हाल में पोस्ट की गई लेख

लेबल

LATEST:


बुधवार, 21 मार्च 2012

गर्मियों की बीमारियों के प्राकृतिक उपचार

गर्मियां शुरू होते ही डिप्रेशन, एसिडिटी, गैस, कब्ज, जी घबराना, सीने में दर्द, जलन, चक्कर कई तरह की बीमारियां महिलाओं को घेर लेती हैं। घर के कामकाज में व्यस्त महिलाएं रोज की बीमारी है कौन जाएगा डॉक्टर के यहां कहकर इलाज को टालती रहती हैं। लेकिन महिलाएं चाहें तो डॉक्टर्स और ढेर सारी दवाइयों के झंझट में पड़े बगैर भी कुछ घरेलू उपायों और प्राकृतिक उपचार के जरिए इन परेशानियों से छुटकारा पा सकती हैं।
अनुलोम-विलोम प्राणायाम - पद्मासन लगाकर कंधे, गर्दन, रीढ की हड्डी को सीधी रखकर बैठें। बाएं हाथ से ज्ञान मुद्रा लगाएं। दाहिने हाथ को ऊपर उठाकर दाहिनी नासिका को अंगुली से दबाएं और बांई नासिका से गहरी लम्बी सांस लें। इसके बाद बांई नासिका को अंगुली से दबाकर दाहिनी नासिका से धीरे-धीरे सांस छोड़े । विपरीत क्रम में इसी तरह करना है। इस प्राणायाम को 3 से 10 मिनट तक करें।
लाभ - . इस प्राणायाम के जरिए शरीर में स्थित लाखों-करोड़ों नाडियों का शोधन होता है। इससे जुकाम, खांसी, माइग्रेन, सिरदर्द, डिप्रेशन आदि में आराम मिलता है। साथ ही मन की शक्ति भी जाग्रत होती है।
शीतली प्राणायाम - पद्मासन में बैठकर दोनों हाथ से ज्ञान मुद्रा लगाएं। होठों को गोलाकार करते हुए जी को पाईप की आकृति में गोल बनाएं। अब धीरे-धीरे गहरा लम्बा सांस जी से खींचें। इसके बाद जी अंदर करके मुंह बंद करें और सांस को कुछ देर यथाशक्ति रोकें। फिर दोनों नासिकाओं से धीरे-धीरे सांस छोड़े । इस प्राणायाम को 20 से 25 बार करें।
लाभ- इससे गर्मीजनित रोग, एसिडिटी, क्रोध आदि के प्राव को कम किया जा सकता है।
कुंजल क्रिया - यह क्रिया सुबह खाली पेट की जाती है। उकडू ;कागासन, बैठकर 4.5 ग्लास गुनगुने पानी में थोडा-सा सैंधा नमक मिलाकर पी लें। अब खड़े होकर 90 डिग्री से आगे झुककर दाहिने हाथ की तर्जनी और मध्यमा उंगली को हलक में डालकर छोटी जी को दबाएं। पिया हुआ सारा पानी जब तक उल्टी के जरिए बाहर न आ जाएए अंगुली जी से टच करते रहें। इस दौरान बाएं हाथ से पेट पर भी दवाब डालें।
लाभ- पेट के विजातीय द्रव अम्ल गैस पित्त बाहर आ जाते हैं। अजीर्ण एसिडिटी दूर हो जाती है।
प्राकृतिक उपचार - गीली चादर लपेट - इसे वैट शीट पैक, होल बॉडी कम्प्रेस भी कहा जाता है। इसका प्रयोग डॉ. वी प्रिंसेज ने मानसिक दुर्बलता और विकृति दूर करने के लिए किया था। इसमें सिर और गर्दन अच्छी प्रकार धो लें। फिर पानी पिएं। अब एक बड़ी सूखी चादर को गीला कर निचोड लें। जमीन या चारपाई पर एक कम्बल बिछा लें। इसके बाद गीली चादर को कम्बल पर बिछा दें। पूरे शरीर को गीली चादर से लपेट लें। इसके बाद कम्बल को इस प्रकार लपेंटे जिससे शरीर पर लपेटी हुई चादर पूरी तरह ढक जाए। सिर पर गीला तौलिया रखें। बीच-बीच में ठंडा पानी या शिरोधार डालें। अब 45 मिनट के लिए सो जाएं। इसके बाद ठंडे पानी से शॉवर बाथ या स्पंज बाथ लें। इस स्नान को प्राकृतिक चिकित्सालय से से सीखकर भी किया जा सकता है।
मडबाथ - यह गर्मियों में आनंद देने वाला विशेष स्नान है। इससे न सिर्फ झुलसती गर्मी से आराम मिलता है बल्कि त्वचा भी अघिक मुलायम और चिकनी हो जाती है। इस स्नान में खेतों की छह फुट नीचे की मिट्टी या समुद्र की रेत काम में ली जा सकती है। इस मिट्टी को धूप में 2.3 घुटे सुखाएं। इसके बाद रात को चन्द्रमा की रोशनी में मिट्टी के बरतन में पानी डालकर मिट्टी को भीगोकर रखें। सुबह लकड़ी से मिट्टी को तब तक मिलाएंए जब तक वह चिकनी न हो जाए। आवश्यकतानुसार इसमें नीम की पत्तियां या गुलाबए गैंदे की पंखुडियां भी मिलाई जा सकती हैं। लेप तैयार होने के बाद इसे पूरे शरीर पर लगाएं और करीब ४५ मिनट तक इसे सुखाएं। इसके बाद खुले पानी से नहाएं या शॉवर बाथ लें। यदि त्वचा रूखी हो गई हो तो नहाने के बाद थोडा सा नारियल तेल भी लगाया जा सकता है।
मिट्टी का लेप - यदि पूरा मडबाथ न ले सकें तो केवल पेट पर भी मिट्टी का लेप लगाया जा सकता है। मिट्टी के अवयव में पेट पर ठंडे पानी का तौलिया भी कुछ हद तक लाकारी है। इसके अलावा पैरों में जलन होने पर तलवों पर मिट्टी या मेहंदी का लेप या फिर लौकी, करेले आदि का गूदा लगाया जा सकता है।

कोई टिप्पणी नहीं: