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मंगलवार, 5 जुलाई 2011

चवन्नी की मौत पर

25 PAISE/ चवन्नी 
मैं और मेरे जैसे देश के तमाम चवन्नी छाप आजकल भयानक राष्ट्रीय सदमें में हैं। सरकार ने अचानक चवन्नी की नस्ल को खत्म करने का जो जघन्य पराक्रम किया है उसे इतिहास कभी माफ नहीं करेगा। और इतिहास-वितिहास से हमें क्या लेना-देना। हम कोई हिस्ट्रीशीटर हैं क्या। हां, हम चवन्नीछाप लोग जरूर इस सरकार को कभी माफ नहीं करेंगे। समाज में ले-देकर टुटरूंटूं इक चवन्नीभर की हैसियत तो हुआ करती थी हमारी, सरकार ने उसकी भी वाट लगा दी। हमलोगों के पास अब क्या बचा रह गया। हम तो महाभारत के मणिविहीन अश्वत्थामा होकर रह गए हैं। चेहरे पर जो कभी चवन्नी की दिव्य चमक से हमारी शख्सियत दिव्य हुआ करती थी,वह चवन्नी ही हमसे छीन ली। बुरा हो इस सरकार का। महाबुरा हो। अरे जिस चवन्नी की सदस्यता के बूते पर कांग्रेस पार्टी ने देश को आजादी दिलाई थी उसी चवन्नी को कांग्रेस सरकार ने मिटा दिया। अरे आजादी का सनातन स्मारक थी हमारी- चवन्नी मगर सरकार ने उसे महज चवन्नी ही समझा। कहते हैं कि हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसीएशन के कमांडर इन चीफ पंडित रामप्रसाद बिस्मिल बड़ी शान से चंद्रशेखर आज़ाद और भगतसिंह-जैसे क्रांतिकारी सदस्यों को चवन्नी खर्चे के लिए दिया करते थे। और बड़े जतन से चवन्नी बचाकर भगतसिंह भैया सिनेमा देख आया करते थे आज वही चवन्नी हमसे छीन ली गई। क्या रुतबा हुआ करता था हमारी चवन्नी का। उसी चवन्नी का समूल नाश कर डाला इस जालिम सरकार ने। कभी मंदिरों में बैठे भगवान बाट जोहा करते थे इस चवन्नी की। कि भक्त आए और फटाक से चवन्नी चरणों में चढाए। रुपये-दस रुपए से भगवान का मन प्रसन्न नहीं होता था। जैसे ही उसमें चवन्नी जोड़कर सवा रुपया,सवा पांच रुपया और सवा ग्यारह का प्रसाद चढ़ाया कि मंदिर का मोगांबो खुश हुआ। सब चवन्नी का ही जलबो-जलाल था। एक ज़रा-सी चवन्नी में प्रभु की तबीयत झकास। लघुता से प्रभुता मिले। चवन्नी लघुता थी। भक्त और भगवान के बीच भक्ति का फेवीकोल जोड़ चवन्नी से ही लगता था। लेकिन नास्तिक सरकार ने वो चिपकू रसायन ही भक्तों से छीन लिया। ऐसा क्यों किया सरकार ने। लगता है राजीव गांधी ने कुघड़ी में ये जो डॉयलाग बोल दिया था ना कि रुपए में से सिर्फ चवन्नी ही जनता तक पहुंचती है सरकार ने उस डायलाग को दिल पे ले लिया। चवन्नी भर रह गई सरकार की इज्जत। सो मौका देखकर सरकार ने चवन्नी की गर्दन ही मरोड़ डाली। अब चवन्नी भी नहीं पहुंचेगी जनता तक। न रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी। एक अदना-सी चवन्नी की ये हिमाकत कि तमाम सरकारी सतर्कताओं के बावजूद वो जनता तक पहुंच जाए। अब चल के जाए। हमने उसका चलन ही बंद कर दिया। हां जिन भिखारियों को कभी भीख में एक चवन्नी पर ही गुजारा करना पड़ता था सरकार की इस कल्याणकारी योजना से उनका स्टेंडर्ड जरूर अचानक बढ़ गया। अब उनका मिनिमम वेज़ अठन्नी हो गया है। इसलिए देश के सभी इज्जतदार भिखारियों की दुआएं सकरार के साथ हैं। एक बात और कि सरकार बाबा रामदेव के बहकावे में कतई नहीं आई। बाबा भ्रष्टाचार मिटाने के लिए 500 और 1000 के नोट बंद करने की तुगलकी मांग पर अड़े हुए थे। और बड़ी चतुराई से चवन्नी को बचा लेना चाहते थे। सरकार ने भ्रष्टाचार की जड़ चवन्नी और बाबा दोनों पर ही चतुराई से प्रहार कर के एक तीर से दोनों को ही निबटा दिया। इधर चवन्नी बंद हुई और इधर बाबा चवन्नीछाप हो गए। अगर कहीं अन्ना हजारे प्रधानमंत्री के साथ चवन्नी को भी लोकपाल के दायरे में लाने की बात कर देते तो शायद पीएम के साथ-साथ बेचारी चवन्नी भी बच जाती।मगर हजारे साहब के साथ एक ही दिक्कत है कि वे महत्वपूर्ण मुद्दों को शरीक करने में हमेशा चूक जाते हैं। चवन्नी के महत्वपूर्ण मुद्दे को छोड़कर वो पीएम को लोकपाल के दायरे में लाने के फालतू मुद्दे को उछालकर अपना और सरकार दोनों का टाइम खोटी कर रहे हैं। अपुन को तो इसी में संतोष है कि सरकार ने सिर्फ चवन्नी का सफाया किया है। चवन्नीछाप लोगों पर अभी हाथ नहीं डाला है। वरना अपुन तो कहीं के नहीं रहते।

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