हाल में पोस्ट की गई लेख

लेबल

LATEST:


मंगलवार, 5 जून 2012

Bhikhari Thakur and Bhupen Hazarika

इतिहास पुरुष भिखारी ठाकुर और भूपेन हजारिका को कल्पना की श्रद्धांजलि

 कल्पना पटवारी के साथ राजेश मिश्रा 

 कल्पना पटवारी के साथ राजेश मिश्रा 

 कल्पना पटवारी के साथ राजेश मिश्रा 


भिखारी ठाकुर के प्रति संगीतमय श्रद्धांजलि


मैंने अब तक बहुत गायक और कलाकारों के साथ साक्षात्कार लिया पर मैंने कल्पना के साथ बातचीत की और द वेक मासिक पत्रिका में प्रकाशित किया तो मुझे बहुत बधाई मिले थे। कल्पना से बातचीत के अंश आप यहाँ क्लिक करके http://rajamis.blogspot.in/2011/10/kalpna-patwari-interview-by-rajesh.html?spref=gr#close=1 पढ़ सकते हैं।.. कल्पना के जीवन में हर घटना, सुख-दुःख के दिन, शादी कैसे की, गायकी में कैसे पहुंची सबकुछ आपको मिलेगा, साथ ही मेरे साथ साक्षात्कार की फोटो भी निचे है।.. अब यहाँ प्रस्तुत है कल्पना की कहानी कल्पना की ही जुबानी।......जो उन्होंने भिखारी ठाकुर और भूपेन हजारिका के प्रति श्रद्धान्जलि अर्पित की है।... 

दोस्तों, मैं कल्पना हूं। वही कल्पना जिसे आपने भोजपुरी गाना गाते हुए सुना है। आज अपना बिहार के माध्यम से आप सभी के साथ कुछ विचार साझा करना चाहती हूं। संगीत मुझे अपने पिता विपिन पटवारी से विरासत में मिला है। मैं मूल रुप से आसाम के ग्वालपाड़ा जिले की रहने वाली हूं, जहां की लोकगायकी परंपरा भी बहुत समृद्ध है। पापा रेडियो आर्टिस्ट थे और उनके कारण मैंने 3 साल की उम्र से ही गाना सीखना प्रारंभ कर दिया। फ़िर पापा ने मेरी दिलचस्पी को देखते हुए शास्त्रीय संगीत सीखने को प्रोत्साहित किया। यह मेरे संगीतमय जीवन का वास्तविक प्रारंभ था।
समय के साथ मैंने आसाम के लोकगीत के अलावा पाश्चात्य संगीत शैली पर आधारित गाने गाये। लोगों ने खूब सराहा। तब लोगों की सलाह मानकर मैंने भी कैरियर संवारने मुंबई चली आई। मेरा पहला म्यूजिक एलबम वेस्टर्न म्यूजिक पर आधारित था। बाद में मैंने क्षेत्रीय भाषाओं में गाने गाये। वर्ष 2002 में मेरा साक्षात्कार भोजपुरी से हुआ।
मेरा पहला भोजपुरी एलबम होली गीतों पर आधारित था। जिसके बोल द्विअर्थी थे। हालांकि तब मुझे इसकी जानकारी नहीं थी। मसलन एक गाने में पिचकारी शब्द का इस्तेमाल किया गया था। यह शब्द आसाम में भी लोकप्रिय है और यहां इसका एक ही मतलब होता है और वह है रंग खेलने वाली पिचकारी। खैर, लोगों को मेरा गाना अच्छा लगा। इसके बाद भक्ति गीत “ए गणेश के पापा” मेरे लिए टर्निंग प्वायंट साबित हुआ। बिहारवासियों का प्यार मिलने लगा। मैंने एक से बढकर एक भक्ति गीत गाये। सभी ने मुक्त कंठ से सराहा। इसके बाद ससुरा बड़ा पईसावाला फ़िल्म में आईटम सांग गाने का अवसर मिला, जिसे भोजपुरीभाषियों ने सराहा।
वर्ष 2004 में लोगों ने मुझे भोजपुरी में सोलो एलबम के लिए प्रेरित किया और “गवनवा ले जा राजा जी” लोगों के बीच आ सका। इसे भी आशातीत सफ़लता मिली। बाद में महुआ चैनल पर एक टैलेंट हंट प्रोग्राम में जज बनने का अवसर मिला। उस दौरान मुझे यह जानकर सुखद अहसास हुआ कि आज की युवा पीढी भोजपुरी गाना जो सकारात्मक रुप में लेती है और वे मुझे आदर्श मानते हैं। इस अहसास ने एक और जिम्मेवारी का अहसास भी करा दिया। यह जिम्मेवारी थी भोजपुरी की खोयी हुई गरिमा को वापस लाने की।
मेरे लिये यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य था। डा भूपेन हजारिका मेरे सबसे बड़े आदर्श हैं। आज वे इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन बावजूद इसके उनकी गायकी मेरे हर अंश में निहित है। इसकी वजह भी मेरे पापा विपिन पटवारी ही थे। वे भी डा हजारिका के बहुत बड़े प्रशंसक हैं। एक बार जब पापा को कैंसर डिटेक्ट हो गया और मुंबई के लीलावती अस्पताल में उन्हें आपरेशन थियेटर के लिए ले जाया जा रहा था, तब उन्होंने मुझे आम जनों के लिये गाने को कहा। ईश्वर की कृपा से पापा का आपरेशन सफ़ल रहा, लेकिन मेरे कानों में पापा के शब्द गूंज रहे थे। मैं भोजपुरी में एक ऐसा महानायक तलाश कर रही थी, जिन्होंने डा भूपेन हजारिका की तरह आम जनों के लिये गाया हो। विद्यापति, महेंद्र मिसिर और भिखारी ठाकुर।
एक बार आरा जिले के बखोरापुर काली मंदिर में संगीत कार्यक्रम के दौरान मुझे एक वयोवृद्ध कलाकार को सुनने का अवसर मिला। उनके बोल भोजपुरी के ही थे, लेकिन लीक से अलग हटकर थे। उनके बोल के साथ जो स्वर लहरियां गूंज रही थीं, वह सब सपने के जैसा था। मैंने कार्यक्रम के संयोजक सुनील भैया (बखोरापुर काली मंदिर के संस्थापक सचिव) से इस बारे में जानना चाहा तब उन्होंने भिखारी ठाकुर के बारे में बताया। यही से मन में लगन लग गई कि भिखारी ठाकुर की शैली को आज की युवा पीढी के समक्ष अवश्य प्रस्तुत करूंगी।
फ़िर बहुत जगह हाथ-पांव मारने के बाद बिहार राष्ट्रभाषा परिषद के द्वारा प्रकाशित भिखारी ठाकुर रचनावली को पढने का अवसर मिला। मेरे सपनों को पंख लग गये। मैंने उस किताब में वर्णित गीतों का चयन किया और उस वयोवृद्ध कलाकार का अनुकरण कर अपने सपनों को “द लीगेशी आफ़ भिखारी ठाकुर” को साकार किया। संभवतः यह पहला भोजपुरी म्यूजिक एलबम है जिसका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विमोचन किया जायेगा। 
अंत में केवल इतना ही कि “द लीगेशी आफ़ भिखारी ठाकुर” में चयनित गीतों का आनंद लें और भोजपुरी के शेक्सपीयर भिखारी ठाकुर को श्रद्धांजलि दें। वे हमारे गौरवशाली इतिहास हैं। मैंने तो अपने तरफ़ से महज एक छोटा सा प्रयास किया है। आप सभी बिहारवासियों को मेरा यह प्रयास पसंद आयेगा और आने वाली पीढी इस प्रयास को आगे बढायेगी, ऐसा मेरा विश्वास है।

आपकी अपनी

कल्पना पटवारी,
प्रख्यात भोजपुरी गायिका।

कोई टिप्पणी नहीं: