इस समय तुरंत तो आपके इस सवाल का जबाब देना मेरे लिए सम्भव नहीं है लेकिन मेरा विश्वास है की अंधों की संख्या अधिक होगी वजाय देख सकने वालों के
बादशाह ने कहा की तुम्हे अपनी बात सिद्ध करके दिखानी होगी, बीरबल ने बादशाह की चिनौती स्वीकार कर ली
अगले दिन बीरबल बीच बाज़ार मी एक बिना बुनी हुई चारपाई लेकल बैठ गए और उसे बुनना शुरू कर दिया, उसके अगल-बगल दो आदमी कागज़-कलम लेकर बैठे हुए थे
थोडी ही देर मे वहाँ भीड़ इक्कठी हो गई यह देखने के लिए कि हो क्या रहा है, वहाँ मौजूद हर व्यक्ति ने बीरबल से एक ही सवाल पूछा “बीरबल तुम क्या कर रहे हो ? “
बीरबल के अगल-बगल बैठे दोनों आदमी ऐसा सवाल कराने वालों का नाम पूछ पूछ कर लिखते जा रहे थे, जब बादशाह के कानो तक ये बात पहुँची कि बीच बाज़ार बीरबल चारपाई बुन रहे हैं तो वो भी वहाँ जा पहुंचे और वही सवाल किया “यह तुम क्या कर रहे हो?”
कोई जबाब दिए बिना बीरबल ने अपने बगल मे बैठे एक आदमी से बादशाह अकबर का भी नाम लिख लेने को कहा तभी बादशाह ने आदमी के हाथ मे थमा कागज़ का पुलिंदा ले लिया उस पर लिखा था “अंधे लोगों की सूची”
बादशाह ने बीरबल से पूछा इसमे मेरा नाम क्यों लिखा है? बीरबल ने कहा “जहाँपनाह, आपने देखा भी कि मैं चारपाई बुन रहा हूँ, फ़िर भी आपने सवाल पूछा कि मैं क्या कर रहा हूँ”
बादशाह ने देखा उन लोगों की सूचि मे एक भी नाम नहीं था जो देख सकते थे, लेकिन अंधे लोगों की सूची का पुलिंदा बेहद भारी था ! बीरबल ने कहा “हुजुर, अब तो आप मेरी बात से सहमत होने कि दुनिया मे अंधों की तादाद ज्यादा है”
बीरबल की इस चतुराई पर बादशाह मंद मंद मुस्करा दिए

अकबर-बीरबल और ऊँट की गर्दन

अकबर बीरबल की हाज़िर जवाबी के बडे कायल थे. एक दिन दरबार में खुश होकर उन्होंने बीरबल को कुछ पुरस्कार देने की घोषणा की. लेकिन बहुत दिन गुजरने के बाद भी बीरबल को धनराशि (पुरस्कार) प्राप्त नहीं हुई. बीरबल बडी ही उलझन में थे कि महारज को याद दिलायें तो कैसे?
एक दिन महारजा अकबर यमुना नदी के किनारे शाम की सैर पर निकले. बीरबल उनके साथ था. अकबर ने वहाँ एक ऊँट को घुमते देखा. अकबर ने बीरबल से पूछा, “बीरबल बताओ, ऊँट की गर्दन मुडी क्यों होती है”?
बीरबल ने सोचा महाराज को उनका वादा याद दिलाने का यह सही समय है. उन्होंने जवाब दिया –महाराज यह ऊँट किसी से वादा करके भूल गया है, जिसके कारण ऊँट की गर्दन मुड गयी है. महाराज, कहते हैं कि जो भी अपना वादा भूल जाता है तो भगवान उनकी गर्दन ऊँट की तरह मोड देता है. यह एक तरह की सजा है.
तभी अकबर को ध्यान आता है कि वो भी तो बीरबल से किया अपना एक वादा भूल गये हैं. उन्होंने बीरबल से जल्दी से महल में चलने के लिये कहा. और महल में पहुँचते ही सबसे पहले बीरबल को पुरस्कार की धनराशी उसे सौंप दी, और बोले मेरी गर्दन तो ऊँट की तरह नहीं मुडेगी बीरबल. और यह कहकर अकबर अपनी हँसी नहीं रोक पाए.
और इस तरह बीरबल ने अपनी चतुराई से बिना माँगे अपना पुरस्कार राजा से प्राप्त किया.

अकबर-बीरबल की पहली मुलाकात

अकबर को शिकार का बहुत शौक था. वे किसी भी तरह शिकार के लिए समय निकल ही लेते थे. बाद में वे अपने समय के बहुत ही अच्छे घुड़सवार और शिकरी भी कहलाये. एक बार राजा अकबर शिकार के लिए निकले, घोडे पर सरपट दौड़ते हुए उन्हें पता ही नहीं चला और केवल कुछ सिपाहियों को छोड़ कर बाकी सेना पीछे रह गई. शाम घिर आई थी, सभी भूखे और प्यासे थे, और समझ गए थे की वो रास्ता भटक गए हैं. राजा को समझ नहीं आ रहा था की वह किस तरफ़ जाएं.
कुछ दूर जाने पर उन्हें एक तिराहा नज़र आया. राजा बहुत खुश हुए चलो अब तो किसी तरह वे अपनी राजधानी पहुँच ही जायेंगे. लेकिन जाएं तो जायें किस तरफ़. राजा उलझन में थे. वे सभी सोच में थे किंतु कोई युक्ति नहीं सूझ रही थी. तभी उन्होंने देखा कि एक लड़का उन्हें सड़क के किनारे खड़ा-खडा घूर रहा है. सैनिकों ने यह देखा तो उसे पकड़ कर राजा के सामने पेश किया. राजा ने कड़कती आवाज़ में पूछा, “ऐ लड़के, आगरा के लिए कौन सी सड़क जाती है”? लड़का मुस्कुराया और कहा, “जनाब, ये सड़क चल नहीं सकती तो ये आगरा कैसे जायेगी”. महाराज जाना तो आपको ही पड़ेगा और यह कहकर वह खिलखिलाकर हंस पड़ा.
सभी सैनिक मौन खड़े थे, वे राजा के गुस्से से वाकिफ थे. लड़का फ़िर बोला,” जनाब, लोग चलते हैं,रास्ते नहीं”. यह सुनकर इस बार राजा मुस्कुराया और कहा,” नहीं, तुम ठीक कह रहे हो. तुम्हारा नाम क्या है, अकबर ने पूछा. मेरा नाम महेश दास है महाराज, लड़के ने उत्तर दिया, और आप कौन हैं?अकबर ने अपनी अंगूठी निकाल कर महेश दास को देते हुए कहा, “तुम महाराजा अकबर – हिंदुस्तान के सम्राट से बात कर रहे हो”. मुझे निडर लोग पसंद हैं. तुम मेरे दरबार में आना और मुझे ये अंगूठी दिखाना. ये अंगूठी देख कर मैं तुम्हें पहचान लूंगा. अब तुम मुझे बताओ कि मैं किस रास्ते पर चलूँ ताकि मैं आगरा पहुँच जाऊं.
महेश दास ने सिर झुका कर आगरा का रास्ता बताया और जाते हुए हिंदुस्तान के सम्राट को देखता रहा|
और इस तरह अकबर भविष्य के बीरबल से मिले.

अब तो आन पड़ी है

अकबर बादशाह को मजाक करने की आदत थी। एक दिन उन्होंने नगर के सेठों से कहा-‘‘आज से तुम लोगों को पहरेदारी करनी पड़ेगी।’’
सुनकर सेठ घबरा गए और बीरबल के पास पहुँचकर अपनी फरियाद रखी।
बीरबल ने उन्हें हिम्मत बँधायी-‘‘तुम सब अपनी पगड़ियों को पैर में और पायजामों को सिर पर लपेटकर रात्रि के समय में नगर में चिल्ला-चिल्लाकर कहते फिरो, अब तो आन पड़ी है।’’
उधर बादशाह भी भेष बदलकर नगर में गश्त लगाने निकले। सेठों का यह निराला स्वांग देखकर बादशाह पहले तो हँसे, फिर बोले-‘‘यह सब क्या है ?’’
सेठों के मुखिया ने कहा-‘‘जहाँपनाह, हम सेठ जन्म से गुड़ और तेल बेचने का काम सीखकर आए हैं, भला पहरेदीर क्या कर पाएँगे, अगर इतना ही जानते होते तो लोग हमें बनिया कहकर क्यों पुकारते ?’’
बादशाह अकबर बीरबल की चाल समझ गए और अपना हुक्म वापस ले लिया।

ईश्वर अच्छा ही करता है

बीरबल एक ईमानदार तथा धर्म-प्रिय व्यक्ति था। वह प्रतिदिन ईश्वर की आराधना बिना नागा किया करता था। इससे उसे नैतिक व मानसिक बल प्राप्त होता था। वह अक्सर कहा करता था कि ‘ईश्वर जो कुछ भी करता है मनुष्य के भले के लिए ही करता है। कभी-कभी हमें ऐसा लगता है कि ईश्वर हम पर कृपादृष्टि नहीं रखता, लेकिन ऐसा होता नहीं। कभी-कभी तो उसके वरदान को भी लोग शाप समझने की भूल कर बैठते हैं। वह हमको थोड़ी पीड़ा इसलिए देता है ताकि बड़ी पीड़ा से बच सकें।’
एक दरबारी को बीरबल की ऐसी बातें पसंद न आती थीं। एक दिन वही दरबारी दरबार में बीरबल को संबोधित करता हुआ बोला, ‘‘देखो, ईश्वर ने मेरे साथ क्या किया-कल-शाम को जब मैं जानवरों के लिए चारा काट रहा था तो अचानक मेरी छोटी उंगली कट गई। क्या अब भी तुम यही कहोगे कि ईश्वर ने मेरे लिए यह अच्छा किया है ?’’
कुछ देर चुप रहने के बाद बोला बीरबल, ‘‘मेरा अब भी यही विश्वास है क्योंकि ईश्वर जो कुछ भी करता है मनुष्य के भले के लिए ही करता है।’’
सुनकर वह दरबारी नाराज हो गया कि मेरी तो उंगली कट गई और बीरबल को इसमें भी अच्छाई नजर आ रही है। मेरी पीड़ा तो जैसे कुछ भी नहीं। कुछ अन्य दरबारियों ने भी उसके सुर में सुर मिलाया।
तभी बीच में हस्तक्षेप करते हुए बादशाह अकबर बोले, ‘‘बीरबल हम भी अल्लाह पर भरोसा रखते हैं,लेकिन यहां तुम्हारी बात से सहमत नहीं। इस दरबारी के मामले में ऐसी कोई बात नहीं दिखाई देती जिसके लिए उसकी तारीफ की जाए।’’
बीरबल मुस्कराता हुआ बोला, ’’ठीक है जहांपनाह, समय ही बताएगा अब।’’
तीन महीने बीत चुके थे। वह दरबारी, जिसकी उंगली कट गई थी, घने जंगल में शिकार खेलने निकला हुआ था। एक हिरन का पीछा करते वह भटककर आदिवासियों के हाथों में जा पड़ा। वे आदिवासी अपने देवता को प्रसन्न करने के लिए मानव बलि में विश्वास रखते थे। अतः वे उस दरबारी को पकड़कर मंदिर में ले गए, बलि चढ़ाने के लिए। लेकिन जब पुजारी ने उसके शरीर का निरीक्षण किया तो हाथ की एक उंगली कम पाई।
‘‘नहीं, इस आदमी की बलि नहीं दी जा सकती।’’ मंदिर का पुजारी बोला, ‘‘यदि नौ उंगलियों वाले इस आदमी को बलि चढ़ा दिया गया तो हमारे देवता बजाय प्रसन्न होने के क्रोधित हो जाएंगे, अधूरी बलि उन्हें पसंद नहीं। हमें महामारियों, बाढ़ या सूखे का प्रकोप झेलना पड़ सकता है। इसलिए इसे छोड़ देना ही ठीक होगा।’’
और उस दरबारी को मुक्त कर दिया गया।
अगले दिन वह दरबारी दरबार में बीरबल के पास आकर रोने लगा।
तभी बादशाह भी दरबार में आ पहुंचे और उस दरबारी को बीरबल के सामने रोता देखकर हैरान रह गए।
‘‘तुम्हें क्या हुआ, रो क्यों रहे हो ?’’ अकबर ने सवाल किया।
जवाब में उस दरबारी ने अपनी आपबीती विस्तार से कह सुनाई। वह बोला, ‘‘अब मुझे विश्वास हो गया है कि ईश्वर जो कुछ भी करता है, मनुष्य के भले के लिए ही करता है। यदि मेरी उंगली न कटी होती तो निश्चित ही आदिवासी मेरी बलि चढ़ा देते। इसीलिए मैं रो रहा हूं, लेकिन ये आंसू खुशी के हैं। मैं खुश हूं क्योंकि मैं जिन्दा हूं। बीरबल के ईश्वर पर विश्वास को संदेह की दृष्टि से देखना मेरी भूल थी।’’
अकबर ने मंद-मंद मुस्कराते हुए दरबारियों की ओर देखा, जो सिर झुकाए चुपचाप खड़े थे। अकबर को गर्व महसूस हो रहा था कि बीरबल जैसा बुद्धिमान उसके दरबारियों में से एक है।

कल, आज और कल

एक दिन बादशाह अकबर ने ऐलान किया कि जो भी मेरे सवालों का सही जवाब देगा उसे भारी ईनाम दिया जाएगा। सवाल कुछ इस प्रकार से थे-
1. ऐसा क्या है जो आज भी है और कल भी रहेगा ?
2. ऐसा क्या है जो आज भी नहीं है और कल भी नहीं होगा ?
3. ऐसा क्या है जो आज तो है लेकिन कल नहीं होगा ?
इन तीनों सवालों के उदाहरण भी देने थे।
किसी को भी चतुराई भरे इन तीनों सवालों का जवाब नहीं सूझ रहा था। तभी बीरबल बोला, ‘‘हुजूर ! आपके सवालों का जवाब मैं दे सकता हूं, लेकिन इसके लिए आपको मेरे साथ शहर का दौरा करना होगा। तभी आपके सवाल सही ढंग से हल हो पाएंगे।’’
अकबर और बीरबल ने वेश बदला और सूफियों का बाना पहनकर निकल पड़े। कुछ ही देर बाद वे बाजार में खड़े थे। फिर दोनों एक दुकान में घुस गए। बीरबल ने दुकानदार से कहा, ‘‘हमें बच्चों की पढ़ाई के लिए मदरसा बनाना है, तुम हमें इसके लिए हजार रुपये दे दो।’’ जब दुकानदार ने अपने मुनीम से कहा कि इन्हें एक हजार रुपये दे दो तो बीरबल बोला, जब मैं तुमसे रुपये ले रहा हूंगा तो तुम्हारे सिर पर जूता मारूंगा। हर एक रुपये के पीछे एक जूता पड़ेगा। बोलो, तैयार हो ?’’
यह सुनते ही दुकानदार के नौकर का पारा चढ़ गया और वह बीरबल से दो-दो हाथ करने आगे बढ़ आया। लेकिन दुकानदार ने नौकर को शांत करते हुए कहा, ‘‘मैं तैयार हूँ, लेकिन मेरी एक शर्त है। मुझे विश्वास दिलाना होगा कि मेरा पैसा इसी नेक काम पर खर्च होगा।’’
ऐसा कहते हुए दुकानदार ने सिर झुका दिया और बीरबल से बोला कि जूता मारना शुरू करें। तब बीरबल व अकबर बिना कुछ कहे-सुने दुकान से बाहर निकल आए।
दोनों चुपचाप चले जा रहे थे कि तभी बीरबल ने मौन तोड़ा, ‘‘बंदापरवर ! दुकान में जो कुछ हुआ उसका मतलब है कि दुकानदार के पास आज पैसा है और उस पैसे को नेक कामों में लगाने की नीयत भी, जो उसे आने वाले कल (भविष्य) में नाम देगी। इसका एक मतलब यह भी है कि अपने नेक कामों से वह जन्नत में अपनी जगह पक्की कर लेगा। आप इसे यूं भी कह सकते हैं कि जो कुछ उसके पास आज है, कल भी उसके साथ होगा। यह आपके पहले सवाल का जवाब है।’’
फिर वे चलते हुए एक भिखारी के पास पहुंचे। उन्होंने देखा कि एक आदमी उसे कुछ खाने को दे रहा है और वह खाने का सामान उस भिखारी की जरूरत से कहीं ज्यादा है। तब बीरबल उस भिखारी से बोला, ‘‘हम भूखे हैं, कुछ हमें भी दे दो खाने को।’’
यह सुनकर भिखारी बरस पड़ा, ‘‘भागो यहां से। जाने कहां से आ जाते हैं मांगने।’’
तब बीरबल बादशाह से बोला, ‘‘यह रहा हुजूर आपके दूसरे सवाल का जवाब। यह भिखारी ईश्वर को खुश करना नहीं जानता। इसका मतलब यह है कि जो कुछ इसके पास आज है, वो कल नहीं होगा।’’
दोनों फिर आगे बढ़ गए। उन्होंने देखा कि एक तपस्वी पेड़ के नीचे तपस्या कर रहा है। बीरबल ने पास जाकर उसके सामने कुछ पैसे रखे। तब वह तपस्वी बोला, ‘‘इसे हटाओ यहां से। मेरे लिए यह बेईमानी से पाया गया पैसा है। ऐसा पैसा मुझे नहीं चाहिए।’’
अब बीरबल बोला, ‘‘हुजूर ! इसका मतलब यह हुआ कि अभी तो नहीं है लेकिन बाद में हो सकता है। आज यह तपस्वी सभी सुखों को नकार रहा है। लेकिन कल यही सब सुख इसके पास होंगे।’’
‘‘और हुजूर ! चौथी मिसाल आप खुद हैं। पिछले जन्म में आपने शुभ कर्म किए थे जो यह जीवन आप शानो-शौकत के साथ बिता रहे हैं, किसी चीज की कोई कमी नहीं। यदि आपने इसी तरह ईमानदारी और न्यायप्रियता से राज करना जारी रखा तो कोई कारण नहीं कि यह सब कुछ कल भी आपके पास न हो। लेकिन यह न भूलें कि यदि आप राह भटक गए तो कुछ साथ नहीं रहेगा।’’
अपने सवालों के बुद्धिमत्तापूर्ण चतुराई भरे जवाब सुनकर बादशाह अकबर बेहद खुश हुए।

कवि और धनवान आदमी

एक दिन एक कवि किसी धनी आदमी से मिलने गया और उसे कई सुंदर कविताएं इस उम्मीद के साथ सुनाईं कि शायद वह धनवान खुश होकर कुछ ईनाम जरूर देगा। लेकिन वह धनवान भी महाकंजूस था, बोला, ‘‘तुम्हारी कविताएं सुनकर दिल खुश हो गया। तुम कल फिर आना, मैं तुम्हें खुश कर दूंगा।’’
‘कल शायद अच्छा ईनाम मिलेगा।’ ऐसी कल्पना करता हुआ वह कवि घर पहुंचा और सो गया। अगले दिन वह फिर उस धनवान की हवेली में जा पहुंचा। धनवान बोला, ‘‘सुनो कवि महाशय, जैसे तुमने मुझे अपनी कविताएं सुनाकर खुश किया था, उसी तरह मैं भी तुमको बुलाकर खुश हूं। तुमने मुझे कल कुछ भी नहीं दिया, इसलिए मैं भी कुछ नहीं दे रहा, हिसाब बराबर हो गया।’’
कवि बेहद निराश हो गया। उसने अपनी आप बीती एक मित्र को कह सुनाई और उस मित्र ने बीरबल को बता दिया। सुनकर बीरबल बोला, ‘‘अब जैसा मैं कहता हूं, वैसा करो। तुम उस धनवान से मित्रता करके उसे खाने पर अपने घर बुलाओ। हां, अपने कवि मित्र को भी बुलाना मत भूलना। मैं तो खैर वहां मैंजूद रहूंगा ही।’’
कुछ दिनों बाद बीरबल की योजनानुसार कवि के मित्र के घर दोपहर को भोज का कार्यक्रम तय हो गया। नियत समय पर वह धनवान भी आ पहुंचा। उस समय बीरबल, कवि और कुछ अन्य मित्र बातचीत में मशगूल थे। समय गुजरता जा रहा था लेकिन खाने-पीने का कहीं कोई नामोनिशान न था। वे लोग पहले की तरह बातचीत में व्यस्त थे। धनवान की बेचैनी बढ़ती जा रही थी, जब उससे रहा न गया तो बोल ही पड़ा, ‘‘भोजन का समय तो कब का हो चुका ? क्या हम यहां खाने पर नहीं आए हैं ?’’
‘‘खाना, कैसा खाना ?’’ बीरबल ने पूछा।
धनवान को अब गुस्सा आ गया, ‘‘क्या मतलब है तुम्हारा ? क्या तुमने मुझे यहां खाने पर नहीं बुलाया है ?’’
‘‘खाने का कोई निमंत्रण नहीं था। यह तो आपको खुश करने के लिए खाने पर आने को कहा गया था।’’ जवाब बीरबल ने दिया। धनवान का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया, क्रोधित स्वर में बोला, ‘‘यह सब क्या है? इस तरह किसी इज्जतदार आदमी को बेइज्जत करना ठीक है क्या ? तुमने मुझसे धोखा किया है।’’
अब बीरबल हंसता हुआ बोला, ‘‘यदि मैं कहूं कि इसमें कुछ भी गलत नहीं तो…। तुमने इस कवि से यही कहकर धोखा किया था ना कि कल आना, सो मैंने भी कुछ ऐसा ही किया। तुम जैसे लोगों के साथ ऐसा ही व्यवहार होना चाहिए।’’
धनवान को अब अपनी गलती का आभास हुआ और उसने कवि को अच्छा ईनाम देकर वहां से विदा ली।
वहां मौजूद सभी बीरबल को प्रशंसाभरी नजरों से देखने लगे।

कुँए का पानी

एक बार एक आदमी ने अपना कुँआ एक किसान को बेच दिया| अगले दिन जब किसान ने कुँए से पानी खिंचना शुरू किया तो उस व्यक्ति ने किसान से पानी लेने के लिये मना किया. वह बोला, “मैने तुम्हें केवल कुँआ बेचा है ना कि कुँए का पानी”|
किसान बहुत दुखी हुआ और उसने अकबर के दरबार में गुहार लगाई. उसने दरबार में सबकुछ बताया और अकबर से इंसाफ माँगा.
अकबर ने यह समस्या बीरबल को हल करने के लिये दी| बीरबल ने उस व्यक्ति को बुलाया जिसने कुँआ किसान को बेचा था. बीरबल ने पूछा, “तुम किसान को कुँए से पानी क्यों नहीं लेने देते?आखिर तुमने कुँआ किसान को बेचा है|” उस व्यक्ति ने जवाब दिया, “बीरबल, मैंने किसान को कुँआ बेचा है ना कि कुँए का पानी| किसान का पानी पर कोई अधिकार नहीं है”|
बीरबल मुस्कुराया और बोला,”बहुत खूब, लेकिन देखो, क्योंकि तुमने कुँआ किसान को बेच दिया है,और तुम कहते हो कि पानी तुम्हारा है, तो तुम्हे अपना पानी किसान के कुँए में रखने का कोई अधिकार नहीं है| अब या तो अपना पानी किसान के कुँए से निकाल लो या फिर किसान को किराय दो|”
वह आदमी समझ गया, कि बीरबल के सामने उसकी दाल नहीं गलने वाली और वह माफी माँग कर खिसक लिया|

खाने के बाद लेटना

किसी समय बीरबल ने अकबर को यह कहावत सुनाई थी कि खाकर लेट जा और मारकर भाग जा-यह सयानें लोगों की पहचान है। जो लोग ऐसा करते हैं, जिन्दगी में उन्हें किसी भी प्रकार का दुख नहीं उठाना पड़ता।
एक दिन अकबर के अचानक ही बीरबल की यह कहावत याद आ गई।
दोपहर का समय था। उन्होंने सोचा, बीरबल अवश्य ही खाना खाने के बाद लेटता होगा। आज हम उसकी इस बात को गलत सिद्ध कर देंगे। उन्होंने एक नौकर को अपने पास बुलाकर पूरी बात समझाई और बीरबल के पास भेज दिया।
नौकर ने अकबर का आदेश बीरबल को सुना दिया।
बीरबल बुद्धिमान तो थे ही, उन्होंने समझ लिया कि बादशाह ने उसे क्यों तुरन्त आने के लिए कहा है। इसलिए बीरबल ने भोजन करके नौकर से कहा-‘‘ठहरो, मैं कपड़े बदलकर तुम्हारे साथ ही चल रहा हूं।
उस दिन बीरबल ने पहनने के लिए चुस्त पाजामा चुना। पाजामे को पहनने के लिए वह कुछ देर के लिए बिस्तर पर लेट गए। पाजामा पहनने के बहाने वे काफी देर बिस्तर पर लेटे रहे। फिर नौकर के साथ चल दिए।
जब बीरबल दरबार में पहुंचे तो अकबर ने कहा-‘‘कहो बीरबल, खाना खाने के बाद आज भी लेटे या नहीं ?’’ ‘‘बिल्कुल लेटा था जहांपनाह।’’ बीरबल की बात सुनकर अकबर ने क्रोधित स्वर में कहा-‘‘इसका मतलब, तुमने हमारे हुक्म की अवहेलना की है। हम तुम्हें हुक्म उदूली करने की सजा देंगे। जब हमने खाना खाकर तुरन्त बुलाया था, फिर तुम लेटे क्यों ।
‘‘बादशाह सलामत ! मैंने आपके हुक्म की अवहेलना कहां की है। मैं तो खाना खाने के बाद कपड़े पहनकर सीधा आपके पास ही आ रहा हूं। आप तो पैगाम ले जाने वाले से पूछ सकते हैं। अब ये अलग बात है कि ये चुस्त पाजामा पहनने के लिए ही मुझे लेटना पड़ा था।’’ बीरबल ने सहज भाव से उत्तर दिया।
अकबर बादशाह बीरबल की चतुरता को समझ गए और मुस्करा पड़े।

गधा कौन?

एक बार अकबर अपने दो बेटों के साथ नदी के किनारे गये| साथ में बीरबल भी थे| दोनों बटों ने अपने कपडे उतारे और नदी मे नहाने उतर गये| बीरबल को उन्होंने अपने कपडों की रखवाली करने के लिये कहा|
बीरबल नदी किनारे बैठ कर उन दोनों के आने का इंतज़ार करने लगे| कपडे उन्होंने अपने कन्धों पर रखे हुए थे| बीरबल को इस अवस्था में खडे देख अकबर के मन में शरारत सूझी| उन्होंने बीरबल को कहा, “बीरबल तुम्हे देख कर ऐसा लग रह है जैसे धोबी का गधा कपडे लाद कर खडा हो”|
बीरबल ने झट से जवाब दिया, ” महराज धोबी के गधे के पास केवल एक गधे का ही बोझ होता है किंतु मेरे पास तो तीन-तीन गधों का बोझ है”|
महाराजा अकबर निरूत्तर हो गए|

छोटा बांस, बड़ा बांस

एक दिन अकबर व बीरबल बाग में सैर कर रहे थे। बीरबल लतीफा सुना रहा था और अकबर उसका मजा ले रहे थे। तभी अकबर को नीचे घास पर पड़ा बांस का एक टुकड़ा दिखाई दिया। उन्हें बीरबल की परीक्षा लेने की सूझी।
बीरबल को बांस का टुकड़ा दिखाते हुए वह बोले, ‘‘क्या तुम इस बांस के टुकड़े को बिना काटे छोटा कर सकते हो ?’’ बीरबल लतीफा सुनाता-सुनाता रुक गया और अकबर की आंखों में झांका।
अकबर कुटिलता से मुस्कराए, बीरबल समझ गया कि बादशाह सलामत उससे मजाक करने के मूड में हैं।
अब जैसा बेसिर-पैर का सवाल था तो जवाब भी कुछ वैसा ही होना चाहिए था।
बीरबल ने इधर-उधर देखा, एक माली हाथ में लंबा बांस लेकर जा रहा था।
उसके पास जाकर बीरबल ने वह बांस अपने दाएं हाथ में ले लिया और बादशाह का दिया छोटा बांस का टुकड़ा बाएं हाथ में।
बीरबल बोला, ‘‘हुजूर, अब देखें इस टुकड़े को, हो गया न बिना काटे ही छोटा।’’
बड़े बांस के सामने वह टुकड़ा छोटा तो दिखना ही था।
निरुत्तर बादशाह अकबर मुस्करा उठे बीरबल की चतुराई देखकर।

जब बीरबल बच्चा बना

एक दिन बीरबल दरबार में देर से पहुंचा। जब बादशाह ने देरी का कारण पूछा तो वह बोला, ‘‘मैं क्या करता हुजूर! मेरे बच्चे आज जोर-जोर से रोकर कहने लगे कि दरबार में न जाऊं। किसी तरह उन्हें बहुत मुश्किल से समझा पाया कि मेरा दरबार में हाजिर होना कितना जरूरी है। इसी में मुझे काफी समय लग गया और इसलिए मुझे आने में देर हो गई।’’
बादशाह को लगा कि बीरबल बहानेबाजी कर रहा है।
बीरबल के इस उत्तर से बादशाह को तसल्ली नहीं हुई। वे बोले, ‘‘मैं तुमसे सहमत नहीं हूं। किसी भी बच्चे को समझाना इतना मुश्किल नहीं जितना तुमने बताया। इसमें इतनी देर तो लग ही नहीं सकती।’’
बीरबल हंसता हुआ बोला, ‘‘हुजूर ! बच्चे को गुस्सा करना या डपटना तो बहुत सरल है। लेकिन किसी बात को विस्तार से समझा पाना बेहद कठिन।’’
अकबर बोले, ‘‘मूर्खों जैसी बात मत करो। मेरे पास कोई भी बच्चा लेकर आओ। मैं तुम्हें दिखाता हूं कि कितना आसान है यह काम।’’ ‘‘ठीक है, जहांपनाह !’’ बीरबल बोला, ‘‘मैं खुद ही बच्चा बन जाता हूँ और वैसा ही व्यवहार करता हूं। तब आप एक पिता की भांति मुझे संतुष्ट करके दिखाएं।’’
फिर बीरबल ने छोटे बच्चे की तरह बर्ताव करना शुरू कर दिया। उसने तरह-तरह के मुंह बनाकर अकबर को चिढ़ाया और किसी छोटे बच्चे की तरह दरबार में यहां-वहां उछलने-कूदने लगा। उसने अपनी पगड़ी जमीन पर फेंक दी। फिर वह जाकर अकबर की गोद में बैठ गया और लगा उनकी मूछों से छेड़छाड़ करने।
बादशाह कहते ही रह गए, ‘‘नहीं…नहीं मेरे बच्चे ! ऐसा मत करो। तुम तो अच्छे बच्चे हो न।’’सुनकर बीरबल ने जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया। तब अकबर ने कुछ मिठाइयां लाने का आदेश दिया, लेकिन बीरबल जोर-जोर से चिल्लाता ही रहा।
अब बादशाह परेशान हो गए, लेकिन उन्होंने धैर्य बनाए रखा। वह बोले, ‘‘बेटा ! खिलौनों से खेलोगे ?देखो कितने सुंदर खिलौने हैं।’’ बीरबल रोता हुआ बोला, ‘‘नहीं, मैं तो गन्ना खाऊंगा।’’
अकबर मुस्कराए और गन्ना लाने का आदेश दिया।
थोड़ी ही देर में एक सैनिक कुछ गन्ने लेकर आ गया। लेकिन बीरबल का रोना नहीं थमा। वह बोला, ‘‘मुझे बड़ा गन्ना नहीं चाहिए, छोटे-छोटे टुकड़े में कटा गन्ना दो।’’
अकबर ने एक सैनिक को बुलाकर कहा कि वह एक गन्ने के छोटे-छोटे टुकड़े कर दे। यह देखकर बीरबल और जोर से रोता हुआ बोला, ‘‘नहीं, सैनिक गन्ना नहीं काटेगा। आप खुद काटें इसे।’’
अब बादशाह का मिजाज बिगड़ गया। लेकिन उनके पास गन्ना काटने के अलावा और कोई चारा न था। और करते भी क्या ? खुद अपने ही बिछाए जाल में फंस गए थे वह।
गन्ने के टुकड़े करने के बाद उन्हें बीरबल के सामने रखते हुए बोले अकबर, ‘‘लो इसे खा लो बेटा।’’
अब बीरबल ने बच्चे की भांति मचलते हुए कहा, ‘‘नहीं मैं तो पूरा गन्ना ही खाऊंगा।’’
बादशाह ने एक साबुत गन्ना उठाया और बीरबल को देते हुए बोले, ‘‘लो पूरा गन्ना और रोना बंद करो।’’
लेकिन बीरबल रोता हुआ ही बोला, ‘‘नहीं, मुझे तो इन छोटे टुकड़ों से ही साबुत गन्ना बनाकर दो।’’
‘‘कैसी अजब बात करते हो तुम ! यह भला कैसे संभव है ?’’ बादशाह के स्वर में क्रोध भरा था।
लेकिन बीरबल रोता ही रहा। बादशाह का धैर्य चुक गया। बोले, ‘‘यदि तुमने रोना बन्द नहीं किया तो मार पड़ेगी तब।’’
अब बच्चे का अभिनय करता बीरबल उठ खड़ा हुआ और हंसता हुआ बोला, ‘‘नहीं…नहीं ! मुझे मत मारो हुजूर ! अब आपको पता चला कि बच्चे की बेतुकी जिदों को शांत करना कितना मुश्किल काम है ?’’
बीरबल की बात से सहमत थे अकबर, बोले, ‘‘हां ठीक कहते हो। रोते-चिल्लाते जिद पर अड़े बच्चे को समझाना बच्चों का खेल नहीं।’’

जल्दी बुलाकर लाओ

बादशाह अकबर एक सुबह उठते ही अपनी दाढ़ी खुजलाते हुए बोले, ‘‘अरे, कोई है ?’’ तुरन्त एक सेवक हाजिर हुआ। उसे देखते ही बादशाह बोले-‘‘जाओ, जल्दी बुलाकर लाओ, फौरन हाजिर करो।’’सेवक की समझ में कुछ नहीं आया कि किसे बुलाकर लाए, किसे हाजिर करें ? बादशाह से पटलकर सवाल करने की तो उसकी हिम्मत ही नहीं थी।
उस सेवक ने यह बात दूसरे सेवक को बताई। दूसरे ने तीसरे को और तीसरे ने चौथे को। इस तरह सभी सेवक इस बात को जान गए और सभी उलझन में पड़ गए कि किसे बुलाकर लाए, किसे हाजिर करें।
बीरबल सुबह घूमने निकले थे। उन्होंने बादशाह के निजी सेवकों को भाग-दौड़ करते देखा तो समझ गए कि जरूर बादशाह ने कोई अनोखा काम बता दिया होगा, जो इनकी समझ से बाहर है। उन्होंने एक सेवक को बुलाकर पूछा, ‘‘क्या बात है ? यह भाग-दौड़ किसलिए हो रही है ?’’ सेवक ने बीरबल को सारी बात बताई, ‘‘महाराज हमारी रक्षा करें। हम समझ नहीं पा रहे हैं कि किसे बुलाना है। अगर जल्दी बुलाकर नहीं ले गए, तो हम पर आफत आ जाएगी।’’ बीरबल ने पूछा, ‘‘यह बताओ कि हुक्म देते समय बादशाह क्या कर रहे थे ?’’ बादशाह के निजी सेवक, जिसे हुक्म मिला था, उसे बीरबल के सामने हाजिर किया तो उसने बताय-‘‘जिस समय मुझे तलब किया उस समय तो बिस्तर पर बैठे अपनी दाढ़ी खुजला रहे थे।’’ बीरबल तुरन्त सारी बात समझ गए और उनके होंठों पर मुस्कान उभर आई। फिर उन्होंने उस सेवक से कहा-‘‘तुम हाजाम को ले जाओ।’’
सेवक हज्जाम को बुला लाया और उसे बादशाह के सामने हाजिर कर दिया। बादशाह सोचने लगे, ‘‘मैने इससे यह तो बताया ही नहीं था कि किसे बुलाकर लाना है। फिर यह हज्जाम को लेकर कैसे हाजिर हो गया ?’’ बादशाह ने सेवक से पूछा, ‘‘सच बताओ। हज्जाम को तुम अपने मन से ले आए हो या किसी ने उसे ले आने का सुझाव दिया था ?’’
सेवक घबरा गया, लेकिन बताए बिना भी तो छुटकारा नहीं था। बोला, ‘‘बीरबल ने सुझाव दिया था,जहांपनाह !’’ बादशाह बीरबल की बुद्धि पर खुश हो गया।

जितनी लम्बी चादर उतने पैर पसारो

बादशाह अकबर के दरबारियों को अक्सर यह शिकायत रहती थी कि बादशाह हमेशा बीरबल को ही बुद्धिमान बताते हैं, औरों को नहीं।
एक दिन बादशाह ने अपने सभी दरबारियों को दरबार में बुलाया और दो हाथ लम्बी दो हाथ चौड़ी चादर देते हुए कहा—‘‘इस चादर से तुम लोग मुझे सर से लेकर पैर तक ढंक दो तो मैं तुम्हें बुद्धिमान मान लूंगा।’’
सभी दरबारियों ने कोशिश की किंतु उस चादर से बादशाह को पूरा न ढंक सके, सिर छिपाते तो पैर निकल आते, पैर छिपाते तो सिर चादर से बाहर आ जाता। आड़ा-तिरछा लम्बा-चौड़ा हर तरह से सभी ने कोशिश की किंतु सफल न हो सके।
अब बादशाह ने बीरबल को बुलाया और वही चादर देते हुए उन्हें ढंकने को कहा। जब बादशाह लेटे तो बीरबल ने बादशाह के फैले हुए पैरों को सिकोड़ लेने को कहा। बादशाह ने पैर सिकोड़े और बीरबल ने सिर से पांव तक चादर से ढंक दिया। अन्य दरबारी आश्चर्य से बीरबल की ओर देख रहे थे। तब बीरबल ने कहा—‘‘जितनी लम्बी चादर उतने ही पैर पसारो।

जीत किसकी

बादशाह अकबर जंग में जाने की तैयारी कर रहे थे। फौज पूरी तरह तैयार थी। बादशाह भी अपने घोड़े पर सवार होकर आ गए। साथ में बीरबल भी था। बादशाह ने फौज को जंग के मैदान में कूच करने का निर्देश दिया।
बादशाह आगे-आगे थे, पीछे-पीछे उनकी विशाल फौज चली आ रही थी। रास्ते में बादशाह को जिज्ञासा हुई और उन्होंने बीरबल से पूछा—‘‘क्या तुम बता सकते हो कि जंग में जीत किसकी होगी ?’’
‘‘हुजूर, इस सवाल का जवाब तो मैं जंग के बाद ही दूँगा।’’ बीरबल ने कहा।
कुछ देर बाद फौज जंग के मैदान में पहुंच गई। वहां पहुंचकर बीरबल ने कहा—‘‘हुजूर, अब मैं आपके सवाल का जवाब देता हूं और जवाब यह है कि जीत आपकी ही होगी।’’
‘‘यह तुम अभी कैसे कह सकते हो, जबकि दुश्मन की फौज भी बहुत विशाल है।’’ बादशाह ने शंका जाहिर की।
‘‘हुजूर, दुश्मन हाथी पर सवार हैं और हाथी तो सूंड से मिट्टी अपने ऊपर ही फेंकता है तथा अपनी ही मस्ती में रहता है, जबकि आप घोड़े पर सवार है और घोड़ों को तो गाजी मर्द कहा जाता है। घोड़ा आपको कभी धोखा नहीं देगा।’’ बीरबल ने कहा।
उस जंग में जीत बादशाह अकबर की ही हुई।

जोरू का गुलाम

बादशाह अकबर और बीरबल बातें कर रहे थे। बात मियां-बीवी के रिश्ते पर चल निकली तो बीरबल ने कहा—‘‘अधिकतर मर्द जोरू के गुलाम होते हैं और अपनी बीवी से डरते हैं।’’
‘‘मैं नहीं मानता।’’ बादशाह ने कहा।
‘‘हुजूर, मैं सिद्ध कर सकता हूं।’’ बीरबल ने कहा।
‘‘सिद्ध करो ?’’
‘‘ठीक है, आप आज ही से आदेश जारी करें कि किसी के भी अपने बीवी से डरने की बात साबित हो जाती है तो उसे एक मुर्गा दरबार में बीरबल के पास में जमा करना होगा।’’
बादशाह ने आदेश जारी कर दिया।
कुछ ही दिनों में बीरबल के पास ढेरों मुर्गे जमा हो गए, तब उसने बादशाह से कहा—‘‘हुजूर, अब तो इतने मुर्गे जमा हो गए हैं कि आप मुर्गीखाना खोल सकते हैं। अतः अपना आदेश वापस ले लें।’’
बादशाह को न जाने क्या मजाक सूझा कि उन्होंने अपना आदेश वापस लेने से इंकार कर दिया। खीजकर बीरबल लौट गया। अगले दिन बीरबल दरबार में आया तो बादशाह अकबर से बोला—हुजूर,विश्वसनीय सूत्रों से पता चला है कि पड़ोसी राजा की पुत्री बेहद खूबसूरत है, आप कहें तो आपके विवाह का प्रस्ताव भेजूं ?’’
‘‘यह क्या कह रहे हो तुम, कुछ तो सोचो, जनानाखाने में पहले ही दो हैं, अगर उन्होंने सुन लिया तो मेरी खैर नहीं।’’ बादशाह ने कहा।
‘‘हुजूर, दो मुर्गे आप भी दे दें।’’ बीरबल ने कहा।
बीरबल की बात सुनकर बादशाह झेंप गए। उन्होंने तुरंत अपना आदेश वापस ले लिया।

टेढा सवाल

एक दिन अकबर और बीरबल वन-विहार के लिए गए। एक टेढे पेड की ओर इशारा करके अकबर ने बीरबल से पूछा “यह दरख्त टेढा क्यों हैं ? बीरबल ने जवाब दिया “यह इस लिए टेढा हैं क्योंकि ये जंगल के तमाम दरख्तो का साला हैं। बादशाह ने पूछा तुम ऐसा कैसे कह सकते हो? बीरबल ने कहा दुनिया में ये बात मशहुर हैं कि कुत्ते की दुम और साले हमेशा टेढे होते हैं। अकबर ने पूछा क्या मेरा साला भी टेढा है? बीरबल ने फौरन कहा बेशक जहांपनाह! अकबर ने कहा फिर मेरे टेढे साले को फांसी चढा दो!
एक दिन बीरबल ने फांसी लगाने की तीन तक्ते बनवाए ” एक सोने का, एक चांदी का और एक लोहे का।” उन्हें देखकर अकबर ने पूछा- तीन तख्ते किसलिए? बीरबल ने कहा “गरीबनवाज, सोने का आपके लिए, चांदी का मेरे लिए और लोहे का तख्ता सरकारी साले साहब के लिए। अकबर ने अचरज से पूछा मुझे और तुम्हे फांसी किसलिए? बीरबल ने कहा “क्यों नहीं जहांपनाह आखिर हम भी तो किसी के साले हैं। बादशाह अकबर हंस पडे, सरकारी साले साहब के जान में जान आई। वह बाइज्जत बरी हो गया।

तीन सवाल

महाराजा अकबर, बीरबल की हाज़िरजवाबी के बडे कायल थे. उनकी इस बात से दरबार के अन्य मंत्री मन ही मन बहुत जलते थे. उनमें से एक मंत्री, जो महामंत्री का पद पाने का लोभी था, ने मन ही मन एक योजना बनायी. उसे मालूम था कि जब तक बीरबल दरबार में मुख्य सलाहकार के रूप में है उसकी यह इच्छा कभी पूरी नहीं हो सकती.
एक दिन दरबार में अकबर ने बीरबल की हाज़िरजवाबी की बहुत प्रशंसा की. यह सब सुनकर उस मंत्री को बहुत गुस्सा आया. उसने महाराज से कहा कि यदि बीरबल मेरे तीन सवालों का उत्तर सही-सही दे देता है तो मैं उसकी बुद्धिमता को स्वीकार कर लुंगा और यदि नहीं तो इससे यह सिद्ध होता है की वह महाराज का चापलूस है. अकबर को मालूम था कि बीरबल उसके सवालों का जवाब जरूर दे देगा इसलिये उन्होंने उस मंत्री की बात स्वीकार कर ली.
उस मंत्री के तीन सवाल थे -
१. आकाश में कितने तारे हैं.
२. धरती का केन्द्र कहाँ है.
३. सारे संसार में कितने स्त्री और कितने पुरूष हैं.
अकबर ने फौरन बीरबल से इन सवालों के जवाब देने के लिये कहा. और शर्त रखी कि यदि वह इनका उत्तर नहीं जानता है तो मुख्य सलाहकार का पद छोडने के लिये तैयार रहे.
बीरबल ने कहा, “तो सुनिये महाराज”.
पहला सवाल – बीरबल ने एक भेड मँगवायी. और कहा जितने बाल इस भेड के शरीर पर हैं आकाश में उतने ही तारे हैं. मेरे दोस्त, गिनकर तस्सली कर लो, बीरबल ने मंत्री की तरफ मुस्कुराते हुए कहा.
दूसरा सवाल – बीरबल ने ज़मीन पर कुछ लकीरें खिंची और कुछ हिसाब लगाया. फिर एक लोहे की छड मँगवायी गयी और उसे एक जगह गाड दिया और बीरबल ने महाराज से कहा, “महाराज बिल्कुल इसी जगह धरती का केन्द्र है, चाहे तो आप स्व्यं जाँच लें”. महाराज बोले ठीक है अब तीसरे सवाल के बारे में कहो.
अब महाराज तीसरे सवाल का जवाब बडा मुश्किल है. क्योंकि इस दुनीया में कुछ लोग ऐसे हैं जो ना तो स्त्री की श्रेणी में आते हैं और ना ही पुरूषों की श्रेणी. उनमें से कुछ लोग तो हमारे दरबार में भी उपस्थित हैं जैसे कि ये मंत्री जी. महाराज यदि आप इनको मौत के घाट उतरवा दें तो मैं स्त्री-पुरूष की सही सही संख्या बता सकता हूँ. अब मंत्री जी सवालों का जवाब छोडकर थर-थर काँपने लगे और महाराज से बोले,”महाराज बस-बस मुझे मेरे सवालों का जवाब मिल गया. मैं बीरबल की बुद्धिमानी को मान गया हूँ”.
महाराज हमेशा की तरह बीरबल की तरफ पीठ करके हँसने लगे और इसी बीच वह मंत्री दरबार से खिसक लिया.

तोता ना खाता है ना पीता है

एक बहेलीये को तोते में बडी ही दिलचस्पी थी| वह उन्हें पकडता, सिखाता और तोते के शौकीन लोगों को ऊँचे दामों में बेच देता था| एक बार एक बहुत ही सुन्दर तोता उसके हाथ लगा| उसने उस तोते को अच्छी-अच्छी बातें सिखायीं उसे तरह-तरह से बोलना सिखाया और उसे लेकर अकबर के दरबार में पहुँच गया| दरबार में बहेलिये ने तोते से पूछा – बताओ ये किसका दरबार है? तोता बोला, “यह जहाँपनाह अकबर का दरबार है”| सुनकर अकबर बडे ही खुश हुए| वह बहेलिये से बोले, “हमें यह तोता चाहिये, बोलो इसकी क्या कीमत माँगते हो”| बहेलीया बोला जहाँपनाह – सब कुछ आपका है आप जो दें वही मुझे मंजूर है| अकबर को जवाब पसंद आया और उन्होंने बहेलिये को अच्छी कीमत देकर उससे तोते को खरीद लिया|
महाराजा अकबर ने तोते के रहने के लिये बहुत खास इंतजाम किये| उन्होंने उस तोते को बहुत ही खास सुरक्षा के बीच रखा| और रखवालों को हिदायत दी कि इस तोते को कुछ नहीं होना चाहिये| यदि किसी ने भी मुझे इसकी मौत की खबर दी तो उसे फाँसी पर लटका दिया जायेगा| अब उस तोते का बडा ही ख्याल रखा जाने लगा| मगर विडंबना देखीये कि वह तोता कुछ ही दिनों बाद मर गया| अब उसकी सूचना महाराज को कौन दे?
रखवाले बडे परेशान थे| तभी उन्में से एक बोला कि बीरबल हमारी मदद कर सकता है| और यह कहकर उसने बीरबल को सारा वृतांत सुनाया तथा उससे मदद माँगी|
बीरबल ने एक क्षण कुछ सोचा और फिर रखवाले से बोला – ठीक है तुम घर जाओ महाराज को सूचना मैं दूँगा| बीरबल अगले दिन दरबार में पहुँचे और अकबर से कहा, “हुज़ूर आपका तोता…”अकबर ने पूछा – “हाँ-हाँ क्या हुआ मेरे तोते को?” बीरबल ने फिर डरते-डरते कहा – “आपका तोता जहाँपनाह…” हाँ-हाँ बोलो बीरबल क्या हुआ तोते को? “महाराज आपका तोता…|” बीरबल बोला| “अरे खुदा के लिये कुछ तो कहो बीरबल मेरे तोते को क्या हुआ”, अकबर ने खीजते हुए कहा|
“जहाँपनाह, आपका तोता ना तो कुछ खाता है ना कुछ पीता है, ना कुछ बोलता है ना अपने पँख फडफडाता है, ना आँखे खोलता है और ना ही…” राज ने गुस्से में कहा – “अरे सीधा-सीधा क्यों नहीं बोलते की वो मर गया है”| बीरबल तपाक से बोला – “हुज़ूर मैंने मौत की खबर नहीं दी बलकि ऐसा आपने कहा है, मेरी जान बख्शी जाये”|
और महाराज निरूत्तर हो गये|

दाढ़ी पकड़ने की सजा

बादशाह अकवर एक दिन दरबार में पधारे और सिंहासन पर विराजमान होते ही उन्होंने दरबारियों से कहा, ‘‘आज एक शख्स ने मेरी दाढ़ी खींची है। कहिए, मैं उसे क्या सजा दूं।
यह सुनकर सभी दरबारी हैरान हुए और सोचने लगे कि किसने ऐसी गुस्ताखी की ? आखिर किसकी मौत आई है जो ऐसी जुर्रत कर बैठा। वे परस्पर कानाफूसी करने लगे।
थोड़ी देर के बाद एक दरबारी बोला, ‘‘जहांपनाह ! जिसने ऐसा दुस्साहस किया है, उसका सिर धड़ से उड़ा दिया जाए।
दूसरे दरबारी ने कहा, ‘‘मेरी राय है जहांपनाह कि ऐसी गुस्ताखी करने वाले को हाथी के पैरों तले कुचलवा दिया जाए।’’ किसी ने कहा उस पर कोड़े बरसाएं जाएं, किसी ने कहा कि उसे जिन्दा दीवार में चिनवा दिया जाए।
जितने दरबारी, उतनी तरह की बातें।
तरह-तरह की सजाएं सुझाई गईं।
उनकी बातें सुन कर बादशाह ऊब गए। अन्त में उन्होंने बीरबल से कहा, ‘‘बीरबल, तुम क्या कहते हो ? हमारी दाढ़ी खींचने वाले को हमें क्या सजा देनी चाहिए ?
बीरबल मंद-मंद मुस्कराए और बोले-‘‘जहांपनाह ! आप उसे प्यार से मिठाई खिलाइए। इस अपराध की यही सजा है।’’ बीरबल का उत्तर सुनकर सारे दरबारी चौंके और उस अंदाज में बीरबल का चेहरा देखने लगे, मानो वे पगला गए हों।
जबकि बीरबल के उत्तर से खुश होकर बादशाह ने कहा, ‘‘वाह-वाह ! बीरबल, तुम्हारी बात बिल्कुल सही है।
लेकिन यह तो बताओ कि मेरी दाढ़ी किसने खींची होगी ?’’ बीरबल ने कहा, ‘‘जहांपनाह ! छोटे शाहजादे के अलावा ऐसी हिम्मत कौन कर सकता है ? उसने तो प्यार से ही ऐसा किया होगा ! इसलिए उसे सजा में मिठाई खिलानी चाहिए।
बीरबल की बात सही थी। आज सुबह शाहजादा बादशाह की गोद में बैठा था. खेलते-खेलते उसने बादशाह की दाढ़ी खींची थी। चतुर बीरबल के जवाब से बादशाह खुश हुए।
अन्य सभी दरबारियों, जो इतना भी नहीं सोच पाए कि बाहर का कोई शख्स भला बादशाह की दाढ़ी कैसे खींच सकता है, के सिर शर्म से झुक गए।

पंडित जी

शाम ढलने को थी। सभी आगंतुक धीरे-धीरे अपने घरों को लौटने लगे थे। तभी बीरबल ने देखा कि एक मोटा-सा आदमी शरमाता हुआ चुपचाप एक कोने में खड़ा है। बीरबल उसके निकट आता हुआ बोला, ‘‘लगता है तुम कुछ कहना चाहते हो। बेहिचक कह डालो जो कहना है। मुझे बताओ, तुम्हारी क्या समस्या है ?’’
वह मोटा व्यक्ति सकुचाता हुआ बोला, ‘‘मेरी समस्या यह है कि मैं पढ़ा-लिखा नहीं हूं। मैंने अपनी शिक्षा पर ध्यान नहीं दिया जिसका मुझे खेद है। मैं भी समाज में सिर उठाकर सम्मान से जीना चाहता हूं। पर अब नहीं लगता है ऐसा कभी नहीं हो पाएगा।’’
‘‘नहीं कोई देर नहीं, ऐसा जरूर होगा यदि तुम हिम्मत न हारो और परिश्रम करो। तुममें भी योग्यता है’’ बीरबल ने कहा।
‘‘लेकिन ज्ञान पाने में तो सालों लग जाएंगे।’’ मोटे आदमी ने कहा, ‘‘मैं इतना इंतजार नहीं कर सकता। मैं तो यह जानना चाहता हूँ कि क्या कोई ऐसा तरीका है कि चुटकी बजाते ही प्रसिद्धि मिल जाए।’’
प्रसिद्धि पाने का ऐसा आसान रास्ता तो कोई नहीं है।’’ बीरबल बोला, ‘‘यदि तुम वास्तव में योग्य और प्रसिद्ध कहलवाना चाहते हो, तो मेहनत तो करनी ही होगी। वह भी कुछ समय के लिए।’’
यह सुनकर मोटा आदमी सोच में डूब गया।
‘‘नहीं मुझमें इतना धैर्य नहीं है।’’ मोटे आदमी ने कहा, ‘‘मैं तो तुरंत ही प्रसिद्धि पाकर ‘पंडित जी’कहलवाना चाहता हूं।’’
‘‘ठीक है।’’ बीरबल बोला, ‘‘इसके लिए तो एक ही उपाय है। कल तुम बाजार में जाकर खड़े हो जाना। मेरे भेजे आदमी वहां होंगे, जो तुम्हें पंडित जी कहकर पुकारेंगे। वे बार-बार जोर-जोर से ऐसा कहेंगे। इससे दूसरे लोगों का ध्यान इस ओर जाएगा, वे भी तुम्हें पंडित जी कहना शुरू कर देंगे। ऐसा होना स्वाभाविक भी है। लेकिन हमारा नाटक तभी सफल होगा जब तुम गुस्सा दिखाते हुए उन पर पत्थर फेंकने लगोगे या हाथ में लाठी लेकर उनको दौड़ाना होगा तुम्हें। लेकिन सतर्क रहना, गुस्से का सिर्फ दिखावा भर करना है तुम्हें। किसी को चोट नहीं पहुंचनी चाहिए।’’
उस समय तो वह मोटा आदमी कुछ समझ नहीं पाया और घर लौट गया।
अगली सुबह वह मोटा आदमी बीरबल के कहेनुसार व्यस्त बाजार में जाकर खड़ा हो गया। तभी बीरबल के भेजे आदमी वहां आ पहुंचे और तेज स्वर में कहने लगे- ‘‘पंडितजी…पंडितजी…पंडितजी…।’’
मोटे आदमी ने यह सुन अपनी लाठी उठाई और भाग पड़ा उन आदमियों के पीछे। जैसे सच ही में पिटाई कर देगा। बीरबल के भेजे आदमी वहां से भाग निकले, लेकिन पंडितजी..पंडितजी…का राग अलापना उन्होंने नहीं छोड़ा। कुछ ही देर बाद आवारा लड़कों का वहां घूमता समूह ‘पंडितजी…पंडितजी…’ चिल्लाता हुआ उस मोटे आदमी के पास आ धमका।
बड़ा मजेदार दृश्य उपस्थित हो गया था। मोटा आदमी लोगों के पीछे दौड़ रहा था और लोग‘पंडितजी…पंडितजी…’ कहते हुए नाच-गाकर चिल्ला रहे थे।
अब मोटा आदमी पंडितजी के नाम से प्रसिद्ध हो गया। जब भी लोग उसे देखते तो पंडितजी कहकर ही संबोधित करते। अपनी ओर से तो लोग यह कहकर उसका मजाक उड़ाते थे कि वह उन पर पत्थर फेंकेगा या लाठी लेकर उनके पीछे दौड़ेगा। लेकिन उन्हें क्या पता था कि मोटा तो चाहता ही यही था। वह प्रसिद्ध तो होने ही लगा था।
इसी तरह महीनों बीत गए।
मोटा आदमी भी थक चुका था। वह यह भी समझ गया था कि लोग उसे सम्मानवश पंडितजी नहीं कहते, बल्कि ऐसा कहकर तो वे उसका उपहास करते हैं। लोग जान गए थे कि पंडित कहने से उसे गुस्सा आ जाता है। वह सोचता था कि शायद लोग मुझे पागल समझते हैं। यह सोचकर वह इतना परेशान हो गया कि फिर से बीरबल के पास जा पहुंचा।
वह बोला, ‘‘मैं मात्र पंडितजी कहलाना नहीं चाहता। वैसे मुझे स्वयं को पंडित कहलवाना पसंद है और कुछ समय तक यह सुनना मुझे अच्छा भी लगा। लेकिन अब मैं थक चुका हूं। लोग मेरा सम्मान नहीं करते, वो तो मेरा मजाक उड़ाते हैं।’’
मोटे आदमी को वास्तविकता का आभास होने लगा था।
मोटे आदमी को यह कहता देख बीरबल हंसता हुआ यह बोला, ‘‘मैंने तो तुमसे पहले ही कह दिया था कि तुम बहुत समय तक ऐसा नहीं कर पाओगे। लोग तुम्हें वह सब कैसे कह सकते हैं, जो तुम हो ही नहीं। क्या तुम उन्हें मूर्ख समझते हो ? जाओ, अब कुछ समय किसी दूसरे शहर में जाकर बिताओ। जब लौटो तो उन लोगों को नजरअंदाज कर देना जो तुम्हें पंडितजी कहकर पुकारें। एक अच्छे, सभ्य व्यक्ति की तरह आचरण करना। शीघ्र ही लोग समझ जाएंगे कि ‘पंडितजी’ कहकर तुम्हारा उपहास करने में कुछ नहीं रक्खा और वे ऐसा कहना छोड़ देंगे।’’
मोटे आदमी ने बीरबल के निर्देश पर अमल किया।
जब वह कुछ माह बाद दूसरे शहर से लौटकर आया तो लोगों ने उसे पंडितजी कहकर परेशान करना चाहा, लेकिन उसने कोई ध्यान न दिया। अब वह मोटा आदमी खुश था कि लोग उसे उसके असली नाम से जानने लगे हैं। वह समझ गया था कि प्रसिद्धि पाने की सरल राह कोई नहीं है।

बादशाह का गुस्सा

बादशाह अकबर अपनी बेगम से किसी बात पर नाराज हो गए। नाराजगी इतनी बढ़ गई कि उन्हें बेगम को मायके जाने को कह दिया। बेगम ने सोचा कि शायद बादशाह ने गुस्से में ऐसा कहा है,इसलिए वह मायके नहीं गईं। जब बादशाह ने देखा कि बेगम अभी तक मायके नहीं गई हैं तो उन्होंने गुस्से में कहा—‘‘तुम अभी तक यहीं हो, गई नहीं, सुबह होते ही अपने मायके चली जाना वरना अच्छा न होगा। तुम चाहो तो अपनी मनपसंद चीज साथ ले जा सकती हो।’’
बेगम सिसक कर जनानखाने में चली गईं। वहां जाकर उसने बीरबल को बुलाया। बीरबल बेगम के सामने पेश हो गया। बेगम ने बादशाह की नाराजगी के बारे में बताया और उनके हुक्म को भी बता दिया ।
‘‘बेगम साहिबा अगर बादशाह ने हुक्म दिया है तो जाना ही पड़ेगा, और अपनी मनपसंद चीज ले जाने की बाबत जैसा मैं कहता हूं वैसा ही करें, बादशाह की नाराजगी भी दूर हो जाएगी।’’
बेगम ने बीरबल से कहे अनुसार बादशाह को रात में नींद की दवा दे दी और उन्हें नींद में ही पालकी में डालकर अपने साथ मायके ले आई और एक सुसज्जित शयनकक्ष में सुला दिया। जब बादशाह की नींद खुली तो स्वयं को अनजाने स्थान पर पाकर हैरान हो गए, पुकारा—‘‘कोई है ?’’
उनकी बेगम साहिबा उपस्थित हुईं। बेगम को वहां देखकर वे समझ गए कि वे अपनी ससुराल में हैं। उन्होंने गुस्से से पूछा—‘‘तुम हमें भी यहां ले आई, इतनी बड़ी गुस्ताखी कर डाली …।’’
‘‘मेरे सरताज, आपने ही तो कहा था कि अपनी मन पसंद चीज ले जाना…इसलिए आपको ले आई।’’
यह सुनकर बादशाह का गुस्सा जाता रहा, मुस्कराकर बोले—‘‘जरूर तुम्हें यह तरकीब बीरबल ने ही बताई होगी।’’
बेगम ने हामी भरते हुए सिर हिला दिया।

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