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गुरुवार, 10 नवंबर 2011

महिलाओं के लिए कानून

इन्हें अपनाएं और अपनी सुरक्षा खुद करें



महिलाएं हमारे समाज में आज भी अक्सर भेदभाव का शिकार होती हैं। उन्हें घरों के भीतर ही शारीरिक और मानसिक हिंसा झेलनी पड़ती है। महिलाओं को इस तरह के अत्याचारों से बचाने और इंसाफ दिलाने के लिए दहेज कानून (498 ए) और घरेलू हिंसा निरोधक कानून बनाए गए हैं। हालांकि कई बार 498 ए के बेजा इस्तेमाल के मामले भी सामने आते हैं। महिलाओं के हितों के लिए बनाए गए इन दोनों कानूनों का सही इस्तेमाल कैसे करें, एक्सपर्ट्स से बात करके महिलाओं को सबल बनाने की कोशिश किया है...

औरत के हक में...
दहेज के लिए पति या ससुराल पक्ष के किसी दूसरे शख्स के उत्पीड़न से महिला को बचाने के लिए 1986 में आईपीसी में सेक्शन 498-ए (दहेज कानून) शामिल किया गया। अगर महिला को दहेज के लिए शारीरिक, मानसिक, आर्थिक या भावनात्मक रूप से परेशान किया जाता है तो वह दहेज कानून के तहत केस दर्ज करा सकती है। दहेज के लिए तंग करने के साथ-साथ क्रूरता और भरोसा तोड़ने को भी इसमें शामिल किया गया है। यह गंभीर और गैरजमानती अपराध है।

कब कर सकती है केस
दहेज के लिए अगर महिला का उत्पीड़न हो।
ऐसी क्रूरता, जिससे मानसिक और शारीरिक हानि हो सकती है।
शादी से पहले (रिश्ता तय होने के बाद), शादी के दौरान या शादी के बाद दहेज की मांग करने पर इस कानून के तहत मामला दर्ज कराया जा सकता है।

कहां करें शिकायत
क्राइम अगेंस्ट विमिन सेल के अलावा 100 नंबर या महिला हेल्पलाइन नंबर 1091 पर कभी भी (सातों दिन चौबीसों घंटे) कॉल कर या अपने इलाके के थाने में शिकायत की जा सकती है। दिल्ली में नानकपुरा के अलावा हर जिले में अलग से भी क्राइम अगेंस्ट विमिन सेल है। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के मुताबिक दिल्ली लीगल सर्विस अथॉरिटी, राष्ट्रीय महिला आयोग, एनजीओ आदि की डेस्क क्राइम अगेंस्ट विमिन सेल में हैं। साथ ही विमिन सेल के पुलिस अधिकारियों खासकर महिला अधिकारियों को पूरी दिलचस्पी और धीरज के साथ पीड़िता की बात सुननी चाहिए ताकि वह खुलकर अपनी बात कह सके। शिकायत मिलने के बाद केस दर्ज करने से पहले पुलिस लड़के वालों को बुला लेती है। लेकिन अगर पति समझौता नहीं चाहता, न ही बातचीत करना चाहता है तो सीडब्ल्यूसी उसे हाजिर होने का प्रेशर नहीं डाल सकता। अगर दोनों पक्ष राजी हैं तो सीडब्ल्यूसी उनके बीच समझौता कराने की कोशिश करता है। जिन मामलों में लड़की या उसके घरवालों की इच्छा अलग होने की नहीं होती, वहां पुलिस की मध्यस्थता से काम हो जाता है। अगर मामला सुलझता नहीं है तो पति और उसके परिजनों के खिलाफ केस दर्ज किया जाता है।

कैसे होता है निपटान
आमतौर पर ऐसे मामलों को तीन चरणों में निपटाया जाता है :
1. काउंसलिंग : राष्ट्रीय महिला आयोग और कुछ एनजीओ आदि ने प्रफेशनल काउंसलर सीडब्ल्यूसी में नियुक्त किए हुए हैं। अगर महिला अपने पति के साथ रहना चाहती है और पुलिस को लगता है कि उसकी जान को कोई खतरा नहीं है तो उसकी और पति की काउंसलिंग के जरिए दोनों को साथ रहने के लिए तैयार किया जाता है। इसके लिए काउंसलिंग की जाती है। जरूरत पड़ने पर काउंसलर पीड़िता और आरोपी के घर भी जाते हैं। दोनों के बीच आगे की जिंदगी को लेकर कुछ बातें तय की जाती हैं।
2. मीडिएशन : दिल्ली लीगल सर्विसेज अथॉरिटी ने कानूनी सलाह के लिए महिला सेल में सीनियर वकील नियुक्त किए हैं। साथ ही, दिल्ली हाई कोर्ट लीगल सर्विसेज कमिटी की देखरेख में दोनों पक्षों के बीच मीडिएशन की कोशिश की जाती है। गरीब या पिछड़े तबके की जो महिलाएं सिर्फ अपने सामान की वापसी के मकसद से आती हैं, उन्हें भी उनका हक यहां दिला दिया जाता है। काउंसलिंग फेल हो जाए तो कोर्ट की लंबी लड़ाई से बचाने के लिए मीडिएटर के जरिए शांतिपूर्ण तरीके से आपसी सहमति से अलग कराने की कोशिश होती है।
3. अदालत : बहुत से मामलों में अदालत की कोशिश भी सुलह की होती है। नाकाम होने पर शांतिपूर्ण ढंग से अलग होने को प्रॉयरिटी दी जाती है। मामला नहीं बनता तो पूरी अदालती प्रक्रिया होती है।

सबूत रखें
पति या ससुराल वालों के सताने पर चुप न रहें। जान लें, आपको उतना ही सताया जाएगा, जितना आप सहनकरना चाहेंगी।
अपने पैरंट्स, परिवार के बाकी लोगों, दोस्तों आदि को उत्पीड़न और पूरे मामले की जानकारी दें। लेटर, ई-मेल या एसएमएस के जरिए अपने परिवार, दोस्तों या रिश्तेदारों से संपर्क साधें। ऐसे ई-मेल या एसएमएस डिलीट न करें।
अगर उनसे संपर्क नहीं कर सकतीं तो ससुराल के पड़ोसियों को खुद पर हो रहे अत्याचार की जानकारी दें।
जरूरत पड़ने पर पुलिस से संपर्क करें। यह बिल्कुल न सोचें कि इससे रिश्ता टूटेगा क्योंकि आपकी चुप्पी घातक हो सकती है।
शादी में जो कुछ भी पैसा खर्च हुआ है, उसकी रसीद संभालकर रखें।
अगर मारपीट की गई है तो सरकारी अस्पताल में जाकर मेडिकल कराएं और रिपोर्ट संभालकर अपने पास रखें।
100 और महिला हेल्पलाइन नंबर 1091 को अपने मोबाइल में स्पीड डायल पर रखें। परेशानी होने पर फौरन कॉल करें।

क्राइम अगेंस्ट विमिन सेल के पते और फोन नंबर
1.असिस्टेंट कमिश्नर ऑफ पुलिस, क्राइम अगेंस्ट विमिन सेल (हेडक्वॉर्टर्स), नानकपुरा, मोती बाग गुरुद्वारा के पास, नई दिल्ली-110021
फोन : 2467-3366, 2412-1234
2.असिस्टेंट कमिश्नर ऑफ पुलिस, क्राइम अगेंस्ट विमिन सेल, साउथ-वेस्ट डिस्ट्रिक्ट,पुलिस स्टेशन वसंत विहार, नई दिल्ली-110067
फोन : 2614-0186, 2615-2810,एक्स-7203, 7299
3. असिस्टेंट कमिश्नर ऑफ पुलिस, क्राइम अगेंस्ट विमिन सेल, साउथ डिस्ट्रिक्ट पुलिस पोस्ट,अमर कॉलोनी, लाजपत नगर-4, नई दिल्ली-110024 फोन : 2648-2871, 2685-2588, एक्स-4411
4. असिस्टेंट कमिश्नर ऑफ पुलिस, क्राइम अगेंस्ट विमिन सेल, वेस्ट डिस्ट्रिक्ट पुलिस पोस्ट,कीर्ति नगर, नई दिल्ली-110005फोन : 2591-5314, 2544-7100,2592-6101, एक्स-4240
5. असिस्टेंट कमिश्नर ऑफ पुलिस, क्राइम अगेंस्ट विमिन सेल (हेडक्वॉर्टर्स), नॉर्थ डिस्ट्रिक्ट पुलिस पोस्ट,सराय रोहिल्ला, दिल्ली-110055फोन : 2396-2201, एक्स-6411, 6642
6. असिस्टेंट कमिश्नर ऑफ पुलिस, क्राइम अगेंस्ट विमिन सेल, नॉर्थ-वेस्ट डिस्ट्रिक्ट,ओल्ड बिल्डिंग, प्रशांत विहार, दिल्ली-110085फोन : 2756-6476, 2732-3566
7. असिस्टेंट कमिश्नर ऑफ पुलिस, क्राइम अगेंस्ट विमिन सेल, सेंट्रल डिस्ट्रिक्ट, न्यू राजेंद्र नगर, नई दिल्ली-110060,फोन : 2573-7951, 2874-3369,एक्स-7436
8.असिस्टेंट कमिश्नर ऑफ पुलिस, क्राइम अगेंस्ट विमिन सेल, नॉर्थ-ईस्ट डिस्ट्रिक्ट,पुलिस स्टेशन सीलमपुर, दिल्ली-110053फोन : 2256-4166
9. असिस्टेंट कमिश्नर ऑफ पुलिस,क्राइम अगेंस्ट विमिन सेल,ईस्ट डिस्ट्रिक्ट,कृष्णा नगर, दिल्ली-110051फोन : 2209-195010. असिस्टेंट कमिश्नर ऑफ पुलिस, क्राइम अगेंस्ट विमिन सेल, न्यू डेल्ही डिस्ट्रिक्ट,पार्ल्यामेंट स्ट्रीट, नई दिल्ली - 110001 फोन : 2336 1231, एक्स-3410, 3447

न जाने कितनी 'नीनाएं'
नीना की उम्र 58 साल है। वह दिल्ली के सबसे पॉश इलाकों में से एक में रहती थीं। वह बेहद खूबसूरत, सभ्य और क्लासी दिखती हैं। नीना ने दो-तिहाई जिंदगी अकेले काटी। बीमार मां की खातिर उन्होंने शादी न करने का फैसला किया था। नौकरी से वह इतना कमा लेती थीं कि मां-बेटी एक अच्छी जिंदगी जी सकें। 46 साल की उम्र में नीना ने जिंदगी की सबसे बड़ी भूल की। उन्होंने मैट्रिमोनियल ऐड के जरिए एक शख्स से कुछ मुलाकातों के बाद शादी का फैसला कर लिया। मां की मौत के बाद अकेलेपन से बाहर निकलने की चाह में उन्होंने यह फैसला किया। नीना के पति की पहली शादी से दो बेटियां थीं और पहली पत्नी की एक साल पहले मौत हुई थी। बड़ी बेटी अपने नाना-नानी के पास और दूसरी अपने पिता और नई मां (नीना) के साथ रहती थी। पहली पत्नी एक रईस परिवार से थी। नीना का पति अच्छे फ्लैट में रहता था और मर्सडीज चलाता था। फिर भी वह नीना के खर्चों के लिए कोई पैसा नहीं देता था। उलटे घर खर्च में पैसे देने के लिए नीना पर दबाव डालता।

दूसरे, वह पारिवारिक समारोहों में नीना को अपने साथ नहीं ले जाता था। वह ऐसा क्यों करता है, नीना ने न जाने कितनी बार पूछा, पर कोई जवाब नहीं मिला। उसे नीना का दोस्तों से मिलना बिल्कुल पसंद नहीं था। तंग आकर नीना ने अपना दायरा समेट लिया। शादी के एक साल बाद पहली बार पति ने नीना पर हाथ उठाया। करीब 10 साल तक जिल्लत भरी जिंदगी जीने के बाद एक दिन मारने के लिए उठा पति का हाथ पकड़कर नीना ने कॉलर थाम लिया। उन्होंने उसे साफ-साफ बताया कि आगे से ऐसा किया तो ठीक नहीं होगा। पति चुपचाप चला गया। शायद मार खाते-खाते महिलाएं इसे अपनी नियति समझ लेती हैं, लेकिन अगर वे हिम्मत दिखाएं तो तस्वीर बदल सकती है। बहरहाल, अब नीना की समस्या यह भी थी कि वह अपना खर्च कैसे चलाएगी। इस उम्र में फिर से नौकरी करना उसे मुश्किल लग रहा था। पति की माली हालत की उसे कोई जानकारी नहीं थी। जिस फ्लैट में वे लोग रह रहे थे, उसे भी पति ने चुपके से छोटी बेटी के नाम कर दिया था। इन सब सवालों के बावजूद बार-बार मार खाने के बाद नीना ने क्राइम अगेंस्ट विमिन सेल में शिकायत दर्ज कराई। अब नीना को रोशनी की किरणें साफ नजर आ रही हैं।
(ये अंश किताब रूम 103 नानकपुरा थाना से लिए गए हैं,जिसकी लेखिका रश्मि आनंद और सुमन नलवा हैं।)

घरेलू हिंसा भी नहीं चलेगी
कब दर्ज हो सकती है शिकायत

अगर महिला के साथ मारपीट हो, उसे घर में रहने न दिया जाए, जेबखर्च न दिया जाए, मेडिकल सुविधाएं न दी जाएं, प्रॉपर्टी में जायज हक न दिया जाए, उसके जेवर या पैसे उसे न दिए जाएं, उसकी पसंद का काम न करने दिया जाए, उसकी मर्जी के खिलाफ बार-बार उससे संपर्क किया जाए, उसे या उसके परिवार को धमकी या ताने दिए जाएं, उसे बच्चा या बेटा न होने का दोषी ठहराया जाए आदि मामलों में महिला इस कानून की मदद ले सकती है।

इस कानून के दायरे में महिला के पति के अलावा पिता, भाई, देवर और प्रेमी भी आते हैं। मोटे तौर पर इस कानून के तहत पुरुषों के खिलाफ ही कार्रवाई होती है लेकिन अगर परिवार की कोई महिला भी टॉर्चर करती है तो पीड़ित महिला इस कानून का सहारा ले सकती है। हाल में महिलाओं के खिलाफ भी इस ऐक्ट के तहत शिकायत के मामले सामने आए हैं। इसी तरह पत्नी या किसी और रिश्तेदार महिला से पीड़ित पुरुष भी इस कानून का सहारा ले सकता है।

बच्चे को भी इस कानून का लाभ मिल सकता है। कोई भी बालिग उसकी ओर से शिकायत दर्ज कर सकता है।

यह सिविल ऐक्ट यानी दीवानी कानून है। इसमें दोषी को सजा का प्रावधान नहीं है लेकिन पीड़िता को राहत जरूर मुहैया कराई जाती है। हालांकि जरूरत पड़ने पर यह कानून फौजदारी में भी बदलता है, मसलन पीड़िता मारपीट से जख्मी हो जाए तो यह मामला क्रिमिनल केस में तब्दील हो जाएगा। कोर्ट के आदेश का उल्लंघन हो तो भी पुलिस केस दर्ज करती है।

क्या-क्या राहतें
यह कानून महिलाओं को फिजिकल, मेंटल, इमोशनल, इकनॉमिक और सेक्सुअल वॉयलेंस से सुरक्षा प्रदान करता है।
महिला के साथ जबरन संपर्क की कोशिश, उसकी मर्जी के खिलाफ उसके काम करने की जगह या रहने की जगह जाने पर इस कानून की मदद ले सकते हैं।
स्त्रीधन को महिला से कोई नहीं ले सकता। उसके या दोनों के जॉइंट अकाउंट या लॉकर को उसकी मजीर् के खिलाफ ऑपरेट नहीं किया जा सकता।
महिला या उसके मायकेवालों के साथ मौखिक या शारीरिक हिंसा नहीं की जा सकती।ठ्ठ कोर्ट साझा मकान में से पुरुष को निकलने का आदेश दे सकता है, महिला को नहीं दे सकता।
महिला जिस हिस्से में रह रही है, पुरुष के उसमें जाने पर रोक लगाई जा सकती है।
साझा मकान या उसके किसी हिस्से को महिला की मर्जी के खिलाफ नहीं बेचा जा सकता। महिला अगर अलग रहना चाहे तो उसे किराए पर मकान मुहैया कराना पुरुष की जिम्मेदारी है। उसका गुजारा और मेडिकल का खर्च उठाना भी पुरुष की जिम्मेदारी है।
महिला को बच्चों की टेंपरेरी कस्टडी मिल सकती है।
महिला को किसी भी तरह के शारीरिक, मानसिक नुकसान की भरपाई व इलाज का खर्च मिल सकता है।

ध्यान दें
इस कानून को दूसरे कानूनों के साथ-साथ इस्तेमाल किया जा सकता है। खासकर 498 ए के साथ इसके इस्तेमाल से महिला को ज्यादा राहत मिल सकती है।
तलाक या गुजारे भत्ते की अर्जी के साथ इसे दायर किया जा सकता है।
मामला अगर कोर्ट में है तो भी महिला अपने रहने का इंतजाम करने के लिए अर्जी दायर कर सकती है।

कैसे होती है कार्रवाई
महिला लोअर कोर्ट में शिकायत दर्ज कर सकती है। अगर वह घर से नहीं निकल सकती या दूसरी वजहें हैं तो वह कोर्ट द्वारा नियुक्त सर्विस प्रवाइडर को फोन कर बुला सकती है। कोर्ट सुरक्षा अधिकारी भी नियुक्त करता है, जो महिला की सुरक्षा का जिम्मा संभालते हैं। शिकायत के बाद कोर्ट पुलिस को आदेश देता है।
किसी भी तरह का उत्पीड़न होने पर पुलिस को बुलाएं और एफआईआर की कॉपी अपने साथ रखें।
इस कानून के तहत अदालत पीड़िता के बयान को सबसे ज्यादा अहमियत देती है। हालांकि अगर आपके पास किसी भी तरह के उत्पीड़न के सबूत हैं, तो उन्हें संभाल कर रखें और कोर्ट में पेश करें।
इस कानून के तहत केस दो महीने में सुलझ जाना चाहिए। वैसे ज्यादा वक्त भी लग जाता है।
यह दीवानी मामला है लेकिन अगर आरोपी कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करता है तो सजा का प्रावधान भी है। क्रिमिनल कोर्ट में 498 ए के तहत केस दर्ज नहीं किया जा रहा तो यह कोर्ट इस धारा के तहत केस दर्ज करने का आदेश दे सकता है।

...ताकि पिसे न पति
दहेज कानून जहां महिलाओं को सपोर्ट करता है, वहीं इसके गलत इस्तेमाल के भी मामले आए दिन सुनाई देते हैं। कई बार पति-पत्नी के बीच छोटे-मोटे झगड़े और आपसी ईगो की वजह से पत्नियां 498 ए के तहत मामला दर्ज कराने की ठान लेती हैं और ससुराल पक्ष के ज्यादातर लोगों का नाम रिपोर्ट में लिखवा देती हैं। हाल में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि अगर किसी मामले में पति, उसके परिवार वालों और रिश्तेदार निचली अदालत में पेश किए जाएं तो अदालत उन्हें अंतरिम जमानत पर रिहा कर दे। इसके बाद मामला मीडिएशन सेंटर में भेज दिया जाए क्योंकि पति-पत्नी के छोटे-मोटे झगड़े अदालत की दहलीज पर पहुंचकर नासूर बन जाते हैं। सरकार 498 ए में संशोधन लाने की कोशिश कर रही है, ताकि किसी को झूठे मामलों में न फंसाया जा सके।

क्या हैं गाइडलाइंस
498 ए को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कई गाइडलाइंस दर्ज की हैं, जिनका पालन करना संबंधित अधिकारियों या निकायों के लिए जरूरी है। कानून के सही इस्तेमाल के लिए इन्हें फॉलो करना जरूरी है।

पुलिस के लिए
डीसीपी या अडिशनल डीसीपी की इजाजत के बिना 498 ए के तहत केस दर्ज नहीं किया जा सकता।
मामले की जांच सब-इंसपेक्टर और उससे सीनियर अधिकारी ही कर सकता है। हर 15 दिन में एसीपी और हर महीने डीसीपी या अडिशनल डीसीपी रैंक का अधिकारी जांच-पड़ताल की प्रोग्रेस को देखे।
मुख्य आरोपी की गिरफ्तारी अच्छी तरह पड़ताल और डीसीपी के आदेश के बाद ही होनी चाहिए। बाकी आरोपियों की गिरफ्तारी पर भी यही नियम लागू होते हैं।
जिन लोगों के खिलाफ शारीरिक या मानसिक अत्याचार, भरोसा तोड़ने के मजबूत सबूत हों, उन्हीं के खिलाफ केस दर्ज किया जाना चाहिए।
अगर किसी भी तरह समझौता होता नजर नहीं आता तो पुलिस को केस दर्ज करना चाहिए। केस दर्ज करने के बाद सबसे पहले स्त्री धन और दहेज का पैसा दिलाने की कोशिश होनी चाहिए।
अगर पुलिस को यकीन हो जाता है कि शिकायतों को जबरन बढ़ा-चढ़ा कर लिखा गया है, तो उसे आरोपी के साथ नरमी से पेश आना चाहिए।

वकीलों के लिए
किसी भी पक्ष के वकील को झूठे आरोप लगाने की सलाह नहीं देनी चाहिए। आरोपों को जबरन साबित करने की कोशिश भी गलत है। दोनों पार्टियों में से किसी के भी चरित्र हनन की सलाह देने से बचें।

अदालतों के लिए
अदालतों को सबसे पहले दोनों पक्षों में समझौते की कोशिश करनी चाहिए ताकि पति-पत्नी फिर सेसाथ रह सकें।
अगर किसी वजह से ऐसा मुमकिन न हो तो शांतिपूर्ण तरीके से अलग हो जाएं।
अदालत को इसके लिए एक्स्ट्रा वक्त देने से भी पीछे नहीं हटना चाहिए।
सुलह समझौते की कार्यवाही कैमरे की देखरेख में होनी चाहिए।

सोच-समझकर करें इस्तेमाल
कई बार ससुराल पक्ष का इस दौरान हुआ अपमान सुलह की सारी संभावनाओं को खत्म कर देता है। इसके बाद शादी की कोई गुंजाइश नहीं बचती।

गैर-जमानती होने की वजह से कई बार मुजरिम उस वक्त तो डर से समझौता कर लेता है लेकिन बाद में वह बदला लेने पर उतारू हो जाता है।

हो सकती हैं ये वजहें
पति या किसी और के साथ छोटी-मोटी तकरार
सास/ससुर या ससुराल में किसी और के साथ पटरी नहीं बैठना
लड़की का किसी और के साथ अफेयर होना और उसके साथ शादी करने की इच्छा
दोनों में से किसी की भी जबरन शादी होना
प्रॉपर्टी पर निगाहें
परिवार से अलग होने की कोशिश

क्या होता है आमतौर पर
आमतौर पर लड़की या उसके घरवाले शुक्रवार को केस दर्ज कराते हैं, ताकि अगले दो दिन छुट्टी होने की वजह से कम-से-कम दो दिन सलाखों के पीछे रहना पड़े। अगर पहले से अंदेशा हो तो ऐंटिसिपेटरी बेल ली जा सकती है।
कई मामलों में लड़की वाले अलग होने के मिजाज से साथ आते हैं। वे लड़के वालों से पैसा बटोरकर अपनी बेटी की दूसरी शादी करना चाहते हैं। ऐसे में वे शादी का पूरा खर्च, जेवर, अपने रिश्तेदारों को भी दिए गिफ्ट आदि का पूरा पैसा जोड़ देते हैं।
ऐसे बहुत-से मामलों में कोशिश तलाक पाने की होती है। हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 13 में तलाक का विधान है। तलाक दीवानी प्रक्रिया है, जिसमें आमतौर पर डेढ़-दो साल तक का वक्त लग जाता है। 13-बी में आपसी सहमति से तलाक का प्रावधान है, जोकि करीब छह महीने में ही निपट जाता है। इसमें गवाह और सबूतों की भी जरूरत नहीं पड़ती।

फंसें ही नहीं, इसके लिए क्या करें
लड़की अगर 498 ए में फंसाने की धमकी दे तो चीफ जूडिशल मैजिस्ट्रेट के यहां इन्फमेर्टिव पिटिशन दाखिल कर उसकी एक कॉपी रिसीव करा लें।
अगर लड़की की हरकतों से लगे कि वह मायके में ही रहना चाहती है और बचने का कोई रास्ता नहीं है तो लड़के वालों को अपनी ओर से तलाक केस फाइल करना चाहिए।

परिवार के बाकी लोग भी फंस जाएं तो...
अगर परिवार के लोग अलग रहते हैं तो वे अपनी तरफ से अलग से पिटिशन दायर करें कि हम साथ नहीं रहते। इससे जमानत मिल जाएगी और आरोपों से छूट भी सकते हैं।

पति अलग रहता है, फिर भी शिकायत...
पति अगर पत्नी के साथ हुए कथित अत्याचार के वक्त वहां मौजूद नहीं था तो उसे अदालत को बताना होगा कि वह उस वक्त कहां था। इसके लिए सबूत भी पेश करने होंगे।
अगर पत्नी अलग रह रही है तो यह साबित करने के लिए पति के पास सबूत होना चाहिए। पत्नी को उसके पते पर लीगल नोटिस भेजें और उससे वापस आने को कहें।

शिकायत के बाद क्या करें
शिकायत मिलने और एफआईआर दर्ज होने के बीच काफी वक्त होता है, इसलिए घबराएं नहीं।
तमाम डॉक्युमेंट्स के साथ पुलिस के पास जाकर अपना पक्ष रखें। अगर शादी में कोई मीडिएटर रहा है तो उसे भी साथ लेकर जाएं।
पुलिस के पास खुले दिमाग के साथ जाएं। अगर कुछ समझौते करने हैं तो तैयार रहें।
इसमें क्रिमिनल केस बनता है, इसलिए अच्छी साख वाला क्रिमिनल लॉयर करें, न कि तलाक का वकील।
अगर पत्नी को आपने रुपये चेक से दिए हैं तो सबूत के लिए उसकी एक कॉपी अपने पास रखें। अपने इलाके के डीजीपी को रजिस्टर्ड लेटर भेजें। ऐसा ही लेटर महिला आयोग को भी भेजें।
अगर निचली अदालत जमानत अर्जी खारिज कर दे, नियमित जमानत के लिए निचली अदालत समेत हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी जमानत अर्जी दाखिल करें।
जो लोग 498 ए के मामलों में फंस चुके हों, उनसे बातें करें और जानकारी हासिल करें।

पुलिस के सामने कैसा बर्ताव करें
खुद पर कंट्रोल रखें और कन्फ्यूजन न दिखाएं।
जुर्म कबूल करने के लिए पुलिस को आपको टॉर्चर करने का कोई हक नहीं है। इस बारे में अदालतकई बार फैसले सुना चुकी है।
अगर पुलिस वाले धमकाएं तो फोन में रिकॉर्ड कर लें और सीनियर अफसर ऑफिसर को रिपोर्ट करें।
18 साल से कम उम्र के किसी भी शख्स से उसके घर से अलग कहीं और पूछताछ नहीं की जा सकती।
महिला को सूरज ढलने और दिन निकलने से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। महिला को लेडी पुलिस कर्मचारी की मौजूदगी में ही गिरफ्तार किया जा सकता है।
एफआईआर की कॉपी जरूर लें। यह आपका हक है। इसके आधार पर आपको बचाव कामौका भी मिलेगा।

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