अब खत्म हो गयी है दिवाली,
मेरा मन है बड़ा खाली खाली।
फुलझड़ियाँ और पटाखे,
बच गई है बस अब राखे।
दीपों के लौ है सूने,
नभ ने भी आँखे मूँदे।
है रात बड़ी ये काली,
हर जगह है बस अँधियारी।
अब खत्म हो गयी है दिवाली।
बिन दीप बूझा मन का आँगन,
फिरता हूँ मै बंजारा बन,
क्या चाह रहा,क्या मिला नहीं,
है कौन बसा सब में कण कण?
हर फूल यहाँ है साथ मेरे,
पर मिला ना बाग का माली।
अब खत्म हो गयी है दिवाली।
आनंद,हर्ष अब ना रही,
गयी बीत घड़ी खोयी कही,
सो गया जहाँ अब शांत शांत,
मन मेरा फिर क्यों है अशांत,
चिंता जो मन ने पा ली।
अब खत्म हो गयी है दिवाली।
जग की दिवाली बीत गयी,
मेरे मन की दिवाली अभी नई,
कई दीप स्वप्न के थे सजाने,
रंगों से भरी रंगोली बनाने।
आत्म दीप प्रकाश की थी जरुरी,
दूर करने को मन की अँधियारी।
अब खत्म हो गयी है दिवाली।
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