किसी भी उद्यान का मूल्यांकन उसमें मौजूद पुष्पों की सुंदरता, सुगंध और उनकी सजावट के आधार पर किया जाता है। गुलाब एक अकेला ऐसा पुष्प पौधा है, जो इन तीनों मापदंडों पर खरा उतरता है। गुलाब की छोटी-बड़ी मध्यम किस्में, फूलों का आकार, रंग, बनावट आदि की दृष्टि से इसकी विश्व में लगभग तीन हजार से अधिक किस्में चिन्हित एवं परिभाषित की जा चुकी हैं।
बहुत कम लोगों को मालूम है कि गुलाब के फूल झड़ जाने के बाद इसमें फल लगते हैं। इन फलों को साफ कर इनसे बनाए गए शरबत में काफी मात्रा में विटामिन सी पाया जाता है। इसके अनेक औषधीय उपयोग हैं।
पर्याप्त धूप जरूरी
गुलाब की खेती व्यावसायिक स्तर पर करके काफी लाभ कमाया जा सकता है। गुलाब को घर पर गमले में खिड़की की मंजूषा में, रसोई बगीचे की क्यारी में, आँगन में उगाने के लिए पर्याप्त धूप का होना एक आवश्यक शर्त है। गुलाब को दिन में कम से कम छः से आठ घंटे की खुली धूप होना आवश्यक है। गुलाब के पौधों के लिए पर्याप्त जीवांशयुक्त मिट्टी अच्छी होती है। बहुत चिकनी मिट्टी इसके अनुकूल नहीं होती है। मिट्टी का जल निकास और वायुसंचार सुचारु होना चाहिए। भूमि में हल्की नमी बनी रहना चाहिए।
विश्वभर में पसंद : गुलाब को विश्वभर में पसंद किया जाता है। इस पर व्यापक अनुसंधान एवं विकास कार्य किए गए हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गुलाब प्रेमियों के संगठन हैं, जो नई किस्मों के विकास, परिचिन्हन, मानकीकरण आदि करते हैं। इसके अनुसार पौधों की बनावट, ऊँचाई, फूलों के आकार आदि के आधार पर इन्हें निम्न वर्गों में बाँटा गया है।
किस्में गुलाब की
* हाइब्रिड टी (एचटी) : इस वर्ग के पौधे ब़ड़े, ऊँचे व तेजी से ब़ढ़ने वाले होते हैं। इस वर्ग की प्रमुख किस्में अर्जुन, जवाहर, रजनी, रक्तगंधा, सिद्धार्थ, सुकन्या आदि हैं। इनके पुष्प शाखा के सिरे पर ब़ड़े आकर्षक लगते हैं। एक शाखा के सिरे पर एक ही फूल आता है।
* फ्लोरीबंडा : इसके पौधे मध्यम लंबाई वाले होते हैं, इनमें फूल भी मध्यम आकार के और कई फूल एक साथ एक ही शाखा पर लगते हैं। इनके फूलों में पंखु़िड़यों की संख्या हाइब्रिड टी के फूलों की अपेक्षा कम होती हैं। इस वर्ग की प्रमुख किस्में बंजारन, आम्रपाली, ज्वाला, रांगोली, सुषमा आदि हैं।
* ग्रेन्डीफ्लोरा : यह उपरोक्त दोनों किस्मों के संयोग से तैयार किया गया है। गुलदानों में इस वर्ग के फूलों को अधिक पसंद किया जाता है। बड़े स्तर पर खेती के लिए इस वर्ग का अधिक उपयोग किया जाता है। गोल्ड स्पॉट, मांटेजुआ, क्वीन एलिजाबेथ इस वर्ग की प्रचलित किस्में हैं।
* पॉलिएन्था : इस वर्ग के पौधों को घरेलू बगीचों व गमलों में लगाने के लिए पसंद किया जाता है। क्योंकि इनमें मध्यम आकार के फूल अधिक संख्या में साल में अधिक समय तक आते रहते हैं। इस वर्ग की प्रमुख किस्में स्वाति, इको, अंजनी आदि हैं।
* मिनीएचर : जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है, ये कम लंबाई के छोटे बौने पौधे होते हैं। इनकी पत्तियों व फूलों का आकार छोटा होने के कारण इन्हें बेबी गुलाब भी कहते हैं। ये छोटे किंतु संख्या में बहुत अधिक लगते हैं। इन्हें ब़ड़े शहरों में बंगलों, फ्लैटों आदि में छोटे गमलों में लगाया जाना उपयुक्त रहता है, परंतु धूप की आवश्यकता अन्य गुलाबों के समान छः से आठ घंटे आवश्यक है। इस वर्ग की प्रमुख किस्में ड्वार्फ किंग, बेबी डार्लिंग, क्रीकी, रोज मेरिन, सिल्वर टिप्स आदि हैं।
* क्लाइंबर व रेम्बलर : ये गुलाब की बेल (लता) वाली किस्में हैं। इन्हें मेहराब या अन्य किसी सहारे के साथ चढ़ाया जा सकता है। इनमें फूल एक से तीन (क्लाइंबर) व गुच्छों (रेम्बलर) में लगते हैं। क्लाइंबर वर्ग की प्रचलित किस्में गोल्डन शावर, कॉकटेल, रायल गोल्ड और रेम्बलर वर्ग की एलवटाइन, एक्सेलसा, डोराथी पार्किंस आदि हैं।
ध्यान रहे
छँटाई करने के बाद पौधे के आसपास की मिट्टी की गुड़ाई कर उसमें गोबर खाद भरकर सिंचाई करें। सिंचाई मिट्टी व मौसम के अनुसार ऐसे करें कि अधिक समय तक नमी बनी रहे। इसकी बौनी किस्में 30-45 सेमी, सामान्य किस्में 60 सेमी, मानक किस्में 90 से 120 सेमी और बेल (लता) वाली किस्मों को 2-3 मीटर कतार अंतर पर लगाया जाता है।
कीड़ों से बचाव
की़ड़ों से बचाव के लिए छनी हुई राख को कुछ बूँद मिट्टी के तेल से नम करके भुरकें। या तंबाकू को पानी में उबालकर उसमें साबुन 1-2 ग्राम मिलाकर छिड़कें। पौधों में नए फूल आने के लिए पुराने फूलों को तो़ड़ते रहें।
लगती है कलम
गुलाब की कलम लगती है। कलम से तैयार पौधे भी मिलते हैं। इन्हें बडिंग द्वारा भी तैयार किया जा सकता है। गुलाब के पौधों के पोषण के लिए गोबर की खाद, खली की खाद, केंचुआ खाद (वर्मी कम्पोस्ट) का प्रयोग, रासायनिक खादों की अपेक्षा बेहतर होता है। इनमें समय-समय पर निंदाई-गु़ड़ाई करते रहें। अच्छे फूल प्राप्त करने के लिए फूलों की बहार आने के बाद कटाई-छँटाई करना आवश्यक है। छँटाई अलग-अलग किस्म में अलग-अलग की जाती है। इसमें एक साल पुरानी या रोग या कीटग्रस्त या सूखी शाखाओं को काट दें। खेतों में छँटाई ऐसे करें कि अगले मौसम में प्रत्येक पौधे को पर्याप्त स्थान, धूप, हवा, पोषण व पानी मिल सके।
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