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शुक्रवार, 1 जून 2012

लघुकथाएँ

रहस्य


वे दोनों पति-पली समाज में बड़े प्रतिष्ठित माने जाते थे। उस दिन उनका घर बड़ा सजा सँवरा था। वन्दनवार लटक रहे थे। कुल मिलाकर उत्सव का माहौल लग रहा था। खुशी का कारण यह था कि उनके नि:सन्तान बेटे-बहू ने एक अनाथ कन्या शिशु को गोद लिया था और इसी अवसर पर उस दिन एक पार्टी का आयोजन किया था।

जैसा कि स्वाभाविक था, सभी लोगों के श्रीमुख से प्रशंसा के स्वर निकल रहे थे, ''भई वाह! क्या विचार है इनकी बहू के। रिश्तेदारों ने कहा भी था कि गोद ही लेना है तो लड़का लो बुढ़ापा सुधर जाएगा, लेकिन वह कहती-एक अनाथ लड़की गोद लेकर उसका जीवन सँवार दूँगी तो पूरा जन्य ही सुधर जाएगा। सच है भई! शिक्षा तो मुँह से बोलती है। पढ़े-लिखे लोगों के विचार भी ऊँचे होते है बहू के संस्कार अच्छे हैं वगैरह...। ''
दिनभर इसी प्रकार की बातें चलती रहीं। दोपहर बाद जब गिनती के केवल मित्र-रिश्तेदार ही रह गए तो दिनभर अपनी बहू के साथ प्रफुल्लित होते सास-ससुर अपने एक बेहद अंतरंग मित्र के समक्ष फट पड़े 'बहू कुछ भी चाहे हमने तो लड़का ही लेना चाहा था, पर लोग लड़का आते ही ले लेते हैं, वेटिंग चल रही है, मिलता ही कहाँ है? इसलिए मन मारकर लड़की ही गोद लेने की इजाजत दे दी। ''.

सवाल


'माँ, तुम भी 'ना! बहुत सवाल करती हो? मैं और सुमि तुम्हें कितनी बार तो बता चुके हैं। एक बार ठीक से समझ लिया करो ना! पच्चीसों बार पूछ चुकी हो रामी बूआ के बेटे को शादी का कार्यक्रम। समय पर आपको ले चलेंगे ना! '' मुनमुनाता हुआ बेटा ले जा रहा था, ''अभी मुझे आफिस को देर हो रही है। सुमि! माँ को सारे कार्यक्रम जरा एक बार और बता देना, और अब बार-बार मत पूछना माँ! '' कहते हुए बेटा बैग उठाकर निकल गया।
_ माँ की आँखें भर आई। आजकल कोई बात याद ही नहीं रहती, पर फिर भी बरसों पुरानी बातें याद थीं। यही मुन्ना दिन में सौ मर्तबा पूछता रहता था- मां बताओ न! तितली को रंग हाथ में क्यूँ लग गया? क्या वो पीले रंग से होली खेल के आई है? माँ, हम मन्दिर जाते हैं तो भगवान बोलते क्यों नहीं? भगवान सुनते कैसे हैं?
बताओ ना माँ? '.
आंखें भर आने से भी की यादें धुँधलाने लगी थीं।.

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माँ का धर्म

'सप्ताहभर बीत चुका था। अक्तूबर, ८४ के दंगों की आग पूरी 'तरह बुझी नहीं थी। राख के नीचे अंगारे कभी-कभी दहक जाते थे। उस दिन सुबह-सुबह ‘काके’ को देख कर बेबे का पारा चढ़ गया। ' 'देख ले जसप्रीत! '' बेबे अपनी बहू से मुखातिब थीं।
'' ''मुण्डे नु फैशन चढी है, केश कटा आया। केश क्या नाक कटा दी दारजी की। '' 
. जसप्रीत अपनी सास को तनाव नहीं देना चाहती थी, सो चुप रही। वह नहीं बता पाई कि उसके किशोर, फेंटा बाँधनेवाले बेटे परमिन्दर ने कल रात ही बालों को फैशन के लिये नहीं बल्कि सिख्खों को चुनचुन मारनेवाले दरिन्दों से बचने के लिये कटाए थे। एक माँ का धर्म यही था कि धर्म के बजाय बेटे की जान बचा ले।

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एक्सक्लूसिव रिपोर्ट


टीवी पर एक टॉक-शो चल रहा था। उसमें चन्द संभ्रान्त महिलाएँ थी जो महिला दिवस के अवसर पर आयोजित इस कार्यक्रम में स्त्री-विमर्श पर बातें कर रही थीं।
इसके समाप्त होते ही चैनल पर एक ब्रेकिंग न्यूज, जो वास्तव में दिल ब्रेक करनेवाली थी, चालू हो गई। न्यूज में एक गरीब असहाय स्त्री के फोकस से बाहर करके लिए गए चित्र बार-बार दिखाए जा रहे थे। धुँधलाते चित्रों से भी समझ में आ रहा था कि उसकी साड़ी खींची जा रही है.. .और मारपीट भी जारी थी। आश्चर्य व विडम्बना यह कि वहाँ कैमरे तो पहुँच गए थे पर सहायता नहीं। आगे के शोट्स में पुन: उस स्त्री का धुँधलाते चेहरेवाला चित्र अपनी खौफनाक दास्ताँ बयाँ कर रहा था। उसके साथ हुई बदसलूकी की वजह सिर्फ यह थी कि उसके भाई ने एक ऊँची जाति की लड़की से ब्याह कर लिया था।
'यो.. .ये.. .थी. ..से हमारे कैमरामैन के साथ संवाददाता.. .की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट! ''.

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