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गुरुवार, 28 जुलाई 2011

रक्षाबंधन पर विशेष कहानी : कच्चे धागे

भाई- बहन के प्यार की कहानी : कच्चे धागे 

BAHNA NE BHAI KE KALAI PE PYAR BANDHA HAI...
मुझे मेडिकल में एडमिशन मिल गया था ! मैं बहुत खुश थी ! सभी बहुत खुश थे ! एक छोटे से कस्बे से बडे शहर में आना बहुत अच्छा लग रहा था ! हालांकि शहर में मामा-मामी थे ! उनके बेटे यानि बिट्टू भईया थे ! भाभी थी! बच्चे थे ! परंतु पढाई की वजह से मैंने होस्टल में ही रहना ज्यादा अच्छा समझा ! इससे रिश्तेदारी में प्यार भी बना रहता है और किसी को कुछ कहने का मौका भी नहीं मिलता ! बीच बीच में मैं समय निकाल कर मामा-मामी और भाभी-बच्चों से मिल आती थी ! बिट्टू भईया का बहुत अच्छा गारमेंट का शो-रूम था ! अच्छा बिज़नेस था ! लेकिन उनसे कभी भेंट नहीं हो पाती थी ! पक्के बिज़नेसमैन बन गए थे ! पैसे के पीर ! जब भी मैं उनके घर जाती तो भईया अपने शो-रूम में होते ! रात को घर लेट ही आते थे ! उनका बस चलता तो शायद वो रात को भी वहीं सो जाते ! इतवार को और छुट्टी वाले दिन तो उनके शो-रूम में बहुत रश होता था ! सो उनका हाल-चाल भाभी से ही पूछ लेती !

हम तीन बहनें ही हैं ! भाई कोई है नहीं ! मैं सबसे छोटी हूं ! सभी मुझे बहुत प्यार करते हैं ! मामा-मामी के साथ बिट्टू भईया भी कभी कभार हमारे यहां हमें मिलने आते रह्ते थे ! परंतु जब से उन्होंने शो-रूम खोला है उनका आना जाना लगभग न के बराबर ही हो गया था ! दोनो बडी बहने दुबली-पतली थीं ! मेरा शरीर थोडा भरा हुआ था ! हालांकि मैं इतनी मोटी नही थी पर बिट्टू भईया मुझे “मोटो” कहकर चिढाते थे ! मैं भी उनको “सुकडू” कहकर अपना बदला चुका लेती थी ! वो जब भी हमारे यहां आते तो मुझे बहुत प्यार करते थे ! मेरे लिए हमेशा कोई न कोई उपहार लेकर आते !

छोटा कस्बा था ! सभी एक दूसरे से प्यार से रहते थे ! सभी एक दूसरे को जानते थे तथा दुख सुख में बराबर शरीक होते थे ! भाई की कमी क्या होती है उस समय मालूम न था ! मैं छोटी थी ! मेरे लिए राखी का मतलब आस-पडौस के लडकों को राखी बांध देना और बदले में टाफी-चाकलेट और मिठाई आदि ले लेना भर था ! राखी बांधने के जो पैसे मिलते थे वो मां रख लेती थी ! थोडी सी बडी हुई तो सोचती थी कि अपना भी भाई होना चाहिए था ! फिर भी इस बात को लेकर कभी ज्यादा मलाल नहीं रहा ! हर राखी पर मां या बडी दीदी बिट्टू भईया को राखी डाक से भेज देतीं थीं ! जब भी हमारे घर से कोई कभी उनके घर जाता या उनके घर से कोई हमारे घर आता तो हमे राखी बांधने (डाक से भेजने) के बदले सूट या कोई अन्य उपहार मिल जाता था !

घर से कभी इस प्रकार इतने दिनो के लिए दूर नहीं रही थी ! पहली बार होस्टल में आई थी ! होस्टल की जिन्दगी भी एक अलग तरह की जिन्दगी होती है ! अपने घर से दूर ! मां-बाप से दूर ! अपनी निजी दुनिया से दूर ! जहां आपको अपने सभी काम खुद ही करने पडते हैं ! अपना ख्याल भी खुद ही रखना पडता है ! अपना भला-बुरा भी खुद ही समझना पडता है ! सम्भल गये तो ठीक वरना बिगडने में कोई देर नही लगती ! जहां आप अपने दिल की हर बात हर किसी से नहीं कह सकते ! सहेलियां थीं ! रूम-मेट भी थी ! लेकिन फिर भी ऐसा लगता था कि कहीं न कहीं कोई कमी है ! कोई चीज़ ऐसी है जो होनी चाहिए थी लेकिन है नहीं ! कोई अपना नहीं था ! कभी कभी दिल बहुत ही उदास हो जाता था ! दिल करता था सब कुछ छोड कर इस पिंजरे तो तोड कर भाग जाऊं ! फिर डाक्टर बनने के सपने के बारे में सोच कर मन मसोस कर रह जाती !

राखी का त्यौहार नज़दीक आ रहा था ! मां हर बार मुझे फोन पर बिट्टू भईया को राखी बांधने की हिदायत देना नहीं भूलती थीं ! साथ में उनकी मनपसन्द मिठाई ले जाने की ताकीद भी रहती थी ! मैं पहली बार बिट्टू भईया को राखी बांधने जा रही थी ! मैं पहली बार ‘अपने’ भाई को राखी बांधने जा रही थी ! मैं बहुत खुश थी ! बहुत उत्साहित थी ! जैसे कोई प्रतियोगिता जीतने जा रही होंऊ ! मन ही मन कई मनसूबे बनाती ! राखी कहां से लेनी है ! किस तरह की लेनी है ! उस पर क्या लगा होना चाहिए ! यदि कुछ लिखा हो तो क्या लिखा होना चाहिए ! फिर मिठाई में क्या लेना है ! मोतीचूर के लड्डू ! नहीं ! सोहन पापडी ! नहीं ! बंगाली रसगुल्ले ! नहीं…नहीं…नहीं ! काजू की बर्फी ! काजू… की… बर्फी ! हां…यह…. ठीक… है ! काजू की बर्फी ही ठीक रहेगी ! लेकिन काजू की बर्फी कहां से ली जाय ! यहां सबसे अच्छी दुकान कौन सी है ? किससे पूंछू ? मामी के घर में से तो किसी से भी नही पूछ्ना है ! उनको बताये बिना ही सरपराईज़ देना है भईया को ! बस बर्फी का डिब्बा और राखी का पैकेट लेकर चुन्नी से अपना सिर ढककर चुपचाप भईया के पास जाकर बैठ जाउंगी ! पहले प्लेट में थोडा सा पानी लेकर सिन्दूर और चावल को अच्छी तरह से मिक्स करके भईया को बडा सा तिलक लगाउंगी ! फिर सुन्दर सी राखी बांधूगी ! उसके साथ ही रेशम की डोरी बांध दूंगी ! भईया की लम्बी उम्र के लिए भगवान से प्रार्थना करूंगी ! उसके बाद डिब्बे में से बर्फी निकाल कर इकट्ठे चार-पांच टुकडियां भईया के मुंह में ठूस दूंगी !

राखी के एक दिन पहले क्लास से दो पीरियड मिस करके बाज़ार गई ! कई दुकाने घूमी ! कई तरह की राखियां देखी ! सबसे अच्छी लेने के चक्कर में तीन-चार घंटे कब बीत गए पता ही नहीं चला ! बहुत माथा पच्ची करने के बाद एक सुन्दर सी राखी खरीदी ! साथ में डिज़ाईनदार सफेद नगों वाली रेशम की डोरी ली ! सिन्दूर आदि की रेडीमेड प्लेट ली ! अपने रूम में पहुंची तो वारडन मैम का बुलावा आ गया ! इतनी देर होस्टल से गायब रहने के लिए खूब डांट पडी !

राखी खरीद कर मैं बहुत खुश थी ! कई बार लिफाफे में से निकाल कर निहार चुकी थी ! फिर निकालती फिर देखती और सहला कर रख देती ! मन भरता ही नहीं था ! कितनी सुन्दर लगेगी भईया की कलाई पर यह राखी ! कितने मजबूत होते हैं ये कच्चे धागे ! कितना प्यार, कितना विश्वास झलकता है इन रीति-रिवाजों में ! बहन-भाई के प्यार को दर्शाने वाला यह त्यौहार किसी ने बहुत सोच समझ कर बनाया होगा ! काजू की बर्फी कल सुबह ही लेनी पडेगी ! रात को लेकर रख ही नहीं सकती थी ! यह जो होने वाली डाक्टरनियां हैं न मेरी सहेलियां, इनको पता चल गया न कि मिठाई आई है तो पांच मिनट में पूरा डिब्बा खत्म ! भूखी हैं बिलकुल ! कल सुबह जल्दी उठना पडेगा ! नहा-धोकर राखी वगैरह लेकर काजू की बर्फी अच्छे से पैक करा के फिर बिट्टू भईया के घर जाऊंगी ! बिलकुल सुच्चे मुंह ! बिना कुछ खाये-पीये ! कहते हैं कि बहन को सुच्चे मुंह भाई को राखी बांधनी चाहिए ! सच्चे मन से भगवान से भाई की लम्बी उम्र की दुआ करनी चाहिए !

रात को बार बार नींद खुल जाती थी ! ठीक से सो ही नही पाई ! चिंता थी कि कहीं देर न हो जाय ! उठ उठ कर घडी देखती ! सुबह पांच बजे के बाद ऐसी घुरकी लगी कि सात बजे आंख खुली ! जल्दी जल्दी सब काम निपटाये ! नहा-धोकर नया सूट पहना ! निकलते निकलते नौ बज गए ! बहुत देर हो गई थी ! अभी बर्फी लेनी बाकी थी ! बाहर आई तो चारों तरफ भीड ही भीड थी ! कहीं कारों-बसों की चिल्ल पों तो कहीं स्कूटर-मोटर साईकिल की तेज रफ्तारी ! सभी लदे पडे थे ! सभी भाग रहे थे ! किसी के पास बात करने का भी समय नही था ! कोई बस, कोई रिक्शा, कोई आटो खाली नहीं था ! बहुत देर तक इंतज़ार करती रही ! बडी मुश्किल से एक टैक्सी मिली ! सुन्दर डिज़ाईन वाले डिब्बे में बर्फी का गिफ्ट पैक बनवाया ! भईया के घर जाने के लिए भागी भागी बस स्टाप पर आ गई ! जो भी बस आती सवारियों से लदी-पदी आती ! यहां से तो उनका घर बहुत दूर है ! टैक्सी तो बहुत मंहगी पडेगी ! लेकिन कोई टैक्सी भी दिखाई नहीं दे रही ! सौभाग्य से एक बस स्टाप पर आकर रूकी ! बडी मुश्किल से पायदान पर पैर रखने की जगह बना पाई ! बस से उतर कर दौडती-दौडती मामी के घर पंहुची ! घर पहुंच कर पता लगा कि भईया तो कब के शो-रूम में चले गए हैं ! सारी मेहनत, सारी दौडधूप, सारी तैयारियां बेकार ! लेकिन नहीं आज तो राखी है ! फिर तो यह त्यौहार एक साल बाद ही आयेगा ! और मैं तो भईया को पहली बार राखी बांधने जा रही थी ! अपने भईया को ! कोई बात नहीं ! मैं शो-रूम में जाकर ही राखी बांध दूंगी ! लेकिन शो-रूम तक जाने में लगभग दो घंटे लग जायेंगें ! दो बसे बदलनी पडेंगीं ! परवाह नहीं ! उठ कर चल दी ! मामी और भाभी रोकते-बुलाते रहे ! पर मैं न रूकी ! रूकी तो भैया के शो-रूम में जाकर !

शो-रूम में पहुंचते पहुंचते एक बज गया था ! सुबह से कुछ खाया पीया भी नहीं था ! भूख और भागदौड के कारण जान निकल रही थी ! लेकिन मैं अपनी मंज़िल पर पहुंच गई थी ! भईया को राखी बांध कर फिर आराम से खाऊंगी ! प्यास भी बहुत लगी हुई थी ! भईया अपने आप ही कुछ खिला-पिला देंगें ! शो-रूम में रश था ! भईया और मामा जी काउंटर पर थे ! भईया बिल बना रहे थे मामा जी पैसे ले रहे थे ! सभी सेल्समैन अपने अपने काम में व्यस्त थे !

मैं मिठाई का डिब्बा और राखी लेकर भईया के पास काउंटर पर चली गई ! भईया ने एक बार मेरी तरफ देखा ! फिर काम में लग गए ! मैं वहीं पर खडी इंतज़ार करती रही ! दस-पंद्रह मिनट तक इंतज़ार करने के बाद मैंने भईया से कहा – “सारी भईया, देर हो गई ! असल में मैं पहले आपके घर गई थी ! लेकिन आप यहां आ गए थे ! बसों के धक्के खाते खाते आपके पास पहुंची हूं ! मैंने सुबह से कुछ खाया भी नहीं है ! आप थोडा टाईम निकाल कर पहले राखी बंधवा लो !”

भईया ने एक बार नज़र उठा कर मेरी ओर देखा ! हाथ से रूकने का इशारा किया और फिर बिल बनाने लग गए! बिल बनाकर मेरी ओर मुडे ! काउंटर पर रखा मेरे द्वारा लाया गया बर्फी का डिब्बा और राखी का पैकेट उठाकर काउंटर के नीचे एक तरफ रख दिया ! गल्ले में से कुछ सौ-सौ के नोट निकाल कर मेरी ओर बढा दिए ! मैं अवाक भईया को देखने लगी ! मेरा माथा घूम गया ! मैं समझ ही नहीं पा रही थी कि मैं क्या करूं ! मैं समझ ही नहीं पा रही थी कि मैं क्या कंहू ! मेरे आंसू बेकाबू हो रहे थे ! मेरा दिमाग काम ही नहीं कर रहा था ! मैं वहां पर खडी नहीं रह पा रही थी ! मैं एकदम से बाहर की ओर भागी ! मुझे नहीं पता कि मैं होस्टल कैसे पहुंची ! बस अपने कमरे में आकर बिस्तर में मुंह गडा कर बहुत रोई……बहुत रोई…..रोती रही…..रोती रही !

इस बात को आज 27 साल हो गए हैं ! उसके बाद मैं किसी की कलाई पर यह “कच्चे धागे” बांधने का साहस नहीं जुटा पाई !
राजेश मिश्रा, भेल्दी, छपरा, बिहार 

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