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रविवार, 17 जनवरी 2010
बंगाल का गौरव ज्योति बसु इतिहास के पन्ने बन गए
पिछले एक पखवाड़े से कोलकाता के एक अस्पताल में भर्ती बुजुर्ग मार्क्सवादी नेता और पश्चिम बंगाल
के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु का रविवार को निधन हो गया। वह 96 वर्ष के थे। सुबह करीब साढ़े ग्यारह बजे उनका निधन हुआ।
वाम मोर्चे की समन्वय समिति के अध्यक्ष विमान बोस ने दोपहर करीब 12.30 बजे संवाददाताओं से कहा कि आपको यह बुरी खबर देनी है कि ज्योति बसु अब हमारे बीच नहीं हैं। भावुक हुए बोस ने कहा कि ज्योति बसु अब इस दुनिया में नहीं हैं।
भारत में वामपंथ की बात अगर की जाए तो ज्योति बसु एक ऐसा नाम है जिसके बिना इतिहास अधूरा रह जाए। पश्चिम बंगाल में दक्षिणपंथी दलों का वर्चस्व तोड़ वहां वामपंथी शासन कायम करने वाले इस राजनेता ने 25 साल तक न केवल उस राज्य के मुख्यमंत्री का पद संभाला बल्कि वहां अनेक क्रांतिकारी परिवर्तन किए।
देश में सबसे लंबे समय तक किसी राज्य का मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल करने वाले ज्योति बसु ने रविवार को यहां एक अस्पताल में अंतिम सांस लीं। एक जनवरी को उन्हें निमोनिया की शिकायत पर अस्पताल में भर्ती कराया गया था लेकिन पिछले कुछ दिन से उनके अधिकांश अंगों ने काम करना बंद कर दिया था और उन्हें वेंटीलेटर पर रखा जा रहा था। रविवार सुबह 11.47 बजे उन्होंने अपनी आंखें मूंद लीं।
बसु के निधन के साथ ही देश में वामपंथी आंदोलन का एक अध्याय समाप्त हो गया। उनके निधन से पैदा हुए शून्य को भर पाना शायद ही संभव हो।
95 वर्षीय बसु ने लंदन के मिडिल टेंपल में वकालत त्याग कर राजनीति को अपनाया और वह लगभग पांच दशक तक देश के राजनीतिक परिदृश्य पर छाए रहने वाले एक ऐसे करिश्माई व्यक्तित्व थे जिन्हें दलगत भावना से ऊपर उठकर सभी दलों के नेताओं ने भरपूर सम्मान दिया।
वर्ष 1977 में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में वाममोर्चा सरकार के अगुवा के रूप में राज्य की सत्ता संभालने वाले बसु पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक समय तक इस पद पर रहने वाले मुख्यमंत्री थे।
गठबंधन की राजनीति के तहत जब उन्हें 1996 में संयुक्त मोर्चा सरकार का प्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव दिया गया तो उनकी पार्टी ने इस पर सहमति नहीं दी और पार्टी ने सत्ता में भागीदारी करने से ही इनकार कर दिया। इस पेशकश को स्वीकार नहीं करने को बाद में बसु ने ऐतिहासिक गलती करार दिया था। पार्टी ने उनके इस विचार को हालांकि उनका व्यक्तिगत विचार बताते हुए इसे खारिज कर दिया।
बसु मार्क्सवाद में पूरी तरह विश्वास करने के बावजूद व्यवहारिक थे और पार्टी की कट्टर विचारधारा के बीच उन्होंने अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में विदेशी निवेश और बाजारोन्मुख नीतियां अपना कर अपने अद्भुत विवेक का परिचय दिया था।
कुशल राजनीतिज्ञ, योग्य प्रशासक ्रसुधारवादी और अनेक मामलों में नजीर पेश करने वाले बसु को 1952 से पश्चिम बंगाल विधानसभा की सदस्यता लगातार हासिल करने का श्रेय जाता है। इसमें एक बार केवल 1972 में व्यवधान आया था।
बसु ने पंचायती राज और भूमि सुधार को प्रभावी ढंग से लागू कर निचले स्तर तक सत्ता का विकेंद्रीकरण किया। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी ने भी बसु के कामकाज की सराहना की थी और वर्ष 1989 में पंचायती राज पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया था। बसु की पहल पर लागू किए गए भूमि सुधारों का ही नतीजा था कि पश्चिम बंगाल देश का ऐसा पहला राज्य बना जहां फसल कटकर पहले बंटाईदार के घर जाती थी और इस तरह वहां बिचौलियों की भूमिका खत्म की गई।
बसु ने राज्य को एक मजबूत उद्योग नीति भी दी। उन्होंने केंद्र राज्य संबंधों को नए सिरे से परिभाषित करने के लिए आवाज उठाई जिसके चलते अस्सी के दशक के अंत तक सरकारिया आयोग का गठन किया गया। उन्होंने गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों को एकजुट कर केंद्र के समक्ष अपनी मांगें भी रखी थीं।
बसु ने राज्य में लोकतंत्र के दायरे में रहते हुए पार्टी को मजबूत करने के लिए भी अपने सहयोगियों और कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन किया।
कोलकाता में आठ जुलाई 1914 को जन्मे बसु ने सेंट जेवियर्स स्कूल से इंटर पास करने के बाद 1932 में प्रेसीडेंसी कॉलेज से अंग्रेजी में ऑनर्स किया। वर्ष 1935 में वह विधि की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड गए। पांच साल बाद वह भारत लौटे और राजनीति की राह चुनी।
उन्होंने 1941 में विवाह किया लेकिन कुछ ही महीनों में उनकी पत्नी का निधन हो गया। इसके बाद 1948 में उन्होंने दोबारा विवाह किया जिनसे उनके एक पुत्र है। उनकी पत्नी का कुछ वर्ष पूर्व निधन हो चुका है।
वर्ष 1957 में बसु विपक्ष के नेता बने और अगले दस साल तक उन्होंने बड़ी कुशलता के साथ इस दायित्व का निर्वाह किया। पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री विधानचंद्र राय ने भी विपक्ष के नेता के रूप में बसु की भूमिका की तारीफ की थी।
वर्ष 1967 में पहली बार बसु पश्चिम बंगाल के उप मुख्यमंत्री बने। राजनीति का सफर बढ़ता गया और इस माकपा नेता ने एक के बाद एक कई उपलब्धियां हासिल कीं। इस दौरान उन्होंने राज्य में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और वाममोर्चा दोनों को भी लगातार मजबूत किया।
एक नजर ज्योति बसु के जीवन पर
पश्चिम बंगाल में दक्षिणपंथी दलों का वर्चस्व तोड़ वहां वामपंथी शासन कायम करने वाले इस राजनेता ने 25 साल तक न केवल उस राज्य के मुख्यमंत्री का पद संभाला बल्कि वहां अनेक कांतिक्रारी परिवर्तन किए। देश में सबसे लंबे समय तक किसी राज्य का मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल करने वाले ज्योति बसु ने रविवार यहां एक अस्पताल में अंतिम सांस लीं। एक जनवरी को उन्हें निमोनिया की शिकायत पर अस्पताल में भर्ती कराया गया था लेकिन पिछले कुछ दिन से उनके अधिकांश अंगों ने काम करना बंद कर दिया था और उन्हें वेंटीलेटर पर रखा जा रहा था।
96 साल के बसु ने लंदन के मिडिल टेम्पल में वकालत त्याग कर राजनीति को अपनाया और वह लगभग पांच दशक तक देश के राजनीतिक परिदृश्य पर छाये रहने वाले एक ऐसे करिश्माई व्यक्तित्व थे जिन्हें दलगत भावना से ऊपर उठकर सभी दलों के नेताओं ने भरपूर सम्मान दिया। वर्ष 1977 में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में वाममोर्चा सरकार के अगुवा के रूप में राज्य की सत्ता संभालने वाले बसु पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक समय तक इस पद पर रहने वाले मुख्यमंत्री थे।
गठबंधन की राजनीति के तहत जब उन्हें 1996 में संयुक्त मोर्चा सरकार का प्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव दिया गया तो उनकी पार्टी ने इस पर सहमति नहीं दी और पार्टी ने सत्ता में भागीदारी करने से ही इंकार कर दिया। इस पेशकश को स्वीकार नहीं करने को बाद में बसु ने गलती करार दिया था। पार्टी ने उनके इस विचार को हालांकि उनका व्यक्तिगत विचार बताते हुए इसे खारिज कर दिया।
बसु मार्क्सवाद में पूरी तरह विश्वास करने के बावजूद व्यवहारिक थे और पार्टी की कट्टर विचारधारा के बीच उन्होंने अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में विदेशी निवेश और बाजारोन्मुख नीतियां अपना कर अपने अद्भुत विवेक का परिचय दिया था। कुशल राजनेता, प्रशासक, सुधारवादी और अनेक मामलों में उदाहरण पेश करने वाले बसु को 1952 से पश्चिम बंगाल विधानसभा की सदस्यता लगातार हासिल करने का श्रेय जाता है। इसमें एक बार केवल 1972 में व्यवधान आया था। बसु ने पंचायती राज और भूमि सुधार को प्रभावी ढंग से लागू किया था।
पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी ने भी बसु के कामकाज की सराहना की थी और वर्ष 1989 में पंचायती राज पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया था। बसु की पहल पर लागू किए गए भूमि सुधारों का ही नतीजा था कि पश्चिम बंगाल देश का ऐसा पहला राज्य बना जहां फसल कटकर पहले बंटाईदार के घर जाती थी और इस तरह वहां बिचौलियों की भूमिका खत्म की गई।
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1 टिप्पणी:
अच्छी जानकारी दी लेकिन बीबीसी ने उनकी आयु 95 साल बतायी है।..http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2010/01/100117_jyotibasu_death_ns.shtml
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